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Farrukhabad Heritage: कभी गंगा की कल-कल की साक्षी रहीं, अब वीरान पड़ीं शाह जी की विश्रांतें

Farrukhabad Heritage एक जमाना था जब शहर से सटे टोकाघाट के निकट बनी शाहजी की विश्रांतें गंगा की कल-कल की साक्षी होती थीं। देश-दुनिया के व्यापारी यहां आकर ठहरते थे। गंगा की धार दूर होने के बाद विश्रांतें वीरान होती चली गईं। अब उन पर अवैध कब्जे हो गए हैं।

By brajesh mishraEdited By: MOHAMMAD AQIB KHANUpdated: Sat, 11 Mar 2023 09:55 PM (IST)
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Farrukhabad Heritage: देश-दुनिया के व्यापारी विश्रांतों में आकर ठहरते : जागरण

फर्रुखाबाद, जागरण संवाददाता: एक जमाना था जब शहर से सटे टोकाघाट के निकट बनी शाहजी की विश्रांतें गंगा की कल-कल की साक्षी होती थीं। देश-दुनिया के व्यापारी यहां आकर ठहरते थे। महिला व पुरुष श्रद्धालुओं के लिए गंगा स्नान की अलग-अलग व्यवस्था थी। उसी से सटे अन्य घाट व मंदिर भी यहां की शोभा बढ़ाते थे। करीब आठ दशक पहले गंगा की धार वहां से उत्तर दिशा की ओर चली गई। इसी के बाद विश्रांतें वीरान होती चली गईं। अब उन पर अवैध कब्जे हो गए हैं। ग्रामीण कंडे पाथ रहे हैं और भूसा भर रहे हैं।

कांग्रेस के शहर अध्यक्ष रहे स्व. राधारमण अग्रवाल के बुजुर्गों ने शहर से सटे गांव टटियां में विश्रांतों का निर्माण कराया था। इसी वजह से इनका नाम शाह जी की विश्रांत पड़ा था। यह विश्रांतें देश-दुनिया के व्यापारी व गंगा भक्तों के लिए खासा महत्व रखती थीं।

विश्रांतों पर गंगा स्नान करने आने वाले महिला व पुरुष श्रद्धालुओं के लिए अलग-अलग व्यवस्था थी। सीढ़ियां व चबूतरे आवश्यकतानुसार बनाए गए थे। विशेष कारीगरों ने बुर्ज बनाकर इनकी सुंदरता बढ़ाई थी। चित्रकारी और कारीगरी देखते ही बनती थी। इसी के पास में टोकाघाट में कन्नूलाल, गोकुल प्रसाद व सदानंद तिवारी के भव्य घाट थे।

गीता प्रेस ने कल्याण के गंगा विशेषांक में विश्रांतों को बताया था सर्वश्रेष्ठ

कालेश्वर नाथ, कालभैरव, काली देवी व हनुमान जी के प्राचीन मंदिर स्थापित हैं। गंगा के यहां से दूर जाने के बाद से ही विश्रांतें बदहाल होती चली गईं। गंगा में नाव द्वारा आने वाले व्यापारी भी आने बंद हो गए। अब इन विश्रांतों पर ग्रामीणों ने कब्जा कर लिया है। गीता प्रेस गोरखपुर ने कल्याण के गंगा विशेषांक में शाहजी की विश्रांतों को सर्वश्रेष्ठ घाट घोषित किया था। विश्रांत से लेकर पांचालघाट तक बने मंदिर व अन्य संस्थाओं के कारण ही इसे अपराकाशी नाम दिया गया।

दूरदराज के व्यापारी यहां महीनों रुकते थे, नाव से लाते थे सामान

टटियां गांव के निवासी उदयवीर वर्मा उर्फ वीरे बताते हैं कि उन्हें खूब याद है कि विश्रांतों में एक गुफा थी। व्यापारी दूरदराज से नाव में सामान भरकर यहां लाते थे और महीनों रुकते थे। तब यह विश्रांतें गंगा स्नानार्थियों के लिए तीर्थस्थल की तरह थीं। साध समाज के लोग भी सावन माह में यहीं रुककर ध्यान पूजन करते थे। समय बदला और गंगा दूर चली गईं। इसी के बाद विश्रांतों की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया और वीरानगी छाने लगे।

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