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Bijnor News: शहद के दाम हुए धड़ाम, निर्यातकों को किसानों ने शहद देना किया बंद; सरकार से मदद की उम्मीद

बिजनौर के मधुमक्खी पालन करने वाले किसान इस समय भारी घाटे का सामना कर रहे हैं। शहद के दाम लागत के मुकाबले 30 रुपये प्रति किलोग्राम तक कम बिक रहे हैं। ऐसा हाल तब है जब कोरोना के बाद से अधिकतर किसान इस व्यवसाय से किनारा कर चुके हैं। किसानों ने शहद निर्यातकों को बेचने के बजाए अब अपने ही पास स्टॉक रखने का निर्णय लिया है।

By Jagran News Edited By: Jeet Kumar Updated: Thu, 25 Jul 2024 07:17 AM (IST)
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शहद के दाम हुए धड़ाम, निर्यातकों को किसानों ने शहद देना किया बंद

 जागरण संवाददाता, बिजनौर। जिले में मधुमक्खी पालन करने वाले किसान इस समय भारी घाटे का सामना कर रहे हैं। शहद के दाम लागत के मुकाबले 30 रुपये प्रति किलोग्राम तक कम बिक रहे हैं। ऐसा हाल तब है जब कोरोना के बाद से अधिकतर किसान इस व्यवसाय से किनारा कर चुके हैं। किसानों ने शहद निर्यातकों को बेचने के बजाए अब अपने ही पास स्टॉक रखने का निर्णय लिया है।

किसानों को खेती के साथ ही सहायक व्यवसाय जैसे मधुमक्खी पालन, दुग्ध उत्पादन, मत्स्य पालन आदि करके आय बढ़ाने को भी प्रेरित किया जा रहा है। मधुमक्खी पालन में जिले के किसानों की रूचि पहले से ही रही है। किसान काफी संख्या में मधुमक्खी पालन करते हैं और निर्यातक किसानों के खेतों से ही शहद खरीद लेते हैं।

उद्योग से ही पलायन कर गए लोग

कोरोना के समय किसानों को मधुमक्खी के पिंजरे एक स्थान से दूसरे स्थान में ले जाने में परेशानी उठानी पड़ी और साथ ही बेचने में भी। शहद की मांग खत्म हो गई तो अधिकतर किसान इस उद्योग से ही पलायन कर गए। कुछ लोग हिम्मत करके फिर भी इस व्यवसाय से जुड़े रहे लेकिन उत्पादन कम होने के बाद भी शहद उत्पादन में लगे किसान नुकसान ही उठा रहे हैं।

120 रुपये प्रति किलोग्राम तक ही देने को तैयार

किसानों को निर्यातक प्रति किलोग्रााम शहद के दाम 120 रुपये प्रति किलोग्राम तक ही देने को तैयार हैं जबकि शहद की लागत ही 150 रुपये प्रति किलोग्राम तक आ रही है। कम दाम मिलने पर शहद उत्पादन करने वाले किसानों ने शहद बेचना ही बंद करके अपने पास स्टॉक करना शुरू कर दिया है। इस मामले को शासनस्तर पर भी उठाया गया है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।

लागत ज्यादा मूल्य कम

पिछले वर्षों में शहद के दाम 180 रुपये प्रति किलोग्राम तक रहे हैं लेकिन उत्पादन कम होने पर दाम 120 रुपये ही मिल रहे हैं। जबकि इस समय शहद उत्पादन में सबसे अधिक खर्च आता है। सरसों की फसल खत्म होने के बाद मधुमक्खियों को फूलों के खेतों के पास पहले अलीगढ़ और अब रासजस्थान ले जाया गया है। वहां बाजरे की फसल से मधुमक्खी शहद बनाती हैं।

40 हजार बाक्स हैं मधुमक्खियों के

वर्तमान में जिले में जगभग 250 किसान ही मधुमक्खी पालन कर रहे हैं। मधुमक्खी पालन के लगभग 40 हजार बॉक्स जिले में हैं। एक बॉक्स से साल भर में 15 से 17 किलो शहद उत्पादन होता है। खेतों में लगातार पेस्टीसाइट के प्रयोग से भी शहद उत्पादन कम होने की बात कही जा रही है।

शहद के बहुत कम दाम मिल रहे हैं जबकि लागत ज्यादा है। संगठन के सदस्यों ने अभी निर्यातकों को शहद न लेने का निर्णय लिया है। शासन के सामने भी यह मुद्दा उठाया गया है।- श्रवण कुमार, जिलाध्यक्ष- मधु क्रांति फार्मर वेलफेयर सोसायटी

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