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Dussehra 2023: यहां दशहरे में नहीं जलाया जाता रावण, श्रद्धालु करते हैं पूजा-आरती; फिर दशानन पर बरसाते हैं पत्थर

Dussehra 2023 दशहरा देश भर में भगवान राम के हाथों दशानन रावण के वध और उसके बड़े-बड़े पुतलों का दहन कर मनाया जाता है। लेकिन यहां जसवंतनगर में विश्वविख्यात ऐतिहासिक रामलीला जो पिछले 164 वर्षों से हो रही है इसमें रावण का दहन नहीं किया जाता बल्कि रावण के स्वरूप का वध का वध होता है।

By gaurav dudejaEdited By: Abhishek PandeyUpdated: Mon, 23 Oct 2023 03:55 PM (IST)
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यहां दशहरे में नहीं जलाया जाता रावण, श्रद्धालु करते हैं पूजा-आरती; फिर दशानन पर बरसाते हैं पत्थर

आसिफ खान, जसवंतनगर। दशहरा देश भर में भगवान राम के हाथों दशानन ''रावण'' के वध और उसके बड़े-बड़े पुतलों का दहन कर मनाया जाता है। लेकिन यहां जसवंतनगर में विश्वविख्यात ऐतिहासिक रामलीला जो पिछले 164 वर्षों से हो रही है इसमें रावण का दहन नहीं किया जाता बल्कि रावण के स्वरूप का वध का वध होता है।

जलाने के बजाय रावण के पुतले पर पत्थर बरसा कर, लाठियों से पीटकर उसके टुकड़े कर दिए जाते हैं और फिर वहां मौजूद लोग उन टुकड़ों को उठाकर घर ले जाते हैं। रावण की तेरहवीं भी की जाती है। इसमें नगर के लोगों को आमंत्रित किया जाता है।

यहां के लोग कई जगहों पर रावण की आरती और पूजा किए जाने के साथ-साथ उसकी जय जय कार भी करते हैं और रावण के पुतले के टुकड़ों को वर्ष भर अपने घर में सहेज कर रखते हैं। इसके पीछे लोगों की मान्यता है कि इससे बच्चों को बुरी नजर नहीं लगती। घर के सदस्यों को बाधाएं नहीं सताती, रोग व अकाल मौत नहीं होती। व्यापार, जुए, सट्टे में हर कीमत में फायदा होता है।

दशहरा के दिन सड़क पर सेना के साथ घूमता है रावण

दशहरा के दिन जब रावण अपनी सेना के साथ नगर की सड़कों से राम से युद्ध को निकलता है तब सड़कों पर उसकी विद्वता और पांडित्य की लोग तारीफ करते हैं। उसकी पूजा और आरती करते हैं। यह परंपरा 40 वर्ष पूर्व यहां के जैन बाजार में शुरू हुई थी।

रामलीला के मंचन के दौरान रावण-राम से युद्ध करने जाते वक्त नगर की आराध्य देवी केला गमा देवी के मंदिर जा रहा होता है तब बाजार के दुकानदार बड़ी पारातों में घी, कपूर, अगरबत्ती आदि जलाकर उसकी आरती उतारते हैं। रावण अपने माथे पर त्रिपुंड लगाता था, इसीलिए आरती करते वक्त लोग पीला टीका अपने माथे पर लगाते हैं।

नगर की सड़कों पर राम और रावण के बीच रोमांचक युद्ध कई घंटों चलता है। उसके बाद रामलीला में ये युद्ध जारी रहता है। रावण वध के लिए भगवान राम निश्चित पंचक मुहूर्त तक युद्ध करते रहते हैं। विभीषण द्वारा राम के कान में जैसे ही रावण की नाभि में अमृत होने का राज बताया जाता है। राम अंतिम वांण, रावण पर छोड़ते हैं और पात्र बना रावण मृत्यु को पाता है।

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रामलीला समिति के प्रबंधक राजीव बबलू गुप्ता और उप प्रबंधक ठा. अजेंद्र सिंह गौर कहते हैं कि रावण की आरती या पूजा की परंपरा दक्षिण भारत की है, लेकिन फिर भी उत्तर भारत के जसवंतनगर ने इसे खुद में क्यों समेटा हुआ है, यह अपने आप में ही एक अनोखा प्रश्न है।

1855 में हुई थी रामलीला की शुरुआत

जानकार बताते हैं कि रामलीला की शुरुआत यहां 1855 में हुई थी लेकिन 1857 के गदर ने इसको रोका। फिर 1859 से यह रामलीला लगातार जारी है। उन्होंने बताया कि यहां रावण, मेघनाथ, कुंभकरण तांबे, पीतल और लोहा धातु से निर्मित मुखौटे पहन कर मैदान में लीलाएं करते हैं।

शिवजी के त्रिपुंड का टीका भी इनके माथे पर लगा हुआ होता है। रावण की तेरहवीं की परंपरा रामलीला मैदान में रावण का लगभग 15 फीट ऊंचा रावण का पुतला नवरात्र की सप्तमी को लग जाता है। शाम से ही राम और रावण के बीच युद्ध शुरू हो जाता है, जो डोलों पर सवार होकर लड़ा जाता है। पंचक मुहूर्त में रावण के स्वरुप का वध होता है, पुतला नीचे गिर जाता है। जलाने की बजाय रावण के पुतले पर पत्थर बरसा कर, लाठियों से पीटकर उसके टुकड़े कर दिए जाते हैं और फिर वहां मौजूद लोग उन टुकड़ों को उठाकर घर ले जाते हैं।