देश भर में बचीं हैं तीन दर्जन सर्कस कंपनी
जागरण संवाददाता मथुरा: टीवी और इंटरनेट ने न केवल मनोरंजन की दुनिया का चेहरा बदल दिया है बल्कि खेल के
By JagranEdited By: Updated: Fri, 02 Jun 2017 12:28 AM (IST)
जागरण संवाददाता मथुरा: टीवी और इंटरनेट ने न केवल मनोरंजन की दुनिया का चेहरा बदल दिया है बल्कि खेल के बड़े मैदान भी गुम हो चले हैं। इसका सीधा असर सर्कस पर पड़ा है। शहरों में सर्कस लगाने को अब न तो बड़े मैदान मिलते हैं और न ही दर्शक जुट पाते हैं। नतीजा देश भर में महज 30-35 सर्कस कंपनी ही इस विधा को बचाने के लिए जूझ रही हैं।
खुद को रुला के दूसरों को हंसाना ही सर्कस है। मेरा नाम जोकर फिल्म में राज कपूर का यह संवाद सर्कस के कलाकारों के दर्द और पीड़ा की साश्वत अभिव्यक्ति है। टीवी और इंटरनेट ने बच्चों से लेकर बड़ों तक की मनोरंजन की रुचियों को बदल दिया है। इस वक्त सर्कस के सामने सबसे बड़ी चुनौती उसके अस्तित्व को बचाने की है। यहां परिवार की आजीविका के लिए सर्कस के कलाकार मेहनत के साथ जान जोखिम में डालकर लोगों का भरपूर मनोरंजन करते हैं और मन ही मन बस यही गुनगुनाते रहते हैं कि जीना यहां मरना यहां इसके सिवा जान कहां। यह दर्द और पीड़ा शहर के महाविद्या स्थित रामलीला मैदान चल रहे हैं जैमिनी सर्कस के मैनेजर कृष्णदास की है। सर्कस की समस्याओं की चर्चा करते हुए उनका कहना है कि शहरों में बड़े ग्राउंड न होने की समस्या बढ़ गयी है। महंगाई के दौर में इसका खर्च उठाना एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। पहले खर्चे कम थे सर्कस की आय अच्छी थी। अब सब उल्टा हो गया है। जानवरों को लेकर लगे प्रतिबंध के बाद बच्चों का इससे जुड़ा कौतूहल कम हो गया है। सर्कस ही ऐसा स्वस्थ्य मनोरंजन है जिसको पूरा परिवार एक साथ बैठकर देख सकता है। - कीनिया के कलाकार भी कर रहे है काम- मथुरा: सर्कस में नागालैंड, मणिपुर के कलाकारों के अलावा छह कीनियाई भी अपनी जिमनास्टिक कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। कीनिया के कलाकारों द्वारा ग्रुप एक्रोवेट, रोप एक्रोवेट, चेरयर बेलेंस का प्रदर्शन दर्शकों को रिझा रहा है। सर्कस में 25 पुरुष और 15 महिला कलाकार हैं।
- शिफ्ट होने में लगता है एक सप्ताह- सर्कस का साजो-सामान इतना होता है कि एक शहर से दूसरे शहर में शिफ्ट करने में एक सप्ताह लग जाता है। इसकी ढुलाई और उतराई में करीब पांच सौ मजदूर लगते हैं।
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