विहिप के सामने अशोक सिंहल के निधन से उपजी शून्यता दूर करने की चुनौती
छह दिसंबर 1992 को जब मंदिर आंदोलन के कई अन्य दिग्गज नेता कारसेवकों को रामकथाकुंज के मंच से नियंत्रित कर रहे थे, तब सिंहल अकेले कारसेवकों के सैलाब को दिशा देने के लिए मौजूद थे।
अयोध्या [रघुवरशरण]। विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के नवनिर्वाचित अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु सदाशिव कोकजे के सामने संगठन के दिग्गज पर्याय रहे स्वर्गीय अशोक सिंहल से उपजी शून्यता भरने की चुनौती होगी। कोकजे भगवान राम की नगरी अयोध्या में रविवार को पहली बार यात्रा पर होंगे। अयोध्या न केवल स्थापना के समय से ही विश्व हिंदू परिषद की प्राथमिकताओं में रही है बल्कि रामनगरी ने ही साढ़े तीन दशक पूर्व उसे नई पहचान दी।
वह स्वर्गीव अशोक सिंहल ही थे, जिनके नेतृत्व में अयोध्या और राम मंदिर मुद्दे से संगठन का सरोकार स्थापित हुआ। उन्हें पूरे देश को मथ देने वाले मंदिर आंदोलन का मुख्य शिल्पी माना जाता है। एक बड़े संगठनकर्ता, प्रखर वक्ता और मोर्चे पर डटकर संघर्षशीलता का परिचय देने में उनके कद का दूसरा किरदार तलाशना आसान नहीं है। 30 अक्टूबर 1990 की कारसेवा का मंजर अभी भी लोगों की जेहन में जिंदा है, जब सिंहल के आह्वान पर शासकीय पाबंदियों को बौना साबित करते हुए लाखों कारसेवक अयोध्या आ धमके और रामजन्मभूमि की ओर बढ़े इन कारसवेकों का नेतृत्व स्वयं सिंहल ने किया। उस दौरान तो सुरक्षाबलों से भीषण नोक-झोंक और गहन गहमा-गहमी के बीच किसी ओर से उछाले गए पत्थर से सिंहल का सिर फट गया। उनका खून बहने की खबर लाखों कारसेवकों के बीच जंगल में आग की तरह फैली पर तेजाबी दबाव से अविचल सिंहल ने पूरे धैर्य और दृढ़ता से कारसेवकों को सहेजा।
छह दिसंबर 1992 को जब मंदिर आंदोलन के कई अन्य दिग्गज नेता कारसेवकों को रामकथाकुंज के मंच से नियंत्रित कर रहे थे, तब अशोक सिंहल अकेले कारसेवकों के सैलाब को दिशा देने के लिए उनके बीच मौजूद थे। मंदिर के आग्रह के प्रेरक प्रतीक होने के साथ सिंहल ही विहिप, भाजपा एवं संघ के बीच संतुलन भी साधने का चमत्कार करते रहे।
रामनगरी के संतों से उनके वैयक्तिक संबंध भी मंदिर आंदोलन को प्रभावी बनाए रखने में निर्णायक थे। उस दौरान साकेतवासी रामचंद्रदास परमहंस सहित महंत नृत्यगोपालदास, जगद्गुरु पुरुषोत्तमाचार्य, वशिष्ठ पीठाधीश्वर डॉ. रामविलासदास वेदांती, संत समिति के अध्यक्ष महंत कन्हैयादास से उनका वैयक्तिक लगाव जगजाहिर रहा है। 17 नवंबर 2015 को चिरनिद्रा में लीन होने से पूर्व तक अशोक सिंहल विहिप के साथ मंदिर आंदोलन के सर्वमान्य नायक के तौर पर प्रतिष्ठित रहे।
उनके रहते ही संगठन में नंबर दो की हैसियत से डॉ. प्रवीण भाई तोगडिय़ा ने भी बखूबी छाप छोड़ी पर उनमें सिंहल जैसे संतुलन का संकट था और उन्हें इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी। निकट भविष्य में यह देखना रोचक होगा कि ङ्क्षसहल के नए उत्तराधिकारी विष्णु सदाशिव कोकजे सिंहल और मंदिर आंदोलन की विरासत से कितना न्याय कर पाएंगे। 14 अप्रैल को डॉ. अम्बेडकर की जयंती पर वह जिस दौर में विहिप के अध्यक्ष चुने गए हैं, वह महत्वपूर्ण है और मंदिर-मस्जिद विवाद की निर्णायक दहलीज पर उनकी भूमिका अहम होगी।
कोकजे रह चुके हैं राज्यपाल एवं चीफ जस्टिस
इंदौर निवासी विष्णु सदाशिव कोकजे बाल्यकाल से ही संघ स्वयंसेवक रहे। अधिवक्ता के तौर पर करियर की शुरुआत करने वाले कोकजे 1992 से 2002 के बीच मध्य प्रदेश एवं राजस्थान हाईकोर्ट में जज रहे। 2003 में मुख्य न्यायाधीश पद से सेवानिवृत्ति के बाद 2003 से 2008 तक हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल भी रहे। कोकजे 22 अप्रैल को अयोध्या पहुंचकर रामलला के दर्शन करेंगे और संतों से मिलेंगे। राम मंदिर व हिंदुओं से जुड़े मुद्दों पर चर्चा के बाद देशभर का दौरा शुरू करेंगे।