Deoria Lok Sabha: देवरिया लोकसभा में हल्दी की खेती को तारणहार का इंतजार, 2004 में हुई थी उद्योग लगाने की घोषणा
देवरिया में उद्योग लगाने का वादा था लेकिन इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। मुख्यमंत्री रहते हुए स्व. मुलायम सिंह यादव ने भी उद्योग लगाने की घोषणा की थी लेकिन इसे धरातल पर नहीं उतारा गया। एक बार फिर चुनाव आया है इस खेती से जुड़े किसानों के मन में एक बार फिर उम्मीद जगी है। हल्दी की खेती की दुश्वारियों पर केंद्रित देवरिया से सौरभ कुमार मिश्र की रिपोर्ट...
हल्दी की खेती के लिए विख्यात रहा देवरिया जिले का हल्दिहवा बंगरा को अब तारणहार का इंतजार है। हर चुनाव में यहां उद्योग लगाने का आश्वासन मिलता है लेकिन चुनाव परिणाम के बाद किसी को याद नहीं रहता। यहां से हल्दी कभी दूसरे प्रदेशों को भी भेजी जाती थी लेकिन धीरे-धीरे स्थिति खराब होने लगी।
एक दौर था जब देवरिया जनपद का हल्दिहवा बंगरा हल्दी की खेती के लिए विख्यात था। यहां की हल्दी बिहार से लेकर पश्चिम बंगाल तक भेजी जाती थी। किसानों के लिए हल्दी की खेती नकदी फसल हुआ करती थी। धीरे-धीरे कुछ दुश्वारियों के चलते हल्दी का बाजार कम होता चला गया, जिससे किसानों का इस खेती से मोहभंग होने लगा। अगर हल्दी की खेती को प्रोत्साहन मिले, उद्योग लगाया जाए तो एक बार फिर से यहां खेतों में बड़े पैमाने पर हल्दी की फसल लहलहाएगी।
2004 में हुई थी उद्योग लगाने की घोषणा
पूर्व सांसद स्व. हरिकेवल प्रसाद द्वारा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भागवत भगत खजड़ी वाले की याद में बंगरा बाजार में चार जनवरी 2004 को समारोह आयोजित किया गया था। वहां तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव आए थे। उन्होंने मंच से बंगरा बाजार में हल्दी उद्योग लगवाने की घोषणा की थी।घोषणा के बाद किसानों में उम्मीद जगी, लेकिन आशा की यह किरण भी धीरे-धीरे गुमनामी के अंधेरे में चली गई। ऐसा नहीं कि किसानों ने खेती छोड़ दी है। किसान खेती करते हैं लेकिन उसके अनुरूप खरीदार नहीं मिलते। यह खेती भाटपार रानी क्षेत्र की भाट माटी पर होती है।
इसे भी पढ़ें- प्रयागराज में छाया बंदरों का ऐसा खौफ, लोग घरों में हो गए हैं कैद, इन्हें पकड़ने के लिए पांच लाख रुपये का पास है बजट लेकिन...हल्दी के साथ बोएं और भी फसलें हल्दी के साथ सहफसली खेती भी की जाती है। जून में खेत तैयार करने के बाद उर्वरक डाला जाता है और मक्का व अरहर के साथ हल्दी के तने की बोआई की जाती है। सबसे पहले मक्के की फसल काट लेते हैं और हल्दी को भी नवंबर में खोद कर निकाल लेते हैं। साथ में अरहर भी तैयार हो जाती है। हल्दी की फसल पांच माह में तैयार होती है। हल्दी की खेती को पानी की आवश्यकता नहीं है। वर्षा हुई तो हरियाली के लिए यूरिया खाद डालते हैं।
किसान ऐसे तैयार करते हैं हल्दी खेत से खोदकर निकालने के बाद हल्दी को सबसे पहले बड़े कड़ाहे में उबालते हैं। इसके बाद उसे धूप में सुखाते हैं। हल्दी को गन्ने के सूखे पत्ते के बीच रखकर जलाया जाता है। जिससे हल्दी के ऊपर रेशा जल जाता है।इसे अब बोरा या कपड़े के बीच रखकर रगड़ देते हैं और हल्दी अपने रंग में आ जाती है। इसके बाद यह बाजार में बेचने के लिए चली जाती है। कच्ची हल्दी 20 से 25 रुपये प्रति किग्रा तो पक्की हल्दी 175 रुपये प्रति किलोग्राम से 200 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिक रही है।
