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इजरायल-लेबनान युद्ध से इंडिया कारपेट एक्सपो पर पड़ेगा असर, आयातकों ने मेले में आने से किया मना

इजराइल और लेबनान के बीच छिड़े युद्ध के कारण भदोही में होने वाले इंटरनेशनल कारपेट फेयर पर असर पड़ने की संभावना है। दोनों देशों के 13 आयातकों ने आने से मना कर दिया है जो कालीन उद्योग के लिए महत्वपूर्ण खरीदार हैं। इससे उद्यमियों को अपने माल के डंप होने की चिंता है। कालीन निर्यात संवर्धन परिसर ने मंथन शुरू कर दिया है।

By Jitendra Upadhyay Edited By: Shivam Yadav Updated: Sat, 05 Oct 2024 02:04 AM (IST)
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भदोही: सालिमपुर स्थित एक कालीन कंपनी के गोदाम में रखे तैयार उत्पाद। जागरण

जागरण संवाददाता, भदोही। इजरायल और लेबनान युद्ध से कालीन उद्योग पर असर पड़ा है। 15 अक्टूबर से भदोही में शुरू हो रहे इंटरनेशनल कारपेट फेयर, इंडिया कारपेट एक्सपो में भी दोनों देशों के 13 आयातकों ने आने से मना कर दिया है। यह तेरह आयातक कालीन के अच्छे खरीदार हैं। 

उधर, लगभग दो साल से रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से वैसे ही कालीन उद्योग पर मंदी छाई थी जो धीरे-धीरे संभल रहा था पर अब इजरायल समेत अन्य देशों के बीच छिड़ी जंग ने उद्यमियों को संकट में डाल दिया है। 

कारण कारपेट फेयर के लिए उद्यमियों ने बाजार की मांग के अनुरूप ऑर्डर तैयार कराए हैं, उन्हें आर्डर नहीं मिला तो उनका माल डंप हो जाएगा। जंग लंबी चल सकती है इसको लेकर कालीन निर्यात संवर्धन परिसर ने भी मंथन शुरू कर दिया है। पर आश्वस्त भी है कि मेले पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा।

जंग से कई देशों में व्यापारिक स्थिति गड़बड़ाई है। इससे कालीन उद्योग पहले से ही जूझ रहा है। इजरायल व इससे हो रही जंग से जुड़े देशों में व्यापार की संभावनाएं तलाशी जा रही थीं पर युद्ध ने सारे मंसूबों पर पानी फेर दिया। 

भारतीय कालीन इजरायल, लेबनान में खूब बिकते हैं। इन देशों के बायर न आने के कारण अब दूसरा विकल्प खोजना पड़ेगा। उद्यमियों का मानना है कि रूस-यूक्रेन, इजरायल, लेबनान के आसपास के देशों में अब व्यापार की संभावनाएं नहीं रह गई हैं। आयातक भी आने से कतरा रहे हैं। इसलिए अन्य देशों में संभावनाएं तलाशनी होंगी।

इजरायल व लेबनान के 13 आयातकों ने आने से मना कर दिया है। इनसे लगभग अच्छा खासा व्यापार होता है। लेबनान चूंकि स्विट्जरलैंड माना जाता है, इससे यह धनी देशों में गिना जाता है और यहां के लोग भारतीय कालीनों को खूब पसंद करते हैं। पर इस मेले में उनका न आना खलेगा।

-संजय गुप्ता, प्रशासनिक सदस्य, सीईपीसी

इन देशों में भारतीय कालीन जाते हैं और बाजार बढ़ने की संभावनाएं भी थी। पर कालीन मेले में उनके न आने से खास असर नहीं पड़ेगा। कालीन निर्यात संवर्धन परिषद पहले से ही परिस्थितियों को भांपते हुए आगे बढ़ रही है। मेले में जितने आयातकों के आने की उम्मीद है, उतने कन्फर्म हैं। यह जरूर है कि यह नए देश हैं जिनमें कालीन की मांग बढ़ रही थी। पर अब इनका विकल्प खोजा जाएगा।

-असलम महबूब, प्रशासनिक सदस्य, सीईपीसी

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