गंगा किनारे बसे लोगों ने नदी की स्वच्छता का रखा ध्यान, मां ने दिलाया बिजनौर को सम्मान
शहर में घर-घर से कूड़ा कलेक्शन के लिए 40 वाहन लगे हैं। कूड़े को दो कांप्केटर और चार अन्य बड़े वाहन डंपिंग ग्राउंड तक पहुंचाते हैं। अभी तक कूड़े की छंटाई के साथ यहां वर्मी कंपोस्ट पिट कंपोस्ट बनाने का काम किया जा रहा है।
अनुज शर्मा, बिजनौर: उत्तराखंड से उतरकर बिजनौर के मैदान में पूरा आकार लेने वाली गंगा नदी की मीलों तक लहराती कंचन काया बता रही है कि जल पूरी तरह निर्मल और जीवनदायी है। हुआ यूं कि नगर पालिका एवं गंगा के किनारे बसे लोगों ने नदी की स्वच्छता के लिए भगीरथ संकल्प लिया। शहर के अंदर भी कूड़ा प्रबंधन पर काम हुआ। हरा-भरा बिजनौर साफ-सुथरा भी नजर आने लगा।
परिणाम यह रहा कि स्वच्छ सर्वेक्षण 2022 में गंगा किनारे बसे एक लाख से कम आबादी वाले शहरों में बिजनौर ने देशभर में पहला स्थान प्राप्त किया। अधिकारी इस उपलब्धि को मां गंगा की सेवा से मिला आशीर्वाद बता रहे हैं। इस उपलब्धि के लिए जानकार बड़ी वजह बताते हैं कि शहर के सभी 17 नालों को जोड़कर उसके कचरे को प्रदूषण मुक्त कर नदी में गिराया गया। वहीं शौचालयों से निकलने वाले (फीकल स्लज) को शोधित कर खाद बनाई गई। अब स्वच्छ गंगा मिशन के तहत प्रत्येक घर को एसटीपी से सीधे जोड़ने के लिए 40 करोड़ का प्रोजेक्ट बनाया है।
बिजनौर बैराज स्थित गंगा घाट का प्रवेश द्वार। जागरण
मां गंगा तक नहीं पहुंचता एक बूंद प्रदूषित पानी
नगर पालिका ने नदी की सफाई का खाका बनाया। बिजनौर शहर के सभी नालों को आपस में जोड़कर हेमराज कालोनी में बने 24 एमएलडी (240 लाख लीटर प्रति दिन) क्षमता के प्लांट तक पहुंचाया गया। यहां से शोधित पानी ही नदी में छोड़ा गया। पानी का खेतों में भी इस्तेमाल हुआ।
बिजनौर में स्थापित 24 एमएलडी क्षमता का एसटीपी। जागरण
सेप्टिक टैंक की गंदगी की बूंद-बूंद का हिसाब
नगर पालिका ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत एसटीपी परिसर में ही 20 केएलडी (20 हजार किलो लीटर प्रतिदिन) क्षमता का एफएसटीपी (फीकल स्लज ट्रीटमेंट प्लांट) स्थापित किया और शहर के नालों और खुले स्थानों पर इस स्लज को डालने पर रोक लगा दी। छह निजी टैंकर संचालकों से अनुबंध किया। तय किया गया कि प्रत्येक मकान से सेप्टिक टैंक सफाई के लिए 1500 रुपये से ज्यादा नहीं लेंगे। इसके बदले स्लज को ट्रीटमेंट प्लांट पर पहुंचाएंगे। इसके अलावा दो टैंकर नगर पालिका के अपने हैं। अप्रैल 2022 से इस प्लांट ने काम करना शुरू कर दिया है। नगर पालिका प्रशासन का दावा है कि रोजाना लगभग चार घरों का स्लज यहां शोधित करके उससे खाद बनाई जा रही है। यहां खाद के लिए ड्राइ बेड बनाए गए हैं।
बिजनौर शहर की स्वच्छ सड़कें। यहां कूड़ेदान का लोग भली प्रकार उपयोग करते हैं। जागरण
एक नवंबर से चलेगा आटोमेटिड सालिड वेस्ट प्लांट
शहर में घर-घर से कूड़ा कलेक्शन के लिए 40 वाहन लगे हैं। कूड़े को दो कांप्केटर और चार अन्य बड़े वाहन डंपिंग ग्राउंड तक पहुंचाते हैं। अभी तक कूड़े की छंटाई के साथ यहां वर्मी कंपोस्ट, पिट कंपोस्ट बनाने का काम किया जा रहा है। स्वच्छ भारत मिशन (नगरीय) के जिला कार्यक्रम प्रबंधक हरीश गंगवार बताते हैं कि बिजनौर शहर के लिए 50 टीपीडी (टन प्रतिदिन) क्षमता का सालिड वेस्ट आटोमेटेड प्लांट एक नवंबर से काम करना शुरू कर देगा। कूड़े की छंटाई करके खाद की आटो पैकेजिंग होगी। प्लास्टिक का दाना बनेगा। मलबे से इंटरलाकिंग टाइल्स और आरडीएफ को सीमेंट फैक्ट्री को ईंधन के रूप मे बिक्री किया जाएगा।
घाट पर विद्युत शवदाह गृह की तैयारी
प्रशासन ने बिजनौर गंगा बैराज स्थित घाट पर विद्युत शवदाह गृह बनाने का निर्णय लिया है। यहां अंतिम संस्कार के लिए दूर-दराज से लोग पहुंचते हैं। जिलाधिकारी उमेश मिश्रा का कहना है कि जल्द यहां विद्युत शवदाह गृह स्थापित करने का प्रयास है, जिससे कोई प्रदूषण नदी में न जाने पाए। वे कहते हैं कि स्वच्छ सर्वेक्षण में बिजनौर शहर को देश में प्रथम स्थान मिलना गर्व की बात है। स्वच्छता को लेकर और भी प्रभावी योजनाएं बनाई जा रही हैं। गंगा को स्वच्छ रखना प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है।