अयोध्या में मंदिर-मस्जिद के लिए सहमति की मुहिम ठिठकी
चार माह पूर्व से शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी भी सहमति के फलक पर पसीना बहा रहे हैं।
अयोध्या (रघुवरशरण)। मंदिर-मस्जिद विवाद हल करने के लिए आपसी सहमति की मुहिम ठिठकी हुई है। इसी वर्ष 21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने आपसी सहमति से विवाद कल करने का सुझाव दिया था। इसके बाद से ही आपसी सहमति के प्रति उत्सुकता बयां हुई। मंदिर के समर्थन में कुछ पूर्व से ही मुखर मुस्लिम कारसेवक मंच के अध्यक्ष आजम खान एवं बब्लू खान जैसे मुस्लिम नेता और प्रभावी होकर आगे आए।
शिलादान, मंदिर आंदोलन के पर्याय रहे रामचंद्रदास परमहंस की समाधि पर नमन, कारसेवकों को श्रद्धांजलि आदि कार्यक्रमों के जरिए इन दोनों मुस्लिम नेताओं ने अलग-अलग कार्यक्रमों से अलख जगाई कि मुस्लिम राममंदिर का विरोधी नहीं है। इसी छह-सात माह के बीच संघ के शीर्ष प्रचारक इंद्रेशकुमार भी सांप्रदायिक एकता-एकात्मता का परिचय देते अभियान के साथ अयोध्या की ओर उन्मुख हुए और संकेत मिले कि विवाद का सहमति से हल दूर की कौड़ी नहीं रह गई है।
चार माह पूर्व से शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी भी सहमति के फलक पर पसीना बहा रहे हैं। इस बीच वे तीन बार अयोध्या की यात्रा कर चुके हैं। शीर्ष शिया धर्म गुरु कल्बे जवाद भी गत माह सहमति का संदेश देने के लिए अयोध्या आ चुके हैं। इसके बावजूद समझौते को जमीनी स्वरूप दिया जाना दूर की कौड़ी बना हुआ है।
शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष ने विश्वास जताया था कि सुप्रीम कोर्ट पांच दिसंबर से विवाद की सुनवाई शुरू करेगा और इससे पूर्व तक समझौते का फॉर्मूला तैयार कर कोर्ट में दाखिल कर दिया जाएगा। शिया बोर्ड का सुझाव है कि रामजन्मभूमि पर से मुस्लिम अपना दावा छोड़ें और वे मस्जिद समुचित दूरी पर बनाएं। शिया बोर्ड के सुझाव पर मंदिर समर्थक संतों ने उत्साह तो दर्शाया पर विवाद से जुड़े मुस्लिम पक्षकार अभी भी सहमति से दूर हैं।
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बाबरी मस्जिद के मुद्दई हाजी महबूब एवं मो. इकबाल अंसारी जैसे लोगों को भी सहमति के प्रयासों से परहेज नहीं है, सहमति के प्रति वे मुतमईन नहीं हैं। मंदिर की पैरोकारी करने वाले निर्वाणी अनी अखाड़ा के श्रीमहंत धर्मदास के प्रतिनिधि स्वामी हरिदयाल भी सहमति के प्रयासों में शामिल हो रहे हैं पर विहिप महासचिव चंपत राय के रुख से वे आहत हैं।
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