अब यहां गधों की लगेगी मुंह मांगी बोली, लाखों में होती है खच्चरों की कीमत; मुगल काल से लग रहा है ‘गधा मेला’
मंदाकिनी तट पर गधा और खच्चरों का बड़ा बाजार लगता है जहां देश-विदेश से आए कारोबारी बोली लगाते हैं। इस बाजार में अच्छी नस्ल के गधों और खच्चरों की कीमत हजारों से लाखों में होती है। इस वर्ष लगभग 2000 गधे और खच्चर बिकने के लिए उपलब्ध होंगे। बड़े बुजुर्गों ने बताया था कि तपोभूमि में गधा मेला की शुरूआत मुगल काल में हुई थी।
जागरण संवाददाता, चित्रकूट। दीपावली अमावस्या के पांच दिवसीय दीपदान मेला की एक और खासियत है। यह आध्यात्मिक के साथ आर्थिक मेला भी है। पड़ोसी प्रदेश के साथ स्थानीय व्यापारी प्रसाद सामग्री के साथ खाने पीने का व्यापार करते हैं तो गधा और खच्चरों का विशाल बाजार सजता है। मंदाकिनी तट पर गधा का शापिंग माल सज चुका है देश व विदेश से आए कारोबारी आज से गधों की बोली लगाएंगे।
त्योहार में वैसे भी जमकर खरीदारी लोग करते हैं लेकिन दीपावली पर्व की बात ही और है यह खरीदारी का त्योहार ही है। बाजार में कारोबारी ग्राहकों को लुभाने के लिए तरह-तरह के आफर और डिस्काउंट देते हैं, दीपदान मेला में लगने वाले गधा बाजार में डिस्काउंट तो नहीं मिलता है लेकिन नस्ल के अनुसार गधे और खच्चर की मुंह मांगी बोली जरूर लगती है।
एक-एक गधे और खच्चरों की कीमत हजारों व लाखों में होती है। दीपावली अमावस्या के दूसरे दिन परीवा से दो दिन के यह बाजार लगता है जिसमें देश के विभिन्न प्रदेशों से ही नहीं विदेश से भी व्यापारी व खरीदार आते हैं। इस वर्ष भी बिकने के लिए करीब दो हजार से अधिक अच्छी नस्ल के गधों व खच्चरों के आने का अनुमान है।
मुगल शासक औरंगजेब ने लगवाया था पहला मेला
मानिकपुर के रहने वाले 95 वर्षीय राजधर मिश्रा कहते हैं कि बड़े बुजुर्गों ने बताया था कि तपोभूमि में गधा मेला की शुरूआत मुगल काल में हुई थी। मुगल शासक औरंगजेब ने जब प्रभु श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट में चढ़ाई की थी तो रामघाट स्थित शिव मंदिर में राजाधिराज मत्तगजेंद्रनाथ के शिवलिंग को तोड़ना चाहा था, जिससे उनकी पूरी सेना बीमार पड़ गई थी।तमाम सैनिकों व घोड़ों की मौत भी हो गई थी। सैन्य बल में घोड़ों की कमी को पूरा करने लिए औरंगजेब ने यहां पर गधा मेला (बाजार) लगाया था। अफगानिस्तान से व्यापारी अच्छी नस्ल के खच्चर लेकर आए थे। तब से यह परंपरा चल रही है।
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