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महादेव के इस मंदिर में आधा श्यामल तो आधा गौरांग है शिवलिंग, पूरे साल रहता श्रद्धालुओं का तांता; 200 साल पुराना है इतिहास

उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले में स्थित बबुरी कस्बे के प्राचीन पोखरा स्थित शिव मंदिर लगभग दो सौ साल पुराना है। बबुरी के पोखरे के किनारे सुनसान पड़ा यह स्थान लोगों को दिन में भी भयावह लगता था। लोगों का कहना है कि एक ग्रामीण को स्वप्न में भगवान शिव का दर्शन प्राप्त हुआ। स्वप्न में ही इन्हें भगवान शिव के मंदिर निर्माण की प्रेरणा मिली।

By pradeep kumar singh Edited By: Riya Pandey Updated: Sun, 21 Jul 2024 05:24 PM (IST)
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अर्धनारीश्वर रूप में होती है इस शिवलिंग की पूजा

संवाद सूत्र, (बबुरी) चंदौली। बबुरी कस्बे के प्राचीन पोखरा स्थित नर्मदेश्वर महादेव मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है। मंदिर में विराजमान शिवलिंग की एक ऐसी विशेषता है जो सामान्यतः अन्य शिवालयों में नहीं देखी जाती । नर्मदेश्वर महादेव का शिवलिंग शिव व पार्वती का मिश्रित स्वरूप है। लोग इन्हें अर्धनारीश्वर रूप में भी पूजते हैं।

शिवलिंग का आधा स्वरूप शिव के रूप में श्यामल तो आधा स्वरूप शक्ति के रूप में गौरांग है। इस मंदिर मे स्थानीय लोगों की आस्था इतनी प्रगाढ़ है कि अधिकांश श्रद्धालु अपनी दिनचर्या का सबसे अधिक समय भगवान भोलेनाथ की आराधना में व्यतीत करते हैं। पूरे साल यहां भक्तों का ताता लगा रहता है। वहीं पवित्र सावन मास में भक्तों की भीड़ जलाभिषेक के लिए उमड़ पड़ती है।

मंदिर का इतिहास

बबुरी कस्बे के प्राचीन पोखरा स्थित यह शिव मंदिर लगभग दो सौ साल पुराना है। बबुरी के पोखरे के किनारे सुनसान पड़ा यह स्थान लोगों को दिन में भी भयावह लगता था। कस्बे के स्वर्गीय शिव गुलाम साव की वह जमीन कभी-कभार ही परिवार द्वारा इस्तेमाल की जाती थी।

बताते हैं कि एक दिन रात्रि में उन्हें स्वप्न में भगवान शिव का दर्शन प्राप्त हुआ। नींद खुली तो किसी से चर्चा नहीं किए। अगले दिन फिर से स्वप्न आया। धीरे धीरे स्वप्न आने का सिलसिला ही चल पड़ा। एक दिन स्वप्न में ही इन्हें भगवान शिव के मंदिर निर्माण की प्रेरणा मिली। शिव गुलाम साव ने ईश्वर का आदेश मानकर पोखरे के किनारे स्थित अपनी जमीन पर भगवान शिव का शिवलिंग स्थापित कराया।

स्थापना के समय शिव मंदिर के नाम पर यह शिवलिंग केवल एक चबूतरे पर स्थापित किया गया था। भगवान शिव में शिव गुलाम का मन ऐसा रमा कि उन्होंने अपने व्यवसाय की कमाई का अधिकाधिक पैसा मंदिर में ही लगाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे अपनी क्षमता के अनुसार उन्होंने एक छोटा सा मंदिर बनवा डाला। शिव मंदिर के पास स्थित पोखरे पर एक पक्का घाट भी बनवाया ताकि शिव मंदिर की साफ-सफाई तथा जलाभिषेक के लिए पानी सुगमता से श्रद्धालुओं को मिल सके।

शिव गुलाम के परिवार ने श्रद्धालुओं संग मिलकर कराया जीर्णोद्धार

आस्था जुड़ती रही और पूजा पाठ के लिए लोगों की भीड़ लगने लगी। कालांतर में मंदिर के जीर्ण होने पर शिव गुलाम के परिवार व मंदिर के श्रद्धालुओं ने एक भव्य शिवालय के रूप में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। शिव गुलाम द्वारा बनवाया गया घाट उन्हीं के नाम पर आज भी शिव गुलाम घाट के नाम से प्रसिद्ध है। आज भी नर्मदेश्वर महादेव के दरबार में श्रद्धालु अपनी श्रद्धा से अपना योगदान दे रहे हैं ।

प्रधान पुजारी राधेश्याम तिवारी के अनुसार, इस मंदिर में सच्ची श्रद्धा से मांगी गई प्रत्येक मुराद पूरी जरूर होती है। सावन के महीने में मंदिर में श्रद्धालुओं का ताता लगा रहता है। सामान्य दिनो में भी प्रतिदिन पूजन अर्चन के लिए श्रद्धावानों से मंदिर भरा रहता है।

पूजा करने के लिए लोग अपनी बारी का करते हैं इंतजार

भक्त राकेश कुमार का कहना है कि इस मंदिर में स्थानीय लोगों के अलावा बाहर से भी लोग पूजा पाठ के लिए आते हैं। भोर की आरती से लेकर शयन आरती तक मंदिर कभी भी सुना नहीं होता। मंदिर में सुबह के समय इतनी भीड़ होती है कि पूजा करने के लिए श्रद्धालु अपनी बारी का इंतजार करते हैं।

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