दिग्गजों के ‘कुरुक्षेत्र’ में घमासान, यहीं से पहली बार मायावती पहुंची थी संसद; समझें बिजनौर लोकसभा सीट का सियासी समीकरण
Bijnor Lok Sabha Seat बिजनौर लोकसभा सीट। यह वही सीट है जिससे बसपा सुप्रीमो मायावती और कांग्रेस की मीरा कुमार पहली बार संसद पहुंचीं। इस बार रालोद से चंदन चौहान सपा से दीपक सैनी और बसपा से बिजेंद्र सिंह चुनाव मैदान में हैं। जबरदस्त घमासान चल रहा है। जैसे ही लोकसभा चुनाव की डुगडुगी बजी तो यहां भी चर्चाएं शुरू हो गईं।
अनुज शर्मा, बिजनौर। बिजनौर लोकसभा सीट। यह वही सीट है, जिससे बसपा सुप्रीमो मायावती और कांग्रेस की मीरा कुमार पहली बार संसद पहुंचीं। यह वही सीट है, जिस पर मायावती, रामविलास पासवान और जयाप्रदा को हार का स्वाद चखना पड़ा। दिग्गजों का ‘कुरुक्षेत्र’ मानी जाने वाली यह धरती राजनीतिक उपेक्षा की शिकार होकर पिछड़ गई। अपने अस्तित्व को बचाने के लिए इस धरती को अपने भगीरथ की तलाश है। मुख्य संवाददाता अनुज शर्मा की रिपोर्ट...
बिजनौर का राजा दुष्यंत से लेकर महाभारत काल तक से गहरा नाता रहा है। यह धरती राजा दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कहानी की गवाह है। महाभारत काल में महात्मा विदुर युद्ध टालने में असमर्थ रहे। निराश होकर वह गंगा के इस पार आकर बस गए। उन्होंने कुटिया बनाई और युद्ध में मारे गए सैनिकों के परिवार की विधवा महिलाओं और परिवारों के लिए यहीं पर दारानगर (पत्नियों का नगर) बसाया। विदुर कुटी में भगवान श्रीकृष्ण पधारे थे और बथुआ का साग भी खाया। इस कुटिया पर बथुआ का साग आज भी पूरे साल हरा रहता है।
बात राजनीतिक उठापटक की ...
अब बात राजनीति की। रालोद से चंदन चौहान, सपा से दीपक सैनी और बसपा से बिजेंद्र सिंह चुनाव मैदान में हैं। जबरदस्त घमासान चल रहा है। जैसे ही लोकसभा चुनाव की डुगडुगी बजी तो यहां भी चर्चाएं शुरू हो गईं। गंगा बैराज पर एक बार फिर लोगों का जमावड़ा था। वे आए तो थे किसी और काम से, लेकिन चर्चा छिड़ी तो बैठ गए।इसी बीच राजनीति की समझ रखने वाले चौधरी रामपाल ने ताल ठोंक दी कि बिजनौर सीट पर जाट समाज जिसे चाहे, उसे जिता सकता है। बशर्ते यह किसी भी कारण से एक हो जाए। रामपाल का जवाब देने के लिए अमित गुर्जर भूमिका बना चुके थे।
लोगों के सवाल
बोले, चौधरी साहब जाने भी दो, हम गुर्जर किंग मेकर हैं। हमारे सवा लाख मतदाता, जिसके हो जाएं उसे लोकसभा पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता। यहीं से कुछ दूरी पर खड़े रमेश से भी रहा नहीं गया। वह भी पहुंच गया और एक सांस में अपनी बात कह गया। भैया जी, सबकी बात ठीक है, लेकिन मुझे एक बात का जवाब दे दो। जिसे भी जिताकर भेजा, वही दिल्ली का होकर रह गया। हमारे बिजनौर की कोई नहीं सोचता।घने वन, विदुर कुटी, कण्व ऋषि आश्रम, ताजपुर का चर्च समेत सभी ऐतिहासिक धरोहरें और अमानगढ़ टाइगर रिजर्व उपेक्षित हैं। इनकी सुधि लेने वाला कोई नहीं। सलीम भी बरस पड़े। प्रदेश हो या देश, सरकार किसी की भी हो, लेकिन बिजनौर को उपेक्षा के अलावा कुछ नहीं मिला।आशीष शर्मा ने कहा, विदुर कुटी के विकास की योजनाएं अधर में हैं। गंगा की धारा को गुजारने की घोषणा का तो अभी तक प्रोजेक्ट भी स्वीकृत नहीं हो पाया है। बिजनौर को फिर से भगीरथ की जरूरत है, जो इसे इसका खोया सम्मान दिला सके।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।यादगार है 1985 का उपचुनाव, जब हारे थे दिग्गज
वर्ष 1985 में हुआ उपचुनाव यादगार है, जिसमें तीन दिग्गज मैदान में उतरे। इसी चुनाव में कांग्रेस की मीरा कुमार पहली बार यहां से सांसद चुनी गईं। उन्होंने लोकदल प्रत्याशी केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान को हराया। बसपा सुप्रीमो मायावती निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ीं और वह तीसरे नंबर पर रहीं। 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में मायावती का सितारा बुलंद हुआ। वह जीतीं और पहली बार लोकसभा पहुंचीं। वर्ष 1991 में फिर से मायावती को हार का मुंह देखना पड़ा। भाजपा के मंगलराम प्रेमी ने उन्हें पराजित किया।सभी दलों को दिया मौका
पांच बार इस लोकसभा सीट पर कांग्रेस तो चार बार भाजपा का कब्जा रहा। रालोद ने दो बार व सपा तथा बसपा ने एक-एक बार इस सीट पर परचम लहराया, लेकिन बिजनौर को वे सम्मान नहीं दिला पाए।पांच बड़े मुद्दे
- गंगा नदी की बाढ़ की समस्या का समाधान
- बिजनौर को आने वाले मार्गों का निर्माण
- गन्ना भुगतान, बेसहारा पशु, उत्पादों के लिए बाजार
- बिजनौर में औद्योगिक विकास।
- बिजनौर को धार्मिक व पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करना।