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Ground Report: सांसद बनाम सांसद, रण में जातीय किलेबंदी, तीन दशक का किला बचेगा या ढहेगा?, बुलंदशहर से खास रिपोर्ट

यूं तो मुद्दे कई हैं पर वे चुनावी गंगा की लहरों में उतराते नजर नहीं आ रहे। जाट व लोधी की निष्ठा बुलंदशहर सांसद बनाम सांसद रण में जातीय किलेबंदी पौराणिक अवंतिका मंदिर और कुचेसर किले की विरासत समेटे बुलंदशहर के आम सात समुंदर पार तक अपनी मिठास लुटाते हैं। पर चुनावी बिगुल बजते ही यहां जातीय किलेबंदी और खटास अलग होती है। पढ़िए आलोक मिश्र की रिपोर्ट...

By Abhishek Saxena Edited By: Abhishek Saxena Updated: Wed, 24 Apr 2024 11:28 AM (IST)
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बुलंदशहर में किसके सिर सजेगा इस बार ताज।
आलोक मिश्र, बुलंदशहर। यूं तो मुद्दे कई हैं, पर वे चुनावी गंगा की लहरों में उतराते नजर नहीं आ रहे। जाट व लोधी की निष्ठा की दीवारें इतनी ‘बुलंद’ हैं, जो भगवा गढ़ को कमजोर नहीं पड़ने देती। इस बार दो सांसद आमने-सामने हैं और उनकी प्रतिष्ठा दांव पर। बुलंदशहर की राजनीतिक तस्वीर पर प्रमुख संवाददाता आलोक मिश्र की रिपोर्ट... जातीय किलेबंदी

काला−आम चौराहा

बलिदानियों के साहस का गवाह काला-आम चौराहा दूधिया रोशनी से नहाया था। वाहनों की कतार से अलग निजी कंपनी में काम करने वाले ओमवीर एक कोने में दोस्त उदयराज के साथ खड़े थे। उनके बीच शहर के विकास को लेकर बहस छिड़ी थी। ओमवीर कहते हैं, ‘दिल्ली के पास होने के बाद भी अपने शहर में सड़कों पर बेतरतीब यातायात कितना अजीब लगता है।

पूरे शहर के ट्रैफिक को लाल-नीली बत्ती से संचालित होना चाहिए।’ देख रहे हो- ‘कोई हेलमेट-सीटबेल्ट के लिए टोकने वाला तक नहीं।’ इस पर उदयराज बीते वर्षों में काफी कुछ बदलने का तर्क देते हैं। कहते हैं, ‘अब बिजली नहीं जाती। कानून-व्यवस्था बेहतर हुई है।’ साफ है कि और उम्मीदों के साथ ही लोगों में बढ़ी सुविधाओं को लेकर कुछ संतोष भी है। पर, चुनाव की चर्चा छिड़ते ही जातीय खांचे गहराने लगते हैं।

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हमें तो कारोबार करना है...

चौराहे से कुछ दूरी पर अंसारी रोड पर स्थित बाजार की चमक हमेशा अलग रहती है। यहां टेलर मु. नदीम चुनाव की चर्चा छिड़ने पर कहते हैं, हमें तो कारोबार करना है। अभी तो चुनाव पता भी नहीं चल रहा। इस बार सपा का प्रदर्शन बेहतर होने की उम्मीद जताते हैं। शहर से दूर स्याना में आम की पट्टी में भी मुद्दे तो हैं, पर गहराते नहीं। आम कारोबारी मनोज त्यागी पिछली फसलों में नुकसान की बात कहते हैं। बोले, ‘इस बार राहत है। खेती-कारोबार में उतार-चढ़ाव तो चलता रहता है।’ भाजपा का प्रत्याशी न बदलने पर नाराजगी जताते हैं। कहते हैं- ‘खैर, इससे फर्क नहीं पड़ता। चुनाव मोदी-योगी का है। इसलिए हैट्रिक लग जाएगी।’

कल्याण सिंह के गढ़ से सटा है बुलंदशहर

पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के गढ़ अलीगढ़ से सटे इस लोकसभा क्षेत्र में भी ‘बाबूजी’ का खास प्रभाव रहा है। उन्होंने 2004 के लोकसभा चुनाव में बुलंदशहर सीट से परचम लहराया था। इस बार वह नहीं हैं, लेकिन चुनावी रण में उनके समर्थकों की धाक अब भी उतनी ही मानी जा रही है।

भाजपा ने तीसरी बार डा. भोला सिंह को मैदान में उतारा है। 2009 व 2014 के लोकसभा चुनाव में लगातार दो बार जीत दर्ज कर चुके भोला सिंह इस बार परंपरागत वोटबैंक के सहारे हैट्रिक लगाने की चाहत लेकर मैदान में हैं।

