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यूपी में गहराया पराली का संकट, पयार की लपटों से आसमान हुआ काला; गठित 816 टीमों पर उठ रहें सवाल

उत्तर प्रदेश में पराली जलाने की घटनाओं ने पर्यावरण को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। आसमान में धुंध छाने से लोगों का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है। प्रशासन ने 816 टीमों का गठन किया है लेकिन फिर भी पराली जलाने की घटनाएं थम नहीं रही हैं। किसानों को पराली प्रबंधन के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है लेकिन वे आगे नहीं आ रहे हैं।

By Vinod mishra Edited By: Abhishek Pandey Updated: Mon, 04 Nov 2024 11:12 AM (IST)
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पयार की लपटों से आसमान हुआ काला
जागरण संवाददाता, फतेहपुर। पयार (पराली) पर्यावरण के लिए नुकसान देय है, इस संदेश को प्रचारित करने के साथ ही पयार जलाने की घटनाएं रोकने को प्रशासन ने 816 टीमें लगाईं हैं, फिर भी खेल में पयार जलाने की घटनाएं रुक नहीं रही हैं।

दीपावली में खेतों में दीपदान की परंपरा के बीच किसानों ने जानबूझ कर तीन दिनों में हजारों बीघे में पयार जला दिया। गांव-गांव गठित टीमें रोकथाम में नाकाम रहीं। पयार प्रबंधन के लिए प्रशासन ने पहले ही किसानों से अपील की थी कि ग्राम पंचायत उनका पयार नजदीक की गोशाला में लेकर जाएगी। किसान पराली दें और बदले में जैविक खाद करें। फिर भी किसान आगे नहीं आ रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण धान की कटाई है।

दरअसल, गांव-गांव धान की कटाई बिना रीपर या एसएमएस वाली कंबाइन हार्वेस्टर मशीनों से हुई, जिसमें फसल के ठंडल खेत में ही रह गए। अब अगर किसान डंठलों का भूसा बनवाते हैं तो प्रति बीघे 300 से 500 रुपये का खर्च आ रहा है। गेहूं बोने की जल्दबाजी में किसान खेतों में पड़ी सूखे पयार में आग लगा रहे हैं।

बढ़ रहा पर्यावरण प्रदूषण और बीमारियां

पयार जलाने से आसमान में धुंध सी छा जा रही है, उसके छोटे-छोटे कण हवा में उड़ते हैं। इसका धुआं आमजन के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, जिससे त्वचा रोग, श्वांस संबंधी बीमार और अस्थमा का अटैक पड़ता है। इसकी रोकथाम नहीं हुई तो स्थिति और खराब हो सकती है।

15 हजार तक जुर्माने का भय नहीं

पयार जलाने में किसानों पर ढाई हजार से 15 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रविधान है। एक बार से अधिक पयार जलाते पकड़े जाने पर विधिक कार्रवाई भी हो सकती है, लेकिन किसानों को इसका भी भय नहीं है। अब तक 12 किसानों पर जुर्माना और तीन किसानों पर विधिक कार्यवाही हो चुकी है। इसके बाद भी घटनाएं कम नहीं हो रहीं हैं। पयार किसी भी खेत में जल रही है तो गांव स्तरीय टीमें उसकी रिपोर्ट दे रहीं है। सेटेलाइट से भी निगरानी हो रही है।

पराली जलाने की घटनाएं बढ़ी, 1272 मामले आए सामने

प्रदेश में पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए किए गए तमाम उपायों के बावजूद फसल अवशेष जलाने की घटनाओं में इस वर्ष वृद्धि देखी गई है। प्रोत्साहन और सख्ती दोनों मोर्चों पर अमल के बाद भी जमीनी स्तर पर अपेक्षा के अनुरूप परिणाम नहीं मिले हैं।

खेतों से उठने वाले धुएं की निगरानी के हालिया आंकड़े (एक नवंबर तक) उत्तर प्रदेश में ऐसे 1272 मामलों की पुष्टि कर रहे हैं, जबकि बीते वर्ष इस अवधि तक 1066 घटनाएं सामने आईं थीं। संयुक्त निदेशक कृषि जेपी चौधरी ने स्वीकारा कि इस वर्ष अब तक पिछले वर्ष से 206 घटनाएं अधिक हुईं हैं।

चौधरी की मानें तो इस वर्ष सितंबर माह में बारिश हुई थी, आलू व सरसों की खेती करने वाले किसानों ने खेतों की नमी का उपयोग करने और अपने खेतों की सफाई जल्द करने के लिए फसल अवशेषों को जलाया। हालांकि, उन्होंने दावा किया कि प्रदेश में पराली से कहीं अधिक घटनाएं कूड़ा जलने व अन्य मामलों से संबंधित रहीं हैं।

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