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इतिहास की धरोहर समेटे बबुरी कस्बा

जागरण संवाददाता, बबुरी (चंदौली): क्षेत्र का बबुरी कस्बा इतिहास की कई धरोहरों को अपने अंदर समेटे हुए

By Edited By: Updated: Wed, 18 Jan 2017 11:34 PM (IST)
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इतिहास की धरोहर समेटे बबुरी कस्बा

जागरण संवाददाता, बबुरी (चंदौली): क्षेत्र का बबुरी कस्बा इतिहास की कई धरोहरों को अपने अंदर समेटे हुए है। क्षेत्र में विभिन्न स्थानों से जमीन के अंदर ऐतिहासिक महत्व की कई वस्तुएं मिली हैं। इन वस्तुओं के मिलने का सिलसिला अब भी जारी है। कई स्थानों पर खुदाई में मिली प्राचीन मूर्तियां व खेतों में पाई गई बड़ी-बड़ी ईटें मुगलकाल की गवाही देती हैं।

क्षेत्र के डवक गांव के पास खेत में ट्रैक्टर चलाते समय मिला शिव¨लग काफी प्राचीन होने के साथ ही उसके कुंड का काफी दूरी तक मिलना इस बात की गवाही देता है। उक्त काल में वहां कोई सुरंग रही होगी। वहीं मिट्टी की खुदाई में काफी बड़ी-बड़ी ईटें मिली थीं। इसके अलावा बबुरी स्थित मां बागेश्वरी देवी का मंदिर काफी प्राचीन होने के साथ ही आस्था का केंद्र ¨बदु बना हुआ है। कहते हैं कि संस्कृत के प्रमुख विद्वान नागेश भट्ट को 17वीं शताब्दी में लंबी तपस्या के बाद यही ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। बबुरी कस्बे में सैकड़ों मंदिरों के साथ तीन मस्जिद ं व एक मजार है। मजार-मंदिर एक परिसर में होने से हिदू-मुस्लिम एकता का प्रदर्शन होता है।

धरती से प्रकट हुई कई प्रतिमाएं

प्राचीनकाल में यहां बब्र वाहन नामक राजा की राजधानी थी। आल्हा-उदल से उनकी लड़ाई इतिहास में शामिल है। वहीं रानी बड़हर का डोला भी यहां पर उतरता था जिसे रानी बड़हर के नाम से जाना जाता है। अब किसी राजवाड़े परिवार के वंशज यहां नहीं रहते, परंतु उनकी स्मृतियां आज भी शेष बची हुई हैं। क्षेत्र में कई मंदिरों के जमीन के अंदर से प्रकट होने की कहानियां भी प्रचलित हैं। नगई में नागेश्वरी देवी, डवक में डगेश्वरी देवी, बबुरी में बागेश्वरी देवी के साथ ह हटिया के हनुमान जी, दसई चंद्रप्रभा नदी के किनारे मिले विशाल शिव¨लग व डवक में दो शिव¨लग जमीन के अंदर से प्राप्त हुए थे। यहां मंदिर बनवाकर विधिवत दर्शन पूजन किया जाता है।

मंदिर-मजार एक ही परिसर में

बबुरी के ऐतिहासिक तालाब के चारों तरफ लगभग दो दर्जन मंदिर स्थापित हैं। रामजानकी मंदिर व मजार एक ही परिसर में होने से जहां एक ओर घंटे व घड़ियाल गूंजते हैं वहीं दूसरे संप्रदाय के लोग बड़े पैमाने पर चादर चढ़ाने आते हैं व फातिहा करते हैं। इसको लेकर कभी भी सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न नहीं हुआ है।

अब भी मिल रहे अवशेष

बबुरी बस स्टैंड के पास टावर के निर्माण के लिए मिट्टी की खुदाई के दौरान बड़े पैमाने पर नर कंकाल व मिट्टी के पात्र मिले थे। इससे संभावना जताई जा रही थी कि वाराणसी के 14 कोसी परिक्रमा का यह क्षेत्र किसी जमाने में विशाल राजधानी रही होगी, जो दैवीय आपदा के बाद समाप्त हो गई होगी। बाद में यहां बस्तियां बसी होंगी। आल्हा उदल की लड़ाई के बाद से ही बबुरी को वीर नगर कहा जाने लगा, जो सरकारी अभिलेखों में भी दर्ज है।

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