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घोड़े पर बैठकर चुनाव प्रचार करते थे राजनीति के सुल्तान, 10 चुनावों में से केवल एक हारे; जनसभा में भाषण देते हुए तोड़ा था दम

UP News गुरुग्राम के छोटे से गांव जनौला से वर्ष 1942 में कोयला के ठेके के सिलसिले में टूंडला आए चौधरी मुल्तान सिंह फिर यहीं के होकर रह गए। कारोबार के साथ राजनीति का सफर शुरू किया तो इस क्षेत्र के सुल्तान कहे जाने लगे। उनके बारे में कहा जाता है कि वे अपना चुनाव प्रचार करने घोड़े पर जाते थे।

By Rajeev Sharma Edited By: Prateek Jain Updated: Mon, 25 Mar 2024 06:00 AM (IST)
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टूंडला में चौ. मुल्तान सिंह के आवास पर उनके साथ पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह व उपप्रधानमंत्री चौ. देवीलाल। फाइल फोटो
राजीव शर्मा, फिरोजाबाद। गुरुग्राम के छोटे से गांव जनौला से वर्ष 1942 में कोयला के ठेके के सिलसिले में टूंडला आए चौधरी मुल्तान सिंह फिर यहीं के होकर रह गए। कारोबार के साथ राजनीति का सफर शुरू किया तो इस क्षेत्र के सुल्तान कहे जाने लगे। उनके बारे में कहा जाता है कि वे अपना चुनाव प्रचार करने घोड़े पर जाते थे।

वह वर्ष 1947 एवं 1957 में टाउन एरिया टूंडला के चेयरमैन रहे। 1962 में सोशलिस्ट पार्टी से दयालबाग विधानसभा सीट से पहला चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कराई। विधायक बनने के बाद भी उनका किसानों के लिए संघर्ष जारी रहा, जिसके चलते कई बार जेल भी गए।

वर्ष 1967 में फिर इसी पार्टी से जीते। सोशलिस्ट पार्टी के खत्म होने के बाद 1969 में भारतीय क्रांति दल से (बीकेडी) से चुनाव जीते। बुजुर्ग बताते हैं कि वह पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के काफी नजदीक थे। इसके बाद भी सरल इतने कि राह चलता आदमी रोक लेता था और वह जीप के बोनट पर कागज रखकर उसकी सिफारिश को पत्र लिख देते थे।

वर्ष 1977 में जनता पार्टी ने दिया था टिकट

मुल्तान सिंह 10 चुनावों में से केवल एक हारे। उनकी जनता पर पकड़ को देखते हुए जनता पार्टी ने वर्ष 1977 में जलेसर लोकसभा क्षेत्र से उन्हें प्रत्याशी बनाया। इस चुनाव में उन्होंने रेल राज्यमंत्री रहे कांग्रेस प्रत्याशी रोहनलाल चतुर्वेदी को करारी हार दी थी। इसके बाद वे तीन बार सांसद बने।

90 वर्षीय जगत नारायण उपाध्याय बताते हैं। उस समय चुनाव उत्सव होता था तो मतदान केंद्र काफी दूर होते थे, ऐसे में महिलाएं बुग्गी पर बैठकर गात बजाते हुए मतदान करने जाती थीं। हालांकि, उनके निधन के बाद परिवार का कोई भी सदस्य उनके राजनीतिक सफर को आगे नहीं बढ़ा सका। उनके ज्येष्ठ पुत्र डा. जसवंत सिंह यादव ने भी कई बार चुनाव लड़ा, लेकिन हर बार हार का ही सामना करना पड़ा। उनका परिवार अब भी एमपी रोड पर रहता है।

जनसभा में टूटी थी सांस की डोर

हरियाणा में जन्मे मुल्तान सिंह ने अंतिम सांस भी हरियाणा में ही ली। उस समय वह जलेसर से सांसद थे। 23 सितंबर, 1990 में रेवाड़ी में राव तुलाराम शहीदी समारोह में मंच पर भाषण देते समय हार्ट अटैक पड़ने से उनका निधन हो गया।

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