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    ट्रेन से टकराकर घायल बाघ शावक की मौत, सर्चिंग में बाघिन और दो शावकों के मिले पद चिह्न

    रानीपुर टाइगर रिजर्व से सटे मध्यप्रदेश जिला सतना के चित्रकूट में एक बाघ शावक की मौत हो गई। मुंबई-हावड़ा ट्रैक में हजारापुर नाला के पास परिवार के साथ ट्रैक पार कर रहा था। तभी ट्रैक पार करते समय ट्रेन की चपेट में आ गया। उसका मुकुंदपुर जू सेंटर में इलाज चल रहा था जहां उसकी मौत हो गई।

    By hemraj kashyap Edited By: Anurag Shukla1Updated: Sun, 06 Jul 2025 07:59 PM (IST)
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    हजारापुर नाला के पास मुंबई-हावड़ा ट्रैक पर पड़ा शावक। फाइल फोटो

    संवाद सहयोगी, जागरण, मानिकपुर (चित्रकूट)। मुंबई-हावड़ा ट्रैक में ट्रेन की चपेट में आए बाघ की मादा शावक की मौत हो गई। मुकुंदपुर जू सेंटर में उसका इलाज चल रहा था। आशंका जताई जा रही है कि मादा शावक बाघिन और अन्य शावकों के साथ ट्रैक पार कर रहा था। 

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    घटना रानीपुर टाइगर रिजर्व से सटे मध्यप्रदेश जिला सतना के मझगवां रेंज के अंतर्गत आने वाले चितहरा बीट के हजारापुर पुल के पास की है। यहां रेलवे ट्रैक में रविवार की सुबह करीब सात बजे दानापुर-पुणे एक्सप्रेस अप की टक्कर से बाघ की आठ माह की मादा शावक गंभीर रूप से घायल हो गई। चितहरा रेलवे स्टेशन के प्रबंधक से जानकारी मिलने पर वन विभाग सतना की टीम मौके पर पहुंची। उसको रेस्क्यू कर मुकुंदपुर जू सेंटर में इलाज के लिए भेजा।

    रेंजर रंजन सिंह परिहार और पंकज दुबे ने कर्मियों साथ मौके पर पहुंचे शावक का पशु चिकित्सालय मझगवां ले गए। प्राथमिक उपचार कराया। डीएफओ मयंक चांदीवाल के निर्देश पर मुकुंदपुर जू सेंटर स्थित पशु चिकित्सालय रेफर कर दिया। डीएफओ ने बताया कि सिर पर गंभीर चोट आने पर शावक कोमा पर चली गई है। इसके लिए रीवा पशु चिकित्सालय से संपर्क कर इलाज किया जा रहा है।

    रीवा वेटरनरी टीम के मुकुंदपुर पहुंचने की सूचना मिली है। फिलहाल शावक की हालत बेहद नाज़ुक है। उन्होंने बताया कि आसपास सर्चिंग के दौरान बाघिन और दो शावकों के पदचिन्ह मिले हैं, जिससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि वह अपने पूरे परिवार के साथ रेलवे ट्रैक को पार कर रही थी। गनीमत रही कि बाघ का पूरा परिवार ट्रेन की चपेट में नहीं आया है।

    दस साल पहले फेंसिंग को भेजा था प्रस्ताव

    बताते हैं कि वन विभाग सतना ने यहां पर लगातार बढ़ते बाघों की संख्या को देखते हुए भोपाल मुख्यालय से रेलवे ट्रैक पर फेंसिंग के लिए वर्ष 2016 और 2018 में प्रस्ताव भेजा था लेकिन अनुमति नहीं मिली थी। वन विभाग ने अपने बजट से करीब एक किलोमीटर तक फेंसिंग कराई थी। जबकि फेंसिंग लगभग 10 किलोमीटर तक होना चाहिए था। इसके लिए रेलवे को भी पत्र लिखा था।