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रामभक्ति के फलक पर भी रही हैं कई 'मीरा'

अयोध्या: रामभक्ति के फलक पर भी रही हैं कई 'मीरा'। ऐसी अनेक रानियों का जिक्र मिलता है, जो राजकीय वैभव

By Edited By: Published: Sun, 10 Apr 2016 12:59 AM (IST)Updated: Sun, 10 Apr 2016 12:59 AM (IST)

अयोध्या: रामभक्ति के फलक पर भी रही हैं कई 'मीरा'। ऐसी अनेक रानियों का जिक्र मिलता है, जो राजकीय वैभव त्याग भगवान राम की दीवानी बनीं। इस क्रम में सर्वाधिक अहम ओरछा की महारानी वृषभान कुंवरि हैं। बुंदेलखंड के विदारी ग्राम में वर्ष 1855 में पैदा हुईं वृषभान कुंवरि बचपन से ही रामभक्ति की ओर उन्मुख हुईं। 14 वर्ष की आयु में वृषभान का विवाह ओरछा रियासत के राजकुमार प्रताप ¨सह बहादुर से हुआ। वैभव संपन्न राजा की पत्नी और दो पुत्र-तीन पुत्रियों की मां के रूप में अपनी भूमिका का सकुशल निर्वाह करते हुए भी उनका चित्त आराध्य में लीन रहा। वे प्राय: ध्यानमग्न रहती थीं। एक बार उन्हें ध्यान में दिव्य राजमहल का दर्शन हुआ और प्रेरणा हुई कि ऐसा ही महल अयोध्या में भगवान राम एवं भगवती सीता के लिए बनवाया जाए। अयोध्या आईं महारानी का साबका कनकभवन से पड़ा, जिसे महारानी कैकेयी ने स्वर्ण मंडित महल के रूप में मां सीता को मुंह दिखाई में दिया था। हालांकि तब कनकभवन साधारण स्थापत्य के ही रूप में रह गया था पर रानी ने इस स्थल को पहली नजर में ही शिरोधार्य कर लिया और इस महान विरासत को ही उस महल का आकार देने का निश्चय किया, जिसे उन्होंने ध्यान में देखा था। बृषभान कुंवरि की भक्ति का चरम उनके द्वारा रचित पदों से परिभाषित होता है। रामप्रिया के नाम से सृजित वृषभान कुंवरि के पदों में मीरा की भांति आराध्य के प्रति बला का समर्पण है। 'होली रहस' और 'झूलन रहस' के रूप में महारानी प्रणीत करीब पांच सौ पदों का संग्रह भी संकलित है। सन् 1906 में ब्रह्मलीन हुईं रानी की भक्ति की दुहाई आज भी दी जाती है। कांचन कुंवरि भी भक्ति के फलक की अविस्मरणीय किरदार हैं। सरयू तट पर स्थित मोहक स्थापत्य का प्रतिनिधि कंचनभवन ओरछा की महारानी कांचन कुंवरि की अप्रतिम राम भक्ति का गवाह है। उन्होंने न केवल यह मंदिर बनवाया बल्कि आराध्य के प्रति अगाध प्रेम से भरकर ढेरों पदों की रचना की, जिसका संकलन 'श्रीकांचन कुंज विनोदलता' नामक ग्रंथ में किया गया है। विजावर के महाराज सावंत ¨सह बहादुर की छोटी महारानी कांचन कुंवरि के साथ ही बड़ी महारानी रतन कुंवरि भी अपूर्व भक्ति से ओत-प्रोत थीं। उन्होंने चित्रकूट में राम सिया का भव्य मंदिर बनवाया, तो सियादुलारी के उपाख्य से अनेक भक्तिपरक पदों की रचना की। उनकी रचनाओं का संकलन 'रतनमाला' नामक पुस्तक में संकलित है।


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