त्रेतायुगीन नदी तमसा को मिलेगी गुमनामी से निजात
त्रेतायुगीन नदी तमसा को गुमनामी से निजात मिलेगी। इसके लिए प्रशासन ने व्यापक कार्ययोजना तैयार की है। न केवल राजस्व अभिलेखों में दर्ज रकबे के अनुरूप इस पौराणिक नदी की बेसिन गादमुक्त की जाएगी बल्कि इस नदी के दोनों ओर पांच किलोमीटर तक की सीमा में पड़ने वाली झीलों, सरो
अयोध्या : त्रेतायुगीन नदी तमसा को गुमनामी से निजात मिलेगी। इसके लिए प्रशासन ने व्यापक कार्ययोजना तैयार की है। न केवल राजस्व अभिलेखों में दर्ज रकबे के अनुरूप इस पौराणिक नदी की बेसिन गादमुक्त की जाएगी बल्कि इस नदी के दोनों ओर पांच किलोमीटर तक की सीमा में पड़ने वाली झीलों, सरोवरों एवं स्वच्छ पानी के नालों से भी इसका जुड़ाव सुनिश्चित किया जाएगा। जिलाधिकारी डॉ. अनिल कुमार के अनुसार फिलहाल यह योजना फैजाबाद जिला के लिए प्रस्तावित है पर बाराबंकी और अंबेडकरनगर के जिलाधिकारियों से बात चल रही है और जल्दी ही इन दोनों जिलों का प्रशासन भी तमसा को पुनर्जीवित करने की मुहिम में शामिल हो सकता है। तमसा के बारे में मान्यता है कि भगवान राम ने वन जाते समय पहली राम इसी नदी के तट पर गुजारी थी। यह सच्चाई न केवल रामचरितमानस सहित रामकथा से जुड़े ग्रंथों से पुष्ट होती है बल्कि बीकापुर तहसील अंतर्गत तमसा नदी का गौराघाट तट आज भी पौराणिक स्थल के रूप में प्रतिष्ठित है। भगवान राम ने इसी गौराघाट तट पर विश्राम किया था और वनगमन के दूसरे दिन की यात्रा तमसा के इसी तट से आगे बढ़ाई थी। प्राकृतिक जलस्त्रोत के तिल-तिल कर दम तोड़ते दौर में तमसा भी अपवाद नहीं रही और यह शिकायत आम होती जा रही थी कि वह दिन दूर नहीं, जब तमसा का अस्तित्व नियत करना टेढ़ी खीर होगा। तमसा के वजूद से खिलवाड़ में प्राकृतिक जलस्त्रोत की उपेक्षा की प्रवृत्ति के साथ वे तत्व भी जिम्मेदार रहे हैं, जो इसके तट का अतिक्रमण कर जमीन हथियाने की जुगत करते रहे हैं। समझा जाता है कि जिलाधिकारी के नेतृत्व में तमसा के उद्धार की ताजा पहल इस पौराणिक नदी को ऐसी सारी विसंगतियों से मुक्ति दिलाने वाली साबित होगी।
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