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देवरिया के लाल को तिरंगा फहराने से रोक नहीं पाई थी गोल‍ियों की बौछार, 13 वर्ष की उम्र में शहीद हुआ था जांबाज

देश की आजादी के लिए 13 साल की उम्र में शहीद होने वाले देवरिया के लाल रामचंद्र विद्यार्थी की शहादत मिसाल है। क्षेत्र के लोग आज भी बालक की शहादत पर गर्व महसूस करते हैं। अमर शहीद रामचंद्र विद्यार्थी बचपन से ही देश भक्त थे। उनकी प्रतिमा गांव के युवाओं को प्रेरित करती है। आइए जानते हीं अमर शहीद के शहादत की कहानी...

By Pragati ChandEdited By: Pragati ChandUpdated: Fri, 11 Aug 2023 10:55 AM (IST)
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अमर शहीद रामचंद्र विद्यार्थी। - फाइल फोटो

देवरिया, जेएनएन। आज हम आपको उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के एक ऐसे अमर शहीद के बारे में बताने जा रहे हैं, जो बचपन से ही देश भक्त थे। जिले के नौतन हथियागढ़ गांव के रहे वाले अमर शहीद रामचंद्र विद्यार्थी छात्र जीवन से ही आजादी के दीवाने थे, यही वजह थी कि 1942 में अंग्रेजों के खिलाफ चल रहे भारत छोड़ो आंदोलन में अमर शहीद रामचंद्र विद्यार्थी कूद पड़े थे।

बात तब की है जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर भारत छोड़ो आंदोलन की आग पूरे देश में धधक रही थी। देवरिया भी इससे अछूता नहीं था। अंग्रेजों के खिलाफ यहां भी बगावत का बिगुल बज चुका था। यहीं के एक छात्र थे रामचंद्र विद्यार्थी। 14 अगस्त 1942 को अपने गांव से पैदल करीब 32 किमी चलकर देवरिया पहुंचे। उस वक्त की देवरिया कचहरी (वर्तमान में गांधी आश्रम परिसर में स्वास्थ्य विभाग का दवा भंडार) भवन पर ब्रिटिश हुकूमत के यूनियन जैक ध्वज को उतार कर तिरंगा झंडा फहराने लगे। यह देख उस वक्त के परगनाधिकारी उमाराव ¨सह ने अंग्रेज सैनिकों को गोली चलाने का आदेश दिया, लेकिन गोलियों की बौछार के बीच भी विद्यार्थी ने तिरंगा फहराया। गोलियों से छलनी होते हुए भी रामचंद्र विद्यार्थी भारत माता की जय का उद्घोष कर शहीद हो गए। देखते-देखते उनकी शहादत की खबर पूरे क्षेत्र में फैल गई। इसी के बाद पूर्वी उत्तर प्रदेश में स्वाधीनता आंदोलन की आग और धधकने लगी।

माता-पिता के अंदर भी थी देशभक्ति की भावना

रामचंद्र विद्यार्थी के पिता बाबूलाल प्रजापति व मां श्रीमती मोती रानी के अलावा उनके बाबा भर्दुल प्रजापति के अंदर भी देश को आजाद कराने की ललक थी। इनका पुश्तैनी कारोबार मिट्टी का बर्तन बनाना था। लेकिन स्वाधीनता आंदोलन के बीच क्रांतिकारियों को अपने घर में ठौर भी देते थे। शहीद रामचंद्र विद्यार्थी का जन्म 1 अप्रैल 1929 को छोटी गंडक नदी तट के गांव नौतन हथियागढ़ में हुआ था। वह बसंतपुर धूसी स्थित स्कूल में पढ़ते थे।

प्रेरित करती है विद्यार्थी की प्रतिमा

शहीद रामचंद्र विद्यार्थी के पैतृक गांव में सरकार व ग्रामीणों के सहयोग से प्रतिमा लगाई गई है। गांव के बच्चे प्रतिमा देखकर गर्व का अनुभव करते हैं। गांव के सुरेश प्रसाद, सुनील कुमार, नंदलाल कहते हैं कि हमें विद्यार्थी पर गर्व है।

पंडित नेहरू भी थे प्रभावित

स्वाधीनता आंदोलन के अग्रणी पंक्ति में गांधी जी के साथ चलने वाले पंडित जवाहर लाल नेहरू भी रामचंद्र विद्यार्थी से खासे प्रभावित थे। नेहरू ने देवरिया में अपने भ्रमण के दौरान रामचंद्र विद्यार्थी के पिता को देवरिया के अतिथि गृह में सम्मानित भी किया था।