कालीन की नगरी में मखाने ने खोला खजाना, हर महीने नीलम 30 लाख रुपये का कर रही व्यापार
खादी ग्रामोद्योग विभाग से संचालित प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम से नीलम को बड़ा सहारा मिला। वर्ष 2019 में जब पति का व्यवसाय ठप हुआ तो नीलम ने खादी ग्रामोद्योग कार्यालय जाकर मखाना के व्यापार का प्रस्ताव रखा था।
By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Sat, 01 Oct 2022 07:21 PM (IST)
जितेंद्र उपाध्याय, भदोहीः वह एक बोझिल शाम थी। भदोही के कालीन कारोबारी दिलीप जायसवाल के माथे पर चिंता की लकीरें और कमरे में खामोशी पसरी थी। अच्छा-खासा कारोबार ठप हो चुका था। कारखाने में ताला लग चुका था। आगे क्या होगा, इसका कोई उत्तर नहीं सूझ रहा था। ऐसे में अर्धांगिनी का धर्म निभाया नीलम जायसवाल ने। पति को संभाला और आगे की योजना बताते हुए उनके सामने आई मुसीबतों को रोकने के लिए ढाल बनकर उठ खड़ी हुईं।
सारे खर्चे काटकर सात-आठ लाख रुपये मासिक बचत
भदोही की रजपुरा कालोनी में रहने वाली नीलम ने नया सोचा और कालीन नगरी में मखाने का व्यवसाय शुरू किया। मखाना तैयार करने का कारखाना लगाकर पूरे समर्पण के साथ आगे बढ़ीं तो कारोबार चल निकला। आज हर महीने नीलम 25-30 लाख रुपये का व्यापार कर रही हैं। सारे खर्चे काटकर सात-आठ लाख रुपये मासिक बचत हो रही है। उनके मखाने की मांग देश के कई प्रांतों में है। आनलाइन आर्डर से भी आपूर्ति की जाती है। अब निर्यात की तैयारी है। पति दिलीप भी उनके व्यापार में हाथ बंटाते हैं।प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम बना सहारा
खादी ग्रामोद्योग विभाग से संचालित प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम से नीलम को बड़ा सहारा मिला। वर्ष 2019 में जब पति का व्यवसाय ठप हुआ तो नीलम ने खादी ग्रामोद्योग कार्यालय जाकर मखाना के व्यापार का प्रस्ताव रखा। विभाग ने उनकी पूरी मदद की। उद्योग शुरू करने के लिए बैंक से 25 लाख रुपये का ऋण दिलाया। इसी पूंजी से उन्होंने जायसवाल इंटरप्राइजेज कंपनी बनाई और मखाना तैयार करने का काम शुरू किया। तैयार माल की पैकिंग, मार्केटिंग, आय-व्यय का लेखा-जोखा संभालने के लिए नीलम ने कंपनी से अन्य महिलाओं को भी जोड़ा। स्वरोजगार शुरू करने वाली अन्य महिलाओं के लिए भी वह प्रेरणास्रोत बन रही हैं।पूर्णिया से आता है बीज
मखाना कमल के बीज से बनता है। इसे फाक्स नट भी कहते हैं। इसे नीलम बिहार के पूर्णिया जिले के हरदा बाजार से मंगाती हैं। वहां इसे गुड़ी बीज कहते हैं। नीलम बताती हैं कि बीज को वहीं से भुनवाकर उसका छिलका उतरवाकर मंगाती हैं। यह चार सौ रुपये प्रति किलोग्राम के आसपास पड़ता है। भदोहीर के कारखाने में मशीन में मखाना के ऊपर पड़े स्पाट को साफ किया जाता है। इससे उसमें सफेदी आ जाती है और यह थोड़ा फूल भी जाता है। नीलम तीन किस्म के मखानों का व्यापार करती हैं। 6-8 सूत का मखाना सबसे महंगा करीब 950 रुपये प्रति किलो, 5-7 सूत का मखाना 750 व 4-5 सूत का मखाना 600 रुपये प्रति किलो की दर से बिकता है।
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