Etawah Lok Sabha election: समाजवादियों के गढ़ में केसरिया चुनौती, भाजपा की हैट्रिक रोकने को विपक्ष ने बुना यह फार्मूला
Etawah Lok Sabha election कस्बाई छवि को तोड़ते हुए महानगरीय स्वरूप में तेजी से ढल रहा है इटावा। इस स्वरूप में पिछले कुछ वर्षों में वक्त की कूची ने प्रगति के रंग भरे हैं। समाजवादियों के गढ़ में पिछले दो संसदीय चुनावों से केसरिया पताका लहरा रही है। इटावा लोकसभा सीट पर बनते बिगड़ते सियासी मूड को भांपती सोहम प्रकाश की रिपोर्ट...
यमुना तीरे सफारी पार्क में शेरों की दहाड़, कुलाचें भरते हिरन... पांच नदियों के संगम स्थल पचनद पर अठखेलियां करतीं डाल्फिन, चंबल के रेतीले टापुओं पर धूप सेंकते मगरमच्छ-घड़ियाल...। सही समझा, आप इटावा से रूबरू हो रहे हैं।
इटावा सफारी पार्क अस्तित्व में आने के बाद से उद्योग शून्य शहर में टूरिज्म की संभावनाओं को पंख लगे हैं। एक दशक में सितारा होटल, रेस्टोरेंट आदि की चमक बढ़ी है। चौड़े रास्ते, दिल्ली-हावड़ा रेल लाइन पर दो ओवरब्रिज, चारों दिशाओं में नई बसावट के साथ बाजारों का विस्तार, डीएम चौराहा से मैनपुरी रेलवे अंडरब्रिज तक रात में दूधिया रोशनी से नहाया अटल पथ, फुव्वारों की रंग-बिरंगी रोशनी में डूबे चौराहे बताते हैं कि ग्राम्य संस्कृति और सभ्यता से निकटता रखने वाला शहर बदल रहा है।
इस बदलाव को लोग महसूस भी करते हैं, मगर अपेक्षाएं और भी हैं। बसरेहर के सर्राफ राजनारायन उर्फ चौधरी कहते हैं ‘सामरिक दृष्टि से देश की स्थिति काफी सुदृढ़ हुई है। धारा 370 हटाने से जम्मू-कश्मीर की फिजा बदली है, लेकिन रोजगार देने के मामले में स्थिति अच्छी नहीं रही है।’
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आशानंदपुर गांव के पास से गुजर रहे बरेली-ग्वालियर हाईवे के चौड़ीकरण की ओर इशारा करते हुए योगेश कहते हैं, ‘सड़कें बेहतर हो रही हैं, मगर रोजगार का वादा पूरा नहीं हो सका है।’ आजादी के बाद से समाजवादियों का गढ़ रहे इटावा को यमुना और चंबल निज स्वभाव अनुरूप सींचती रही हैं। यह कभी भावुक मुद्दों की लहरों संग बहा, तो कभी बगावती तेवरों के ज्वार से किश्ती को डुबो दिया।
यही वजह रही कि सपा के रघुराज सिंह शाक्य को छोड़कर कोई भी दो बार संसद नहीं पहुंच सका। व्यक्तिगत तौर पर कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया और राम सिंह शाक्य के सिर पर तीन-तीन बार विजय का सेहरा सजा, लेकिन पार्टी के तौर पर सिर्फ सपा को हैट-ट्रिक लगाने का सौभाग्य मिला है।
देश में जब कांग्रेस की तूती बोलती थी, तब 1957 के चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी से कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया सांसद चुने गए थे। 2014 के चुनाव से भाजपा की पकड़ मजबूत बनी हुई है। 1991 में बसपा संस्थापक कांशीराम के लिए इटावा ने ही संसद का मार्ग प्रशस्त किया था।इस बार भाजपा ने पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री व सांसद प्रो. रामशंकर कठेरिया को फिर से मैदान में उतारा है। उनके पक्ष में गृह मंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य सहित उप्र सरकार के चार मंत्री दौरा कर चुके हैं। चंद रोज बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सभा भरथना में प्रस्तावित है।
