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UP News: सीओ जियाउल हक हत्याकांड में 11 साल बाद आया फैसला, माता-पिता बोले-दोषियों की उम्र कैद से कलेजे को मिली थोड़ी ठंडक

सीओ जियाउल हक हत्याकांड में 11 साल बाद फैसला आ गया है। सीबीआई कोर्ट ने 10 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। इस फैसले से पीड़ित परिवार को थोड़ी राहत मिली है। माता-पिता का कहना है कि दोषियों को फांसी की सजा होनी चाहिए थी। गांव और ज्वार के लोगों ने भी सीबीआई कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है।

By SANJAY YADAV Edited By: Vivek Shukla Updated: Thu, 10 Oct 2024 08:43 AM (IST)
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पिता शमशुल हक व मां हाजरा के आंखों में आ गए आंसू।
प्रमोद राय, खुखुंदू। प्रतापगढ़ जिले के कुंडा में 11 वर्ष पहले गोली मारकर हुई सीओ जियाउल हक के मामले में सीबीआई न्यायालय का बुधवार को फैसला आ गया। घटना में शामिल 10 आरोपितों को उम्र कैद की सजा सुनाए जाने के बाद पिता शमशुल हक व मां हाजरा के आंखों में आंसू आ गए।

मां-पिता बोले, उम्र कैद की सजा से थोड़ी सी कलेजे को ठंड मिली है। आरोपितों को उम्र कैद की सजा होनी चाहिए। तभी मेरे कलेजे को पूरी तरह से ठंड मिलेगी। क्योंकि उन्होंने मेरा हीरा व मेरे बुढ़ापे की लाठी छीन ली। उधर गांव व ज्वार के लोगों ने भी सीबीआई न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है।

खुखुंदू थाना क्षेत्र के जुआफर गांव के रहने वाले जियाउल हक की दो मार्च 2013 को प्रतापगढ़ के कुंडा के बलीपुर में बवाल के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। मामले की सीबीआइ ने जांच की और राजा भैया समेत कई लोगों को क्लीनचिट भी दे दी।

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शुक्रवार को सीबीआई न्यायालय ने सुनवाई के बाद 10 आरोपितों को दोषी पाया था। बुधवार को सभी आरोपितों को सजा सुनाई जानी थी। सुबह से ही सीबीआई के फैसले पर घर के साथ ही गांव व ज्वार के लोगों की भी निगाहें टिकी थी।

शाम ढलते ही सीबीआइ न्यायालय का फैसला आ गया। सीबीआइ न्यायालय ने दोषी पाए गए सभी आरोपितों को उम्र कैद की सजा सुना दी। इसकी सूचना जैसे ही घर पहुंची पिता शमशुल हक व मां हाजरा खातून के आंखों में आंसू आ गए।

मां-पिता बोले, सीबीआई न्यायालय का फैसला थोड़ा सकून देने वाला है। आरोपितों को आजीवन कारावास की सजा मिलती तो कलेजे को पूरी तरह से ठंडक मिल जाती।

जिआउल हक की हत्‍या 11 वर्ष पहले हुई थी। जागरण

मेरी तड़प उनके परिवार के लोगों को भी मिलनी चाहिए

सीबीआई का फैसला आने के बाद जियाउल हक की मां हाजरा खातून ने कहा कि हम अपने लाल के लिए बहुत तड़पे हैं। मेरे लाल को मुझसे छीनने वाले के परिवार के लोगों को भी इस तरह की तड़प मिलनी चाहिए। तब उन्हें यह समझ में आएगा कि उन्होंने ऐसा क्यों किया? मेरे बेटे की हत्या करने वालों को फांसी की सजा मिलनी चाहिए। ताकि उनके परिवार को भी तड़प महसूस हो सके।

फैसले को लेकर दिन भर उत्सुक रहे लोग

11 वर्ष पहले सीओ जुआउल हक की हुई हत्या के बाद पूरे देश की राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई थी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी, तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, डीजीपी, जयाप्रदा समेत कई बड़े नेता भी गांव पहुंचे। 20 दिनों तक गांव में नेताओं व प्रशासनिक अधिकारियों का जमावड़ा लगा रहा।

