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देश के लिए मिसाल बनीं सिमरन, PM मोदी से कहा था इस बार बदलना है मेडल का कलर; पढ़ें दिलचस्‍प कहानी

सिमरन शर्मा की प्रेरणादायक कहानी ने देश को गौरवान्वित किया है। कम उम्र में दृष्टिबाधित होने के बावजूद उन्होंने दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से Paris Paralympic Games में कांस्य पदक जीता। सिमरन ने अपनी शारीरिक कमजोरी को सफलता की राह में रुकावट नहीं बनने दिया। सिमरन की सफलता लाखों दिव्यांगों के लिए एक प्रेरणा है जो शारीरिक कमजोरियों को सफलता की राह में बाधा मानते हैं।

By Shahnawaz Ali Edited By: Abhishek Tiwari Updated: Thu, 03 Oct 2024 12:04 PM (IST)
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एथलीट सिमरन शर्मा। फोटो सौ. स्वयं

शाहनवाज अली, गाजियाबाद। सिमरन शर्मा की प्रेरणादायक कहानी देश के लिए एक मिसाल बन गई है। कम उम्र में आंखों की रोशनी की परेशानी के बावजूद सिमरन ने दृढ़ निश्चय और मेहनत के बूते पेरिस पैरालिंपिक में कांस्य पदक जीतकर देश का सिर गर्व से ऊंचा किया, लेकिन अभी स्वर्ण पदक जीतने की ललक बाकी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर सिमरन ने कहा कि पीएम सर अबकी बार मेडल का कलर बदलना है। इस पर प्रधानमंत्री ने उनसे कहा कि हौसला बनाए रखो स्वर्ण पदक इसलिए नहीं आया कि अगली बार आएगा। मूल रूप से मोदीनगर की रहने वाली सिमरन शर्मा जीवन में चुनौतियों की कमी नहीं रही।

आत्मविश्वास से सपने को हकीकत में बदला

उनके पिता का निधन हो चुका था, जिससे परिवार के आर्थिक हालात कठिन हो गए थे, लेकिन सिमरन ने कभी अपनी शारीरिक कमजोरी को सफलता की राह में रुकावट नहीं बनने दिया।

उन्होंने अपनी दिव्यांगता को अपनी कमजोरी के बजाए एक शक्ति के रूप में अपनाया और लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ती रहीं। उनकी इस यात्रा में उनके पति गजेंद्र शर्मा (सेना में तैनात) ने एक मजबूत साथी और प्रेरणा स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

दौड़ का अभ्यास करती एथलीट सिमरन शर्मा। फोटो सौ. स्वयं

लाखों दिव्यांगों को दिया संदेश

उन्होंने सिमरन को एक प्रोफेशनल प्रशिक्षक के तौर पर प्रशिक्षण देते हुए मनोबल बढ़ाया। पैरालिंपिक में पदक जीतकर सिमरन ने न केवल खुद को बल्कि उन लाखों दिव्यांग लोगों को संदेश दिया है कि शारीरिक कमजोरियां केवल मन की सीमाओं का प्रतीक होती हैं।

पैरालिंपिक में पदक जीतकर सिद्ध किया कि मेहनत, समर्पण और आत्मविश्वास से हर सपने को हकीकत में बदला जा सकता है। सिमरन उन लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं, जो अपनी दिव्यांगता को कमजोरी मानकर अपना रास्ता छोड़ रहे हैं। उनका यह साहसी और संघर्ष पूर्ण सफर सिखाता है कि जीवन की हर कठिनाई का सामना करते हुए आगे बढ़ना ही एक सच्ची जीत है।

स्कूली प्रतियोगिता में ब्लाक स्तर पर मिला था पदक

सिमरन ने कक्षा छह में ब्लाक स्तरीय दौड़ प्रतियोगिता में प्रतिभाग किया, जिसमें सिमरन ने प्रथम स्थान प्राप्त किया था। इसके बाद लगातार खेल प्रतियोगिताओं में सामान्य बालिकाओं के साथ दौड़ी, लेकिन पहले नंबर पर रहीं।

पैरा एथलीट में 2018 से प्रतिभाग किया और प्रदेश के बाद प्रत्येक वर्ष नेशनल गोल्ड मेडलिस्ट रहीं। उन्होंने खेलो इंडिया 2023 में तीन स्वर्ण पदक अपने नाम किए। पेरिस पैरालिंपिक में कांस्य पदक जीता। सिमरन की कांस्य पदक का कलर बदलकर अगली बार दो स्वर्ण पदक लाने की तैयारी है।

साथी से जीवनसाथी बने गजेंद्र ने बढ़ाया हौसला

वर्ष 2015-16 से दोस्त सेना में तैनात गजेंद्र शर्मा 2017 में सिमरन के जीवनसाथी बनें। गजेंद्र शर्मा ने सिमरन को एक प्रोफेशनल एथलीट के तौर पर प्रशिक्षण दिया। कोविडकाल में कोविड और चिकनगुनिया से पीड़ित सिमरन शारीरिक कष्ट से गुजरी।

इस दौरान गजेंद्र शर्मा का प्लॉट बिका और तीन-चार लाख का कर्ज भी हुआ। नौकरी में वेतन से सिमरन प्रशिक्षण के लिए महंगे एक्यूपमेंट खरीदने में जूझते रहे, लेकिन कोई कमी आड़े नहीं आने दी। आखिरकार पैरालिंपिक में पदक जीता और मिसाल कायम की।

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