प्रत्याशी तय करने में कई दिनों तक उलझी रही सपा ने महेवा से ब्लाक प्रमुख पवित्रा दोहरे के पति जितेन्द्र दोहरे पर दांव लगाया है। बसपा के कैडर वोट में उनकी पकड़ मजबूत मानी जाती है। इसी वजह से सपा ने अपने वोट बैंक पर भरोसे के साथ बसपा के वोट बैंक में भी सेंध लगाते हुए भाजपा को कड़ी टक्कर देने का दांव खेला है।
बसपा से राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले जितेन्द्र जिलाध्यक्ष से लेकर मंडल जोन इंचार्ज तक रहे। बसपा ने हाथरस की पूर्व सांसद सारिका सिंह बघेल को प्रत्याशी बनाया है। भले क्षेत्र में बसपा का प्रचार नजर नहीं आ रहा हो, लेकिन कैडर वोट बैंक पर भरोसे के साथ गोपनीय बैठकों का सिलसिला जारी है।मनियामऊ के आलू किसान बृजेश शुक्ला कहते हैं कि ‘चिप्स बनाने वाली यूनिटें लग जाएं तो फसल के अच्छे दाम मिलने लगेंगे।’ पक्का बाग निवासी असिस्टेंट प्रोफेसर अश्वनी मिश्र कहते हैं, ‘शहर बदल रहा है और कानून व्यवस्था सुधर चुकी है। सांसद विकास कार्य कराने में माहिर हैं, लेकिन अब रोजगार पर भी बात होनी चाहिए।’ चितभवन के फिरोज कहते हैं ‘सिर्फ बड़ी बातों से पेट नहीं भरता, महंगाई पर भी चर्चा होनी चाहिए।’
वक्त के पथ पर विकास के निशां, फिर भी रोजगार का मुद्दा कभी कच्चे सूत और सूती कपड़े, घी, राइस और दाल कारोबार के लिए पहचाने वाले इस क्षेत्र में कोई बड़ी फैक्ट्री नहीं है। सहकारी सूत मिल, 60 से अधिक राइस मिल के अलावा तेल, दाल मिल बंद हो चुके हैं। दो एक्सप्रेसवे, तीन नेशनल हाईवे, एक स्टेट हाईवे, चार रेलवे रूट, डीएफसी, बेहतर सड़क और पुलों के निर्माण, एफएम स्टेशन व पासपोर्ट कार्यालय की शुरुआत, बसरेहर व भरथना में निर्माणाधीन बाईपास पिछले वर्षों में बड़ी उपलब्धि रहीं, लेकिन रोजगार का मुद्दा अब भी पहले की तरह है।
इसे भी पढ़ें- आगरा-वाराणसी में सूरज दिखाएगा तेवर, कानपुर में ठंडी हवा से राहत की उम्मीद...तो इस वजह से मैदान में उतरे दोहरे 2019 में कमलेश कठेरिया पर दांव खेला था, लेकिन इस बार दलितों में संख्या बल से खासा वजूद रखने वाले दोहरे बिरादरी का प्रत्याशी मैदान में उतारा है। सपा को सत्ता विरोधी लहर की उम्मीद है। वहीं, जनप्रतिनिधियों के स्तर पर अंतर्विरोध भी भाजपा की कमजोर कड़ी है। हालांकि हाल ही में अमित शाह जनप्रतिनिधियों के बीच एकजुटता की नसीहत दे गए हैं। दूसरी तरफ भाजपा ने नामांकन में केशव प्रसाद मौर्य को बुलाकर पिछड़ों का समीकरण साधने की कोशिश की है। हैट-ट्रिक के लिए विकास और मोदी के चेहरे पर भरोसा है।
भाजपा की हैट्रिक रोकने को सपा ने बुना पीडीए का फार्मूला 2014 से राजनीतिक परिदृश्य बदला है। 2014 के बाद 2019 में भाजपा ने इटावा सीट पर जीत हासिल की। 2019 में भरथना सुरक्षित विस क्षेत्र में सपा ने बढ़त बनाई थी, लेकिन अन्य चारों विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा आगे रही।2017 के विधानसभा चुनाव में संसदीय क्षेत्र की पांचों सीटों पर भगवा लहराया था, जबकि 2022 में भरथना व दिबियापुर विस सीट पर सपा काबिज होने में कामयाब रही। भाजपा की हैट्रिक रोकने के लिए सपा पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) का फार्मूला लाई है। अलबत्ता, सुरक्षित सीट पर पिछड़ों को साधने के लिए सपा और भाजपा के साथ ही बसपा भी कोशिश कर रही है।
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