Ghaziabad: अपराध की गुत्थी सुलझाने में पुलिस की मदद करेंगे साइबर वॉलेंटियर, लोगों को भी करेंगे जागरूक
साइबर अपराध के मामले में गाजियाबाद पहले स्थान पर है। यहां साइबर थाना नहीं है। मुख्यमंत्री के आदेश पर अब सभी थानों में साइबर सेल गठित की जा रही है। यह कितनी मददगार होगी और आने वाले समय में गाजियाबाद कमिश्नरेट पुलिस की साइबर अपराध से निपटने की क्या योजना है? इसे लेकर दैनिक जागरण के आयुष गंगवार ने एडिशनल सीपी दिनेश कुमार पी. से विस्तृत बातचीत की।
गाजियाबाद, जागरण संवाददाता। साइबर अपराध के मामले में गाजियाबाद पूरे उत्तर प्रदेश में पहले स्थान पर है। यहां साइबर थाना नहीं है। साइबर सेल भी कमिश्नरेट बनने के बाद ढीला पड़ा है। लोग थाना व साइबर सेल के चक्कर ही लगाते रहते हैं। अधिकांश मामलों में त्वरित मदद भी नहीं मिलती।
मुख्यमंत्री के आदेश पर अब सभी थानों में साइबर सेल गठित की जा रही है। यह कितनी मददगार होगी और आने वाले समय में गाजियाबाद कमिश्नरेट पुलिस की साइबर अपराध से निपटने की क्या योजना है? इसे लेकर दैनिक जागरण के आयुष गंगवार ने एडिशनल सीपी दिनेश कुमार पी. से विस्तृत बातचीत की। पेश हैं इसके कुछ अंश...
साइबर अपराध से लड़ने के लिए संसाधन बहुत कम हैं। जागरूकता ही फिलहाल सबसे बड़ा हथियार है, जिसे बढ़ाने के लिए प्रभावी प्रयास क्यों नहीं किए जा रहे?
जागरूकता अभियान जारी है। नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल पर साइबर जानकार खुद को साइबर वालेंटियर के रूप में पंजीकृत कर सकते हैं।
गाजियाबाद में 128 वालेंटियर बना लिए हैं। तीन श्रेणियों में इनका पंजीकरण हो रहा है। पहले, आनलाइन मानिटरिंग करेंगे, दूसरे जागरूकता फैलाएंगे और तीसरे एक्सपर्ट के रूप में पुलिस की मदद करेंगे।
जागरूकता के लिए आडियो व वीडियो बनाकर प्रसारित किए जाएंगे, जिनमें ठगी के नए तरीकों के बारे में बताया जाएगा।
साइबर सेल ढीली पड़ती दिखाई दे रही है। एक-दो मामले छोड़ दें तो लंबे समय से कोई बड़ा गिरोह नहीं पकड़ा गया। कार्रवाई कैसे बढ़ाएंगे?
साइबर सेल की सक्रियता बढ़ी है। फर्क यह है कि अब साइबर सेल पर्दे के पीछे ही रहती है। पहले 17 लोग थे, जिनकी संख्या अब 30 है।
साइबर सेल की भी तीन अलग-अलग टीम बनाई हैं। एक आर्थिक और दूसरी इंटरनेट मीडिया अपराध के मामले देखेगी। तीसरी टीम वालेंटियर्स के साथ मिलकर जागरूकता कार्यक्रम करेगी। यह टीम स्कूल, कालेज, सोसायटी, कालोनी, पंचायत घर में जाकर साइबर अपराध से बचने के तरीके बताएगी।
ठगे जाने के बाद लोग साइबर सेल और थाने के बीच घनचक्कर बनकर रह जाते हैं। हर थाने में शुरू हो रही साइबर सेल क्या पीड़ितों को इस चक्कर से निजात दिलाएगी?
