स्वदेश निर्मित अग्निरोधक वर्दी से 449 डिग्री आग के तापमान में भी हो सकेगा बचाव, जानें क्या है 'कवच' की खास विशेषता
स्वदेश निर्मित अग्निरोधक वर्दी कवच 449 डिग्री आग के तापमान में भी बचाव कर सकती है। यह पर्यावरण के अनुकूल सुरक्षित और विदेशी वर्दियों की तुलना में सस्ती है। जूट काटन और एल्युमिनियम से तैयार इस फैब्रिक को उत्तरी भारत वस्त्र अनुसंधान संघ (निटरा) ने विकसित किया है। यह वर्दी अग्निशमन कर्मियों भारी उद्योगों और जोखिम भरे स्थानों पर कार्य करने वाले कर्मचारियों के लिए उपयोगी होगी।
जूट, काटन और एल्युमिनियम से तैयार किया फैब्रिक
पांच मिनट तक आग से कवच करेगा सुरक्षा
डॉ. परमार के मुताबिक अग्निरोधक फैब्रिक को जूट और काटन पर स्पेशल फ्लेम रेसिस्टेंस केमिकल से तैयार कर बनाया गया है जो इसको अग्निरोधी बनाता है एल्युमिनियम की शीट से जो हीट आती है, उसको रिफ्लेक्ट करने में इससे मदद मिलती है। जहां तक इसे पहनकर 449 डिग्री तक की आग में रहने की बात है तो यह फंसे लोगों को आग से निकालने वालों के लिए है, इसे पहनकर पांच मिनट तक इतनी अधिक आग में रहा जा सकता है।आग से सुरक्षा के साथ-साथ आरामदायक भी
विदेशी की कीमत 15 लाख और स्वदेसी की दो लाख
निटरा के विज्ञानी डॉ. एमएस परमार ने बताया कि अग्निरोधी फैब्रिक को पूर्ण रूप से स्वदेशी बनाया गया है। यह सैन्य संस्थाओं के साथ ही बड़े उद्योगों के बजट में होगा। इसकी कीमत दो से ढ़ाई लाख प्रति ड्रेस के आसपास हो सकती है, जबकि विदेशी अग्निरोधी ड्रेस की कीमत करीब 13 से 15 लाख रुपये होती है। हां, जब अधिक उत्पादन होने लगेगा तो दो-ढाई लाख से भी कम हो सकतीअभी अग्निशमन विभाग के पास आग से बचाव के लिए इस स्तर के संसाधन नहीं है। अभी सूती कपड़ों के अलावा एक-दो सूट ऐसे हैं, जो 35 से 70 डिग्री तक आग से बचाव में काम करते हैं। अगर 100 से 449 डिग्री तक तापमान से बचाव के लिए सूट स्वदेशी मिलेंगे तो इसका लाभ अग्निशमन विभाग को निश्चित रूप से लाभ मिलेगा। - राहुल पाल, मुख्य अग्निशमन अधिकारी, गाजियाबाद
यह भी पढ़ें- गाजियाबाद में प्रॉपर्टी खरीदने वालों को बड़ी राहत, 7 दिन बाद शुरू हो रहा रजिस्ट्री का कामअग्निरोधी फैब्रिक लुधियाना की स्टील फैक्ट्री में इसका ट्रायल हो चुका है इस शोध को पूरा होने में करीब डेढ़ साल का समय लगा है। इसके लिए कंपनी जल्द ही बजट में सैन्य एजेंसियों और उद्योगों के लिए इसका निर्माण बड़े स्तर पर आरंभ करेगी। - डॉ. अरिंदम बसु, महानिदेशक, उत्तरी भारत वस्त्र अनुसंधान संघ