Nag Panchami 2023: चंदौली में नागपंचमी पर अनोखी परंपरा, गाली से होती शुरुआत; एक-दूसरे पर फेंकते हैं पत्थर
Nag Panchami 2023 चंदौली में नाग पंचमी पर अनोखी परंपरा है। यहां नागपंचमी के दिन बिसुपुर व महुआरीखास गांव के लोगों द्वारा कंकड़-पत्थर फेंककर वर्षों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन किया जाता है। इस परंपरा की शुरुआत गाली से की जाती है। लंबे समय से चली आ रही इस परंपरा को दोनों गांव के लोग बखूबी निभा रहे हैं।
By Jagran NewsEdited By: Pragati ChandUpdated: Mon, 21 Aug 2023 03:43 PM (IST)
संवाद सूत्र, टांडाकला (चंदौली)। Nag Panchami 2023: नागपंचमी के दिन बिसुपुर व महुआरीखास गांव के लोग एक-दूसरे पर कंकड़-पत्थर फेंकते हैं। वर्षों से चली आ रही परंपरा को देखने के लिए बड़ी संख्या में आसपास के गांवों के लोग आते हैं। युवक, युवतियां, पुरुष और महिलाएं सुबह नाग देवता की पूजन करने के बाद शाम को इस परंपरा का निर्वाह करने के लिए दोनों गांवों के बीच स्थित नाले के पास एकत्र होते हैं। किसी अप्रिय घटना को रोकने के लिए बड़ी संख्या में पुलिस व पीएसी के जवानों को भी तैनात किया जाता है।
वर्षों से चली आ रही ये परंपरा
इस परंपरा की शुरुआत कैसे हुई और किसने की, इसकी जानकारी दोनों गांवों में किसी को नहीं है। बिसुपुर व महुआरी के बीच नागपंचमी के दिन दोनों गांवों के बीच यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। नागपंचमी के दिन सुबह दोनों गांव की महिलाएं व पुरुष गांव में मंदिरों व घरों में नागपंचमी पर्व पर पूजन अर्चन के बाद झूले का आनंद लेते हैं। कजरी गीत के बाद शाम करीब पांच बजे के बाद दोनों गांव की सैकड़ों की संख्या में महिलाएं व पुरुष, युवक व युवतियां दोनों गांवों के बीच नाले पर एकत्र होते हैं।
गाली देकर होती है परंपरा की शुरुआत
परंपरा की शुरुआत लोग एक-दूसरे को गाली देकर करते हैं। फिर शुरू होता है कंकड़-पत्थर फेंकने का दौर। यह तब तक चलता है, जब तक दोनों तरफ से किसी के सिर से खून नहीं निकल जाता। पहले काफी लोग चोटिल हो जाते थे। पुलिसकर्मी भी घायल हो जाते थे लेकिन पुलिस प्रशासन की सक्रियता की वजह से अब केवल रस्म की अदायगी भर होती है।कब से शुरू हुई परंपरा किसी को नहीं पता
महुआरी गांव निवासी पूर्व प्रधान ओमनारायण सिंह व ग्रामीण उमाशंकर यादव ने बताया कि नागपंचमी पर्व पर दोनों गांवों में यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। यह परंपरा कब शुरू हुई और किसने शुरू की इसकी जानकारी उन्हें नहीं है। गांव के बड़े बुजुर्ग भी कुछ नहीं बता पाते हैं। हालांकि समय के साथ इसमें बदलाव हुआ है। अब केवल रस्म अदा की जाती है। ग्रामीणों के अनुसार यदि इस परंपरा का निर्वहन नहीं किया जाए तो अनिष्ट की आशंका बनी रहती है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।