इन गांवों के किसान करते हैं हल्दी की खेती भाटपाररानी तहसील क्षेत्र के बंगरा बाजार क्षेत्र के गांवों में सबसे अधिक हल्दी की खेती की जाती है। जिसमें जासपार, बंगरा, पिपरा बघेल, कुबेरुआ, करौंदा, भवानीछापर, माड़ीपुर, भठवा तिवारी, बखरी बाजार, करोंदा, चुपवा, करौनी, मिस्कारचक, मायापुर, धनराज छापर सहित 50 गांवों में तकरीबन 1000 किसान पूरे मनोयोग से हल्दी की खेती करते हैं। बाजार मिले तो किसानों की खेती का रकबा और बढ़ सकता है।
इसे भी पढ़ें- एकतरफा मोहब्बत में युवक बना कातिल, सगाई के दिन युवती को चाकू से गोदकर उतारा मौत के घाटभाटपार रानी में 1990 तक गुलजार था बाजार1990 के दशक तक 500-700 हेक्टेयर क्षेत्रफल में हल्दी बोई जाती थी। तब 15 हजार से अधिक किसान हल्दी की बोआई करते थे। भाटपार रानी तहसील क्षेत्र के रामपुर बुजुर्ग से लेकर भवानी छापर तक स्याही नदी के किनारे के गांवों में सबसे अच्छी हल्दी की खेती होती थी। मौजूदा समय में 50 गांवों में 100 हेक्टेयर से भी कम क्षेत्रफल में तकरीबन एक हजार किसान सामान्य रूप से खेती करते हैं। धीरे-धीरे उपज का अच्छा मूल्य नहीं मिलने से किसान इसकी खेती से किनारा करने लगे।
15 हजार से अधिक किसान देवरिया जनपद में हल्दी की बोआई करते थे। भाटपार रानी तहसील क्षेत्र के रामपुर बुजुर्ग से लेकर भवानी छापर तक स्याही नदी के किनारे के गांवों में सबसे अच्छी हल्दी की खेती होती थी।किसानों ने क्या कहाआज भी किसान उम्मीद पाले बैठे हैं कि कोई तारणहार आएगा और हल्दी उद्योग लगाएगा। हल्दी उद्योग लगने के साथ ही जब मांग बढ़ेगी तो किसान अपने आप खेती करना शुरू कर देंगे। हल्दी की बढ़ावा देने के लिए कुछ नहीं किया गया। नेताओं ने सिर्फ आश्वासन दिया है। दुर्गा सिंह, किसान, बंगरा बाजार।
स्थानीय व्यापारी आते हैं और बाजार मूल्य से काफी कम मूल्य पर किसानों से हल्दी खरीद कर ले जाते थे। जबकि व्यापारी दोगुणा से भी अधिक लाभ कमाते थे। प्रोत्साहन मिले तो एक बार फिर हल्दी की फसल लहलहाएगी। इससे किसानों को फायदा होगा। जगदीश भगत, किसान बंगरा बाजार।हल्दी की खेती से किसानों की किस्मत चमक सकती है लेकिन इस खेती को प्रोत्साहित नहीं किया गया। किसान अब नाम मात्र की खेती करते हैं। अगर खरीदार मिलें और उचित मूल्य मिले तो एक बार फिर हल्दिहवा बंगरा क्षेत्र के किसानों के लिए समृद्धि के द्वार खुल सकते हैं। कन्हैया लाल यादव, किसान, बंगरा बाजार।
जन प्रतिनिधियों ने हल्दी की खेती की तरफ ध्यान नहीं दिया। अगर कारखाना लग जाए और उपज का बेहतर मूल्य मिलने लगे तो आज एक बार फिर से घर-घर हल्दी की खेती शुरू हो जाएगी। हल्दी की उपज का बेहतर मूल्य न मिलना भी इसकी खेती से किसानों के मुंह मोड़ने का एक कारण है। भोज भगत, किसान, बंगरा बाजार।समय के साथ बिहार व बंगाल के व्यापारियों ने मुंह मोड़ा, जनप्रतिनिधियों ने भी की उपेक्षा
लागत अधिक होने के कारण बिहार एवं पश्चिम बंगाल के व्यापारियों को मुनाफा कम होने लगा। जिससे उन्होंने आना बंद कर दिया। किसान जन प्रतिनिधियों से हल्दी उद्योग लगाने की मांग करते रहे लेकिन किसी ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया। हल्दी पैदा करने के बाद खरीदार नहीं मिलने से किसानों ने रकबा घटा दिया।
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