दिन बीतने के बाद लोग धीरे-धीरे सीओ जियाउलहक व उस हत्याकांड को भूल गए थे। अचानक सीबीआई न्यायालय की सुनवाई में 10 दोषी कराए दिए जाने के बाद एक बार फिर लोगों के जेंहन में वह घटना जिंदा हो गई। सुबह से ही लोग सीबीआई के फैसले पर अपनी निगाहें टिकाए हुए थे।

दोपहर तक लोग फैसले पर निगाहें टिकाए हुए थे। जैसे-जैसे दिन ढलते जा रहे थे, लोगों को लग रहा था कि फैसला आज नहीं आएगा। अचानक शाम को सीबीआई का फैसला आया और उम्र कैद की सजा सुनाए जाने की सूचना गांव आई तो लोग प्रसन्न हो गए।

फैसले के दिन भी पिता गए थे कोर्ट

बेटे जियाउल हक की हत्या के बाद बहू परवीन आजाद ने ससुराल से अनबन करके चल अचल संपत्ति पर बाद दाखिल कर दिया, बाद 2018 में निरस्त हो गया, फिर जिला जज के यहां दोबारा दाखिल किया और जिला जज के यहां से 25 सितंबर 2024 को बाद खारिज कर दिया।

मुकदमे के सिलसिले में फैसले के दिन भी शरीर अस्वस्थ रहने के बावजूद पिता समसुल हक देवरिया कोर्ट गए थे। सीबीआई का जैसे फैसला आया, वह ऑटो से अपने घर पहुंचे।

सीबीआई न्यायालय का फैसला आने के बाद प्रसन्न मुद्रा में गांव के लोग। जागरण

इनकी भी सुनिए

गांव के पूर्व प्रधान बाबूलाल यादव, प्रधान सतपाल यादव, शेर मुहम्मद,अब्दुल हसन, भुट्टू ऊर्फ इब्राहिम, खुर्शीद खान, नूरुल हसन, फैजान ,फरहान मोहम्मद, इकराम, फरहान, अहमद, कैसर, रोशन ने कहा कि गांव के होनहार की हत्या हुई थी, हत्यारों को आजीवन कारावास मिलने से ग्रामीण खुश हैं। आरोपितों को फांसी की सजा होनी चाहिए थी।

नौकरी के 3 साल बाद ही दुनिया से ओझल हो गए जियाउल हक

जुआफर गांव के रहने वाले जियाउल हक काफी होनहार थे, उन्होंने अपने जीवन का उद्देश्य पढ़ाई के साथ ऊंचे ओहदे पर जाने की ठान ली थी, गरीबी होने के बावजूद उनके हौसले में कमी नहीं आई और 2009 में पीपीएस की परीक्षा पास किया। ट्रेनिंग के बाद पहली तैनाती मुरादाबाद हुई, 2010 में कानपुर हुआ, 2011 में आंबेडकर नगर के दो तहसीलों में तैनाती मिली और 2012 में ईद के दिन प्रतापगढ़ कुंडा में जियाउल हक की तैनाती की गई।

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तैनाती के बाद से ही पत्नी और परिवार के लोगों को हमेशा संदेह रहता था। इलाका में कुछ लोगों का वर्चस्व होने के चलते जियाउल हमेशा परेशान रहते थे और अपने पत्नी से भी इस बात को बताते रहते थे और आखिरकार वह सदा के लिए दुनिया से ओझल हो गए। शादी के 1 साल बाद ही पत्नी बेवा हो गई।

माता-पिता व दादी ने किया था हजयात्रा

2013 में बेटे जिया उल हक की हत्या ने माता-पिता व दादी को झकझोर कर रख दिया। होनहार बेटे की गम माता और पिता को सोचने पर मजबूर कर दिया। मां हाजरा खातून, दादी मुतिबुन निशा व पिता शमशुल हक अरब में हज यात्रा के लिए निकले। 2014 में तीनों में 7 लाख से अधिक रुपए का खर्च आया था।

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