Move to Jagran APP

Bhadohi: जेल की सलाखों के पीछे स्वावलंबन को आधार दे रहे भदोही के कालीन, बंदियों को दिखाई रोजगार की राह

भदोही जेल में 25 बंदियों ने सात महीने में आठ लाख रुपये के कालीन तैयार किए हैं। अभी तक हस्तशिल्प प्रदर्शनियों में जेल में बना तीन लाख रुपये का माल बिक चुका है। कालीन की बिक्री से बंदियों को हर महीने तीन से चार हजार रुपये मिलते हैं।

By Jagran NewsEdited By: Yogesh SahuUpdated: Wed, 15 Feb 2023 06:52 PM (IST)
Hero Image
Bhadohi: जेल की सलाखों के पीछे स्वावलंबन को आधार दे रहे भदोही के कालीन, बंदियों को दिखाई रोजगार की राह
जितेंद्र उपाध्याय, भदोही। उप्र के सबसे छोटे जिला कारागार भदोही में बंदियों को रोजगार की राह दिखाई जा रही है। सात-आठ माह पूर्व उन्हें बाजार की मांग के अनरूप जेल में ही गलीचे तैयार करना सिखाया गया था। जिला प्रशासन की पहल पर निर्यातकों ने शुरुआत में कच्चा माल देकर मदद भी की। अब जेल प्रशासन स्वयं बाजार से कच्चा माल बाजार खरीद रहा और हुनरमंद बंदियों की आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रहा है। उनके तैयार कालीन बाजार में बिक भी रहे हैं।

अब तक 25 हुनरमंद बंदियों के लगभग तीन लाख रुपये के 69 टफ्टेड कालीन विभिन्न प्रदर्शनियों में बिक चुके हैं और पांच लाख रुपये के कालीन बनकर तैयार हैं। कालीन की बुनाई कर हर बंदी 3000 रुपये से 4000 रुपये महीना कमा रहा है। यहां हैंडनाटेड कालीन भी तैयार कराए जा रहे हैं। इससे इनकी आय में वृद्धि होगी। उद्देश्य यह है कि इन्होंने जो अपराध या गलती की, उसकी सजा तो काट रहे हैं। मगर जब यहां से निकलें तो अपराध से तौबा कर रोजी रोजगार करें और अपने परिवार को मेहनत और सम्मान की रोटी खिलाएं।

बैंक खाते में जा रही कमाई

जिला कारागार में दस साल पुरानी जर्जर हो चुकी बैरक को जिला प्रशासन की मदद से दुरुस्त कराया गया। यहां सात लूम लगाई गई हैं। इनमें चार लूम टफ्टेड और तीन लूम हैंडनाटेड की हैं। 25 बंदी सुबह से शाम तक काम करते हैं। कोई अन्य बंदी काम करना चाहता है तो उसका नाम रजिस्टर किया जाता है।

बंदियों का बनाया तीन लाख रुपये का कालीन बिक चुका है और पांच लाख रुपये का कालीन बनकर तैयार है। अभी तक कालीन की बिक्री से मिल रहा पैसा बंदियों के परिवार को नकद दिया जाता था, लेकिन हाल ही में जिला प्रशासन ने बंदियों का बैंक खाता खोल दिया है। अब यह पैसा उनके खाते में जमा हो जाता है।

जेल में खुला बिक्री केंद्र

सभी 25 बंदी कालीन बुनाई में सिद्धस्त हो चुके हैं, मगर सात लूमों पर सात लोग ही काम कर सकते हैं। ऐसे में कुछ काती खोलने, उसका गोला व लच्छी बनाने का काम भी करते हैं। कुछ छूड़ा पर धार लगाने वाले तो कुछ धागा का ताना-बाना बनाने का कार्य करते हैं। हर कोई बारी-बारी से यह काम करता है, इसलिए हर किसी को बुनाई का मौका मिलता है। जमानत या सजा पूरी होने पर जो बंदी छूट जाते हैं, उनके स्थान पर अन्य बंदी को इससे जोड़ा जाता है। इसलिए यह संख्या 25 ही रहती है।

हस्तशिल्प प्रदर्शनियों के अलावा इन कालीनों की बिक्री के लिए जिला कारागार के बाहरी कैंपस में भी विक्रय केंद्र खोला गया है। पांच गुणा आठ फीट के टफ्टेड कालीन की कीमत 5000 रुपये है। इसे तैयार करने में दो से तीन दिन लगते हैं। इसमें 4000 रुपये लागत और 1000 रुपये मजदूरी होती है।

प्रशिक्षण भी दिलाया गया

जिला कारागार की क्षमता 114 बंदियों की है, लेकिन यहां 400 से अधिक बंदी हैं। इनमें 150 बंदी गंभीर अपराध से जुड़े हुए हैं। ढाई सौ बंदी छोटे-मोटे अपराध में बंद हैं। इनकी काम करने में रुचि है, इसलिए इनमें से कुछ लोगों को कालीन बुनाई से जोड़ा गया है। जिला उद्योग केंद्र ने पिछले वर्ष जून में बंदियों को शासन द्वारा नामित एजेंसी यूपी कान की मदद से दस दिन का प्रशिक्षण भी दिलवाया था।

सीएम योगी आदित्यनाथ ने बंदियों को भी रोजगार से जोड़ने के लिए हर जेल में एक जनपद-एक उत्पाद के तहत कार्य कराने की बात कही थी। इसके बाद तत्कालीन जिलाधिकारी आर्यका अखौरी की पहल पर जिले के निर्यातकों ने लूम व कच्चा माल उपलब्ध कराया। अब जेल से कालीन का व्यापार चल निकला है तो जेल प्रशासन स्वयं बाजार से ऊल, धागा, ठर्री के लिए धागा खरीदता है।

सरकार का उद्देश्य है कि बंदियों को हुनरमंद बनाकर रोजगार आदि जोड़ा जाए, ताकि जब ये जेल से बाहर जाएं तो यहां सीखे काम की वजह से समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सकें। इसलिए जिला प्रशासन के प्रयास से इन लोगों से कालीन की बुनाई का काम कराया जा रहा है। - राजेश वर्मा, जेलर

जेल से छूटने के बाद ये लोग रोजगार से जुड़ें, अपने परिवार का पालन-पोषण सम्मान के साथ कर सकें, इसके लिए यह प्रयास किया गया है। जल्द ही कारागार में लकड़ी आदि कार्य भी शुरू होगा। इसके लिए अन्य बंदियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। उद्देश्य यह है कि यह लोग अपराध छोड़ दें। - गौरांग राठी, जिलाधिकारी

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।