बिल्कुल, हर थाने में साइबर सेल इसीलिए बनाई जा रही है। साइबर थाना बनने के बाद भी इसकी जरूरत बनी रहेगी। एसएचओ वाले थानों इंस्पेक्टर समेत पांच और एसओ वाले थानों में दो दारोगा समेत चार पुलिसकर्मी तैनात कर रहे हैं।
इन्हें चार चरण बेसिक, इंटरमीडिएरी, फारेंसिक और मैनेजमेंट स्तर का प्रशिक्षण देंगे। यह सेल थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाने के साथ बड़े मामले जिलास्तरीय साइबर सेल को छानबीन के लिए भी भेजेगी।
साइबर अपराध होने क्रमानुसार
- 1930, सिर्फ ठगी के मामलों में इस नंबर को तुरंत डायल कर शिकायत दर्ज कराएं
- इंटरनेट मीडिया से जुड़ा अपराध www.cybercrime.gov.in पर दर्ज कराएं
- साइबर सेल कार्यालय जाएं- द्वितीय तल, नगर कोतवाली परिसर, घंटाघर राम लीला मैदान के सामने
- संबंधित थाने में शिकायत दें
- साइबर सेल हेल्प डेस्क पर काल करें- 8929436699
- साइबर सेल प्रभारी से संपर्क करें- 9643322892
- गाजियाबाद साइबर सेल को ई-मेल भेजें- cybercrimegz-up@nic.in
इसके बाद भी पीड़ित की सुनवाई न हो तो पीड़ित क्या करें?
यदि पैसे ठगे गए हैं तो सबसे पहले 1930 पर काल करें। इंटरनेट मीडिया से जुड़ा अपराध दिए गए पोर्टल पर दर्ज कराएं। संबंधित थाने में जाएं और शिकायत दें, यदि मुंशी आनाकानी करें तो एसएचओ और एसीपी से जरूर मिलें। मदद न मिले तो डीसीपी और मेरे कार्यालय में आकर मिलें। लापरवाही साबित होने पर संबंधित के खिलाफ कार्रवाई भी की जाएगी।
साइबर अपराधियों पर सामान्य अपराधियों जैसी निरोधात्मक कार्रवाई नहीं होती। ऐसा क्यों?
पैसे ठगे जाने के बाद पीड़ित के लिए सबसे बड़ी राहत रुपये वापस मिलना ही है। कमिश्नरेट बनने के बाद 89 मामलों में करीब 1.27 करोड़ रुपये लोगों को वापस दिलाएं है। कुछ अपराधियों पर गैंगस्टर लगाया गया है। पूर्व में पकड़े गए साइबर अपराधियों की कुंडली तैयार कर इन पर भी निरोधात्मक कार्रवाई करेंगे।
छोटी बातों के ख्याल से होगा बड़ा बचाव
- वर्क फ्राम होम का मैसेज आए तो झांसे में न आएं
- अनजान नंबर से आई वीडियो काल न उठाएं
- करीबी बनकर पैसे भेजने को कहे तो फोन काट दें
- पैसे क्रेडिट होने वाला मैसेज आने की बात कही जाए तो भरोसा न करें
- पैसे प्राप्त करने के लिए यूपीआइ पिन नहीं डालना पड़ता
- यूपीआइ पिन डालने का मतलब है कि पैसे खाते से जा रहे हैं
- एनीडेस्क रिमोट कंट्रोल, क्विक सपोर्ट जैसे एप इंस्टाल न करें
- किसी भी लिंक पर क्लिक न करें
- सेकेंड हैंड सामान खरीदने व बेचने के दौरान खुद को सैनिक बताने वाले से बचें- मिनटों में ऋण देने वाले एप इंस्टाल न करें
- यदि कोई ब्लैकमेल करता है तो पैसे न दें और पुलिस से संपर्क करें
मामले | 2022 | 2023 | बढ़ोतरी प्रतिशत में |
शिकायत | 3452 | 4912 | 42.29 |
रिपोर्ट दर्ज | 542 | 684 | 26.20 |
नोटः दोनों वर्ष के आंकड़े एक जनवरी से 15 अगस्त तक के हैं।
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