नगीना सीट से जीतने वाले इस बार बुलंदशहर में

भाजपा के सामने नगीना सीट से पिछला लोकसभा चुनाव जीतने वाले गिरीश चंद्र हैं। बसपा ने इस बार नगीना से टिकट काटकर सांसद गिरीश चंद्र को भगवा गढ़ में उतारने का निर्णय किया है। दो सांसदों के बीच इस जंग के तीसरे कोण पर कांग्रेस प्रत्याशी शिवराम वाल्मीकि खड़े हैं। पिछला लोकसभा चुनाव बसपा के साथ मिलकर लड़ने वाली सपा इस बार कांग्रेस के साथ है। इससे बनते-बिगड़ते जातीय संतुलन तीनों ही उम्मीदवारों के लिए अलग चुनौतियां भी खड़ी करते हैं।

पांचाें विधानसभा में भाजपा का कब्जा

वैसे तो इस लोकसभा में पड़ने वाले पांचों विधानसभा क्षेत्र बुलंदशहर, स्याना, अनूपशहर, डिबाई व शिकारपुर भाजपा के ही कब्जे में हैं। यहां भाजपा हमेशा मजबूत स्थिति में रही है। 2009 से यह लोकसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।

बुलंदशहर में 18.55 लाख से अधिक मतदाता हैं, जिनमें लगभग साढ़े तीन लाख लोधी हैं। इतनी ही संख्या में यहां मुस्लिम व अनुसूचित जाति के मतदाता भी हैं। इनके अलावा जाट, राजपूत व ब्राह्मण मतदाता भी यहां किसी प्रत्याशी का पलड़ा भारी करने की क्षमता रखते हैं।

पिछला चुनाव का परिणाम

पिछले लोकसभा चुनाव की बात करें तो भोला सिंह ने बसपा उम्मीदवार (बसपा-सपा गठबंधन) योगेश वर्मा को 2.90 लाख से अधिक मतों से पछाड़ा था। 2014 के लोकसभा चुनाव में भोला सिंह को छह लाख से अधिक वोट मिले थे जबकि सपा, बसपा व रालोद के उम्मीदवारों को मिलाकर कुल 3,70,329 वोट मिले थे। प्रतिद्वंद्वियों के सामने भाजपा को दो चुनाव से मिल रही लीड के मुकाबले अपना वोटबैंक जुटाने की ही चुनौती बड़ी नजर आ रही है।

सैदपुर गांव में मिलेट्री हीरोज मेमोरियल इंटर कालेज का गेट और उसके बाहर बलिदानी नायक सुरेन्द्र सिंह अहलावत की प्रतिमा। यह वह स्थल है, जो इस गांव के गौरवशाली इतिहास का साक्षी है। फौज से गांव का रिश्ता अटूट है। हर घर का लड़का वर्दी पहनने की ललक आज भी रखता है।

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रालोद भी इस बार है साथ

पूर्व सैनिक जाट बलविंदर सिंह अग्निवीर योजना पर असंतोष जताते हैं। पर, चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न मिलने से गदगद हैं। कहते हैं- यहां फूल ही खिलेगा। इस बार तो रालोद भी साथ है। पास ही खाट पर बैठे सेवानिवृत्त सूबेदार धरमवीर सिंह के बेटे संदीप कुमार कहते हैं - ‘यहां मुद्दा मायने नहीं रखता। छोटा भाई विनीत भी सेना में है, उसकी पसंद मोदीजी हैं। फिर क्या बदलाव हुआ, यह तो वही बेहतर जानता है। सामने कोई नहीं है।’

आगे हापुड़ रोड पर स्पेयर पार्ट्स की दुकान चलाने वाले शाकिब अली सपा-बसपा के अलग होने से लड़ाई को कमजोर आंकते हैं। कहते हैं- ‘सपा-कांग्रेस को इस बार अधिक वोट मिल सकते हैं, लेकिन लोधी व जाट का वोट भाजपा की जीत तय करने को काफी है। बाबूजी कल्याण सिंह का प्रभाव यहां अभी कम नहीं।’

पौराणिक अवंतिका मंदिर और कुचेसर किले की विरासत समेटे बुलंदशहर के आम सात समुंदर पार तक अपनी मिठास लुटाते हैं। पर, चुनावी बिगुल बजते ही यहां जातीय किलेबंदी और खटास अलग होती है।

तीन दशक से है भगवा दबदबा

बुलंदशहर सीट पर 1990 के दशक से भाजपा का दबदबा रहा है। यहां 1991 1996, 1998 व 1999 में भाजपा के छत्रपाल ने लगातार चार बार जीत दर्ज की थी, जिसके बाद 2004 में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने इस सीट पर भगवा खेमे का जलवा कायम रखा। इसके बाद परिसीमन हुआ और 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा से दूरियों के चलते कल्याण सिंह का समर्थन सपा उम्मीदवार कमलेश वाल्मीकि पर रहा और पहली बार इस सीट पर साइकिल आगे निकली। 2014 के लोकसभा चुनाव में यह सीट फिर भाजपा के भोला सिंह ने भगवा खेमे में ला दी थी। 

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