Ghaziabad Couple Death: ...तो शायद बच जाती दीपक की जान, विनोद बार-बार पत्नी से कहता था ये बात; मान लेती तो होती जिंदा
महेंद्र एंक्लेव के जेड 35 बिल्डिंग के दूसरे फ्लोर पर फ्लैट में रहने वाले विनोद और दीपक के दो बच्चे हैं। तीन दिन से विनोद ने कई बार स्वजन से आत्महत्या करने की मंशा जताई थी लेकिन वह पत्नी की भी हत्या कर देगा इसका किसी को अंदेशा नहीं था। मंगलवार को दोनों की मौत की सूचना मिलने के बाद घर पर आसपास की महिलाएं बच्चों को संभालने पहुंची।
जागरण संवाददाता, गाजियाबाद। महेंद्र एंक्लेव के जेड 35 बिल्डिंग के दूसरे फ्लोर पर फ्लैट में रहने वाले विनोद और दीपक के दो बच्चे हैं। तीन दिन से विनोद ने कई बार स्वजन से आत्महत्या करने की मंशा जताई थी, लेकिन वह पत्नी की भी हत्या कर देगा इसका किसी को अंदेशा नहीं था। मंगलवार को दोनों की मौत की सूचना मिलने के बाद घर पर आसपास की महिलाएं बच्चों को संभालने पहुंची।
विनोद के दोस्तों का कहना है कि वह बीते कई दिनों से कई बार आत्महत्या की बात कर रहा था। तीन दिन से वह अपनी पत्नी को मायके जाने के लिए बोल रहा था, लेकिन उसकी पत्नी दीपक ने मना कर दिया। दोनों में इसी बात पर झगड़े की बात भी सामने आई है।
देर रात घर नहीं लौटे तो बच्चों ने लगाया फोन
सोमवार देर रात भी जब दोनों घर से बाहर निकले तब किसी को अनुमान नहीं था कि दोनों वापस ही नहीं आएंगे। रात साढ़े नौ बजे घर से निकलने के करीब एक घंटे बाद भी जब दोनों वापस नहीं आए तो बच्चों ने फोन लगाया, लेकिन फोन नहीं उठा।पड़ोसियों से कहता था सुसाइड करने की बात
इसके बाद पड़ोसियों से बच्चों ने मदद मांगी। विनोद के पड़ोसी और मित्र योगेंद्र ने कविनगर थाने जाकर शिकायत भी दी। पड़ोसियों को पता था कि विनोद आत्महत्या की बात कर रहा है इसलिए उन्होंने गंगनहर तक का चक्कर लगाया।
समस्या कुछ नहीं फिर भी डिप्रेशन से दोस्त भी परेशान
विनोद के दोस्त अनुज चौधरी का कहना है कि विनोद को कोई आर्थिक संकट नहीं था। स्वजन से भी उसे कोई परेशानी नहीं थी। ऐसे में उसका डिप्रेशन में जाना दोस्तों को भी परेशान करता था। सोमवार रात करीब नौ बजे तक उसने दोस्तों के साथ सैर भी की। तब किसी को नहीं पता था कि उसके दिमाग में क्या चल रहा है।समय रहते स्वजन को इलाज कराना चाहिए
जिला एमएमजी अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉक्टर साकेत नाथ तिवारी का कहना है कि डिप्रेशन में मरने के विचार कई बार आते हैं। कई बार यह हत्या करने में भी बदल जाते हैं। मरीज को लगता है कि उसके मरने के बाद पीछे परिवार के लोगों को परेशानी होगी ऐसे में वह उनकी भी जान ले लेता है या जान लेने का प्रयास करता है।
डिप्रेशन के दौरान मन उदास रहता है। काम में मन नहीं लगता। गुस्सा भी जल्दी आता है और मरीज नशा भी करने लग सकता है। लेकिन नशा इसका उपचार नहीं है। समय रहते चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए और दवा का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
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