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पर्यटन के रूप में विकसित नहीं हो सका राजा मोरध्वज किला क्षेत्र

बिजनौर जेएनएन। उत्तराखंड की तलहटी में बसा नजीबाबाद का मथुरापुरमोर क्षेत्र महाभारत कालीन इि

By JagranEdited By: Updated: Sun, 27 Sep 2020 09:55 PM (IST)
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पर्यटन के रूप में विकसित नहीं हो सका राजा मोरध्वज किला क्षेत्र

बिजनौर, जेएनएन। उत्तराखंड की तलहटी में बसा नजीबाबाद का मथुरापुरमोर क्षेत्र महाभारत कालीन इतिहास अपने आंचल में समेटे हैं। कई पौराणिक अवशेष इस बात की गवाही देते हैं। पुरातत्व विभाग इसे अपनी धरोहर बताते हुए यहां एक बोर्ड तो लगा चुका है, लेकिन जमीनी स्तर पर इस पौराणिक स्थल को पर्यटन के रूप में विकसित नहीं किया जा सका है।

प्राचीन समय में यह क्षेत्र अहिक्षेत्र के नाम से जाना जाता था। बताया जाता है कि वर्तमान में जहां गांव मथुरापुर मोर है, वहां महाभारतकाल में राजा मोरध्वज का किला था। श्रद्धालु बताते हैं कि पुराणों में इस बात का जिक्र है कि जब योगीराज श्री कृष्ण महाभारत का युद्ध समाप्त होने पर अपने भक्त मोरध्वज की परीक्षा लेना चाहते थे, तो उन्होंने अर्जुन से कहा था कि तुमसे भी बड़ा मेरा एक भक्त मोरध्वज है। उन्होंने राजा मोरध्वज के पास ऋषि वेश में पहुंचकर उनकी परीक्षा ली थी। उन्हीं राजा मोरध्वज का किला आज गांव में जीर्णशीर्ण अवस्था में है।

पिछले कई वर्षों से इस किले के पास ग्रामीणों द्वारा की गई खोदाई में कईं समकालीन मूर्तियां, मूर्तियों के अवशेष, शिलाएं आदि निकलीं। कई मूर्तियां मिट्टी से निर्मित हैं तथा कईं पत्थर की शिलाओं पर नक्काशी कर उकेरी गई हैं। शिलाओं पर बनीं आकृतियां सदियों पुरानी होने से काफी धुंधली और अंजानी सी हो गई हैं। इसके अलावा करीब एक दशक पहले किला क्षेत्र में खोदाई में पांच फिट आठ इंच का शिवलिग जलहारी समेत मिला था। जिसे ग्रामीणों ने किले के मंदिर में पुर्नस्थापित कर दिया। बौद्ध काल, शैव काल, गुप्त काल के अवशेष मिलने से श्रद्धालुओं का विश्वास उस कथा के कारण जम जाता है, जब स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने राजा मोरध्वज की परीक्षा ली थी।

कुएं के जल से मिलती है चर्मरोग से निजात

मोरध्वज किला क्षेत्र में आबादी के बीच एक प्राचीन कुआं भी है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इसमें भरा जल कभी सूखता नहीं है और इस जल से स्नान करने पर दाद, खाज, खुजली आदि चर्म रोगों से निजात मिलती है।

इनका कहना है..

राजा मोरध्वज किला क्षेत्र से आए दिन पौराणिक अवशेष मिलने पर पुरातत्व विभाग ने इस धरोहर को अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया और उस टीले के बाहर पुरातत्व विभाग का बोर्ड लगा दिया। लेकिन पुरातत्व विभाग द्वारा इस धरोहर की अनदेखी करने से आहत क्षेत्र के लोगों ने निजी प्रयास कर पौराणिक धरोहरों को संरक्षित करने का प्रयास शुरू किया। अब यहां ऊंचा टीला मयूरेश्वर महादेव मंदिर के रूप में पहचान बना चुका है।

-जोगा सिंह, श्रद्धालु

पौराणिक अवशेष भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त राजा मोरध्वज की याद के रूप में देखने को मिल रहे हैं। उनसे जुड़ी गाथाएं आज कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में, किसी न किसी के मुखारबिद से सुनने को मिल रही हैं। सरकार को मोरध्वज किला क्षेत्र को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना चाहिए।

- पंडित भुवनेश रतूड़ी, पुजारी मयूरेश्वर महादेव मंदिर मथुरापुर मोर।

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