Etah Lok Sabha Election: गठबंधन में नाम का 'हाथ', सपा को अपना ही साथ; पढ़ें एटा में कैसा है चुनाव का हाल
Etah Lok Sabha Election सपा में भी चर्चा हो रही है कि आईएनडीआई गठबंधन में कांग्रेस का हाथ तो सिर्फ नाम का है। समाजवादी पार्टी को सिर्फ अपना ही साथ है। कांग्रेस की स्थिति यह है कि उसके जिलाध्यक्ष तक पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। कुछ और वरिष्ठ पदाधिकारियों ने पार्टी छोड़ दी। कार्यकर्ता अपने नेतृत्व के प्रति नाराजगी जता रहे हैं।
जागरण संवाददाता, एटा। समाजवादी पार्टी आईएनडीआई गठबंधन के तहत एटा लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ रही है। सपा के देवेश शाक्य एटा लोकसभा सीट पर प्रत्याशी हैं। कांग्रेस से सपा का गठबंधन है। इसलिए यहां से कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा। यह गठबंधन यहां सिर्फ नाम का है, क्योंकि दशकों से किसी भी चुनाव में कांग्रेस की स्थिति जमानत बचाने लायक नहीं रही। चंद वोटों में उसके प्रत्याशी सिमटते रहे।
सपा में भी चर्चा हो रही है कि आईएनडीआई गठबंधन में कांग्रेस का हाथ तो सिर्फ नाम का है। समाजवादी पार्टी को सिर्फ अपना ही साथ है। कांग्रेस की स्थिति यह है कि उसके जिलाध्यक्ष तक पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। कुछ और वरिष्ठ पदाधिकारियों ने पार्टी छोड़ दी। कार्यकर्ता अपने नेतृत्व के प्रति नाराजगी जता रहे हैं। ऐसे में सपा अपने बूते पर ही इस सीट पर चुनाव लड़ रही है। गठबंधन तो सिर्फ नाम का है।
कांग्रेस के इक्का-दुक्का पदाधिकारी कभी-कभी सपा के मंच पर नजर आ जाते हैं। गठबंधन में कांग्रेस ने अपने कई पुराने नेताओं को यहां खो दिया। वैसे भी देखा जाए तो पिछला चुनावी इतिहास गवाह है कि यहां गैर भाजपा गठबंधन की दाल कभी नहीं गली। विपक्षी गठबंधन का चुनाव का हाल बयां करती अनिल गुप्ता की रिपोर्ट...
लोकसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन है। गठबंधन के नाम पर सपा एकला चलो की तर्ज पर चुनाव में चल रही है। कांग्रेस यहां दशकों से बेवजूद है। वैसे भी वर्ष 2014 से उसकी उपस्थिति लोकसभा चुनाव में सीधे तौर पर नहीं है। लोकसभा क्षेत्र में अपने शून्य जनाधार का आंकलन करके वह सीधे चुनाव में उतरने से बचती रही है। 2014 में कांग्रेस ने महानदल के साथ गठबंधन किया था। और 2019 में राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी को अपना समर्थन दे दिया था।
कांग्रेस ने गठबंधन के प्रयोग यहां किए, लेकिन यहां असफल रहे। इस बार वह समाजवादी पार्टी के साथ आ गई। निरंतर तीसरी बार कांग्रेस का प्रत्याशी यहां चुनाव मैदान में नहीं है। दशकों से चाहे विधानसभा का चुनाव हो या फिर लोकसभा का, कांग्रेस करिश्मा नहीं कर पाई। जमानत बचाने के लिए उसके प्रत्याशी तरसते रहे।
समाजवादी पार्टी के नेता भी अच्छी तरह जानते हैं कि कांग्रेस के साथ आने से कुछ भी भला नहीं होने वाला, जो कुछ भी करना है, अपने दम पर करना है। इसलिए सपा, मुद्दों को दरकिनार कर जातीय समीकरणों पर अधिक जोर दे रही है। पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक यानी कि पीडीए का मुद्दा उछालकर पार्टी ने नई बहस छेड़ दी है।
सपा के इस फार्मूले से अगड़े सोचने को विवश हैं कि चुनावी राजनीति में क्या इस तरह के फार्मूला कारगर हो सकते हैं। पूर्व में समाजवादी पार्टी यहां एमवाई फैक्टर के तहत चुनाव लड़ती रही है। दो बार उसे सफलता भी मिली, लेकिन 2009 और 2014 के बाद यह फैक्टर यहां सपा के लिए कामयाब नहीं रहा।इस बार परंपरा बदलकर पार्टी यादव मोहजाल से निकलकर बाहर आई और शाक्य प्रत्याशी को उतार दिया। भाजपा भी शाक्यों को लेकर यह साबित कर रही है कि पार्टी में शाक्यों का पूरा ख्याल रखा जा रहा है। भले ही एटा में शाक्य प्रत्याशी न हो। मगर आशीष शाक्य को वह पार्टी में लेकर आई है। आशीष पहले सपा से टिकट मांग रहे थे। जब नहीं मिला तो उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया। इसके अलावा भाजपा सपा के जाल को तोड़ने के लिए शाक्य विरादरी के स्थानीय छत्रपों को अपने पाले में लाने की मुहिम छेड़ दी है।
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