अमानगढ़ टाइगर रिजर्व के बाहर सुनाई देने लगी बाघों की गुर्राहट...तो दूर भागने लगे गुलदार, लोगों को मिली राहत
Amangarh Tiger Reserve वनों से बाहर आने लगे बाघ तो और दूर भागने लगे गुलदार। गुलदारों ने पिछले साल डेढ़ दर्जन लोगों को निवाला बनाया था। बाघों का खेतों में आना फिलहाल इस तरह क्षेत्र के लोगों के लिए फिलहाल राहत की खबर लाया है। बाघों के डर से गुलदारों ने वह इलाका छोड़ दिया है। गुलदार के शावकों को बाघ से खतरा है।
जागरण संवाददाता बिजनौर। अमानगढ़ टाइगर रिजर्व के बाहर भी बाघों की गुर्राहट और सुनाई देने लगी है। बाघ वन से बाहर आ रहे हैं और गुलदार अमानगढ़ के आसपास के गांवों को छोड़ रहे हैं। पिछले साल के मुकाबले अमानगढ़ और साहूवाला रेंज के आसपास के इलाकों में शांति है जबकि बाकी इलाकों में गुलदारों ने आतंक मचा रखा है।
हालांकि अभी यह सुकून वाली बात है कि बाघों ने गुलदारों (तेंदुआ) की तरह खेतों में डेरा नहीं डाला है। वन विभाग भी बाघों, गुलदारों को खेतों में आने से रोकने के लिए लगभग दस किलोमीटर क्षेत्र में सोलर फेंसिंग कराने जा रहा है।
बाघ के डर से नहीं ठहरता गुलदार
बाघ के डर से कुछ साल पहले खेतों में आए गुलदारों ने यहां अपना राज कायम कर लिया है। गुलदारों के स्वभाव में बदलाव आया है और शरीर की बनावट में भी। गुलदारों का आकार डेढ़ गुना तक बढ़ गया है और वे मनुष्यों से डरने के बजाए उन पर दिन में भी हमले कर रहे हैं। डेढ़ गुना आकार बढ़ने के बाद भी गुलदार बाघों के सामने कहीं नहीं ठहरता है। बाघ आखिरी बाघ ही होता है।
पिछले वर्ष जिले में 19 लोगों को गुलदार ने मारा था
पिछले साल गुलदार ने जिले में 19 लोगों को मारा था। इनमें से दस लोगों की जान अमानगढ़ टाइगर रिजर्व और साहूवाला रेंज के पास के गांवों में हुई थी। खासतौर से अमानगढ़ के आसपास के इलाकों में तो रात को कर्फ्यू जैसे हालात हो जाते थे। लेकिन बाघों ने भी अब धीरे धीरे अमानगढ़ के बाहर की ओर रुख करना शुरू कर दिया है। खासतौर से पीली डैम क्षेत्र की ओर बाघ का दिखना सामान्य सी बात हो गई है।
साहूवाला वन रेंज में भी बाघों की दस्तक शुरू हो गई है। ऐसे में गुलदारों ने खुद को बचाने के लिए वन के पास का इलाका छोड़ना शुरू कर दिया है।
गुलदार के शावकों का खतरा बढ़ा
गुलदार बाघ से बहुत डरता है। बाघ मौका मिलते ही गुलदार को मार डालते हैं। गुलदार एक बार को पेड़ पर चढ़कर जान बचा भी ले लेकिन गुलदार के शावक बाघ के जबड़े से किसी भी कीमत पर बच नहीं सकते हैं। ऐसे में बाघों से बचने के लिए गुलदार खुद को वनों से दूर ले जा रहे हैं।
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यह होता है अंतर
गुलदारों का औसत वजन 60 जबकि बाघ का औसत वजन डेढ़ कुंतल तक होता है। आकार और शक्ति में गुलदार और बाघों का कोई मुकाबला नहीं है। खेतों में रहने के आदी होने वाले गुलदार बाघ का थोड़ा भी मुकाबला नहीं कर सकते हैं। इसलिए वे वनों के पास का इलाका भी छोड़ रहे हैं।
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अमानगढ़ टाइगर रिजर्व के आसपास के इलाकों में गुलदार देखे जाने के कम मामले सामने आ रहे हैं। बाघ से डरना गुलदार की प्रकृति है और यह कभी नहीं बदलेगी। हालांकि बाघों व बाकी वन्यजीवों को वन के अंदर ही रोकने के लिए दस किलोमीटर के क्षेत्र में सोलर फेंसिंग लगाई जाएगी। ज्ञान सिंह, एसडीओ