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फसलों पर मौसम की मार; मटर-चना में बुकनी रोग… आलू में पिछेती झुलसा का बढ़ा खतरा, विशेष सावधानी बरतें किसान; ऐसे करें बचाव

Bhadohi Newsबारिश के बाद मौसम का मिजाज फिर से सर्द हो उठा है। भले ही दिन में धूप हो रही हो लेकिन पहाड़ी पछुआ हवा के चलते तापमान में गिरावट दर्ज की जा रही है। ऐसे मौसम में दलहन फसल चना-मटर में बुकनी रोग तो पिछेती आलू में पिछेती झुलसा रोग का खतरा बढ़ गया है। किसानों को फसल के देखरेख में विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है।

By Jitendra Upadhyay Edited By: riya.pandey Updated: Sun, 11 Feb 2024 03:36 PM (IST)
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मौसम की मार; मटर-चना में बुकनी रोग… आलू में पिछेती झुलसा का बढ़ा खतरा,

जागरण संवाददाता, भदोही। बारिश के बाद मौसम का मिजाज फिर से सर्द हो उठा है। भले ही दिन में धूप हो रही हो लेकिन पहाड़ी पछुआ हवा के चलते तापमान में गिरावट दर्ज की जा रही है। न्यूनतम तापमान आठ से 10 डिग्री सेल्सियस के आसपास दर्ज हो रहा है तो आर्द्रता 80 से 100 प्रतिशत तक दर्ज हो रही है। ऐसे मौसम में दलहन फसल चना-मटर में बुकनी रोग तो पिछेती आलू में पिछेती झुलसा रोग का खतरा बढ़ गया है। किसानों को फसल के देखरेख में विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है।

लापरवाही पर फसल रोग के जद में आई तो उत्पादन प्रभावित होने से किसानों की सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा। फसल की सुरक्षा को लेकर जिला कृषि अधिकारी रत्नेश कुमार सिंह की ओर से एडवाइजरी जारी की गई है।

चना-मटर में बुकनी रोग के लक्षण व बचाव

दलहन फसल चना व मटर में लगने वाले इस रोग में पौधों की पत्तियों, तनों एवं फलियों पर सफेद चूर्ण सा दिखाई पड़ने लगता है। जिससे पत्तियां सूखकर गिर जाती है। पौधे कमजोर हो जाते हैं। फलस्वरूप उत्पादन प्रभावित हो जाता है। इस रोग से बचाव के लिए घुलनशील गंधक 80 प्रतिशत दो किलो अथवा ट्राइडेमेफान 25 प्रतिशत डब्लूपी दवा 250 ग्राम 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।

पिछती आलू में झुलसा रोग, लक्षण व बचाव

जब तापमान 10 से 20 सेंटीग्रेट के मध्य एवं आर्द्रता 80 प्रतिशत से अधिक होती है तो इस रोग के प्रकोप की संभावना बढ़ जाती है। मौजूदा समय में तापमान इसी के आस पास चल रहा है। यह रोग फरवरी के अंत तक दिखाई देती है। प्रकोप की दशा में पत्तियों के अग्रभाग पर अनियमित आकार के काले एवं भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते है। अत्यधिक प्रकोप की स्थिति में पूरी की पूरी फसल झुलस जाती है। बचाव के लिए किसानों को इस लोग का लक्षण दिखाई देने पर तत्काल सिंचाई बंद कर देनी चाहिए।

रसायनिक नियंत्रण में कापर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्लूपी ढाई किलो अथवा मेंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लूपी अथवा जिनेब 75 प्रतिशत डब्लूपी डेढ़ से दो किलो दवा या फिर हेक्साकोनाजोल दो प्रतिशत एससी दवा तीन लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी में घोल तैयार कर छिड़काव करना लाभकारी होगा।

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