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उपेक्षित हैं रामायण कालीन सात पौराणिक कुंड

क्षतिग्रस्त बाउंड्रीवाल व अतिक्रमण ने समाप्त कर दिया महत्व

By JagranEdited By: Updated: Wed, 30 Mar 2022 12:25 AM (IST)
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उपेक्षित हैं रामायण कालीन सात पौराणिक कुंड

अयोध्या(अम्बिका मिश्र ): रामनगरी से शुरू होने वाली चौरासी कोस परिक्रमा के सातवें पड़ाव में आने वाली तोरोमाफी ग्राम पंचायत में स्थित रामायण कालीन मान्यता के सात पौराणिक कुंड उपेक्षा और बदहाली के शिकार हैं। क्षतिग्रस्त बाउंड्रीवाल व अतिक्रमण ने इन कुंडों के पौराणिक महत्व को ही समाप्त कर दिया है।

ग्राम पंचायत में कई एकड़ क्षेत्रफल में फैले सीताकुंड, रामकुंड, दूधेश्वरकुंड, लक्ष्मणकुंड, हनुमान कुंड, सुग्रीव कुंड व विभीषण कुंड अपने अतीत में रामायण कालीन धार्मिक मान्यताओं को समेटे हुए हैं। कभी इनमें पुण्य लाभ के लिए स्नान करने की परंपरा रही है। ग्रामीणों के अनुसार अंग्रेज शासनकाल के दौरान एडवर्ड तीर्थ अयोध्या विवेचनी सभा ने इन ऐतिहासिक और पौराणिक कुंडों को चिन्हित कर सहेजने की पहल की थी। कुंडों का नामकरण करते हुए प्राचीन शिलापट भी लगाए गए हैं, लेकिन उपेक्षा के चलते लगभग सभी कुंड बदहाल हो गए है। पूर्व में श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान के प्रबंध न्यासी एवं शोधकर्ता डा. राम अवतार शर्मा ने भी इन प्राचीन कुंडों को अपने शोध में रामायण कालीन बताया है और कुंडों पर भगवान राम का चरण चिन्ह की स्थापना कराई है। तोरोमाफी में स्थित रामकुंड को ग्राम पंचायत द्वारा करीब डेढ़ दशक पूर्व आदर्श जलाशय के तौर पर विकसित करने की कार्य योजना तैयार की गई। बाउंड्रीवाल और गेट निर्माण कराया गया, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। निर्माण के कुछ ही महीनों में बाउंड्रीवाल क्षतिग्रस्त हो गई है। सुग्रीव कुंड अतिक्रमण की चपेट में है। कुंड का थोड़ा ही हिस्सा बचा है। यहां श्रीराम चरण चिन्ह गायब हो चुका है। विभीषण कुंड और हनुमान कुंड पर ढाई दशक पूर्व वन विभाग ने पूरे परिसर में जंगली एवं कटीले पौधों का रोपण करा दिया है। दोनों कुंड जंगल में तब्दील हो गए हैं। अब यहां श्रद्धालु आने से भी कतराते हैं। सीताकुंड स्थित हनुमान मंदिर के सर्वरहकार सुरेश चंद्र पांडेय, अखिल भारतीय चाणक्य परिषद के ब्लाक अध्यक्ष मानस तिवारी, शिव प्रसाद उपाध्याय, श्रीनिवास पांडेय सहित ग्रामीणों ने उपेक्षित कुंडों को सहेजने और सुंदरीकरण किए जाने की मांग की है।

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यह है मान्यता

मान्यता है कि भगवान राम द्वारा 14 वर्ष के वनवास यात्रा के दौरान और अयोध्या में राम राज्य की स्थापना के बाद यहां की यात्राएं की थीं। इसके संबंध में कई धार्मिक प्रसंग जुड़े हुए हैं। चैत्र रामनवमी, कार्तिक पूर्णिमा तथा महाशिवरात्रि पर्व पर मेले का भी आयोजन होता है।

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