Kargil Vijay Diwas 2023: जल्दी ही वापस आऊंगा, शहीद हो गया तो रोना नहीं...
Kargil Vijay Diwas 2023 ‘मां घबराओ मत मैं मां भारती की सेवा में जा रहा हूं। जल्दी ही वापस आ आऊंगा। अगर बलिदान हो गया तो रोना नहीं।’ ये कारगिल युद्ध में 22 वर्ष की उम्र में वीरगति को प्राप्त होने वाले सुराना गांव के सुरेंद्र पाल यादव के आखिरी शब्द थे जो उन्होंने जाते समय अपनी मां को बोले थे।
गाजियाबाद [दीपा शर्मा]। Kargil Vijay Diwas 2023 : ‘मां घबराओ मत, मैं मां भारती की सेवा में जा रहा हूं। जल्दी ही वापस आ आऊंगा। अगर बलिदान हो गया तो रोना नहीं।’ ये कारगिल युद्ध में 22 वर्ष की उम्र में वीरगति को प्राप्त होने वाले सुराना गांव के सुरेंद्र पाल यादव के आखिरी शब्द थे जो उन्होंने जाते समय अपनी मां को बोले थे।
कारगिल युद्ध शुरू होने से पहले सुरेंद्र दो माह की छुट्टी लेकर अपने गांव आए थे। जब वह वापस जा रहे थे तो उन्होंने मां को देखा उनकी आंखें नम थी। मां को वह जाते-जाते समझा रहे थे तो पता नहीं था वह उनकी आखिरी बातचीत होगी। उनके छोटे भाई जितेंद्र कुमार बताते हैं कि करगिल युद्घ में बड़े भाई सुरेंद्र पाल ने जो बहादुरी दिखाई थी, उस पर गर्व है।
सुरेंद्र पाल ने तोलोलिंग की पहाड़ी पर संभाला था मोर्चा
गांव के युवा उन्हें अपना आदर्श मानते हैं। सुरेंद्र के छोटे भाई नरेंद्र कुमार सुरेंद्र से एक साल पहले ही सेना में भर्ती हुए थे जो दिसंबर 2013 में ही रिटायर हो गए।
कारगिल युद्ध के दौरान सिपाही सुरेंद्र पाल यादव अपने साथी हवलदार रामेश्वर प्रसाद व अन्य चार जवानों के साथ द्रास सेक्टर में तोलोलिंग की पहाड़ी पर मोर्चा संभाले हुए थे। पहाड़ी के ऊपर से गोलियों की बौछार हो रही थी। अपनी जान की परवाह किए बिना इन वीरों के कदम आगे बढ़ते जा रहे थे।
विषम परिस्थितियों में भी इन जांबाजों का जोश कम नहीं हुआ। ज्यादा ऊंचाई पर होने की वजह से पाकिस्तानी सैनिक उन पर नजर रखे हुए थे।
अचानक दुश्मनों की ओर से आए एक मोर्टार के फटने से सुरेंद्र व उनके दो साथी बलिदान हो गए। शहीद सुरेंद्र पाल यादव का पार्थिव शरीर तीन जुलाई 1999 को तिरंगे में लिपटकर पैतृक गांव सुराना में पहुंचा। जहां राजकीय सम्मान के साथ उन्हें अंतिम सलामी दी गई।
अपने दो लाल भेजे थे देश की सेवा में
सुरेंद्र का जन्म तीन मार्च 1977 को गांव सुराना में किसान टेकराम सिंह के यहां हुआ था। परिवार में मां चंपा देवी, बड़े भाई वीरेंद्र कुमार, छोटे भाई नरेंद्र व जितेंद्र कुमार हैं। नरेंद्र फरवरी 1997 में सेना में भर्ती हुए थे।
छोटे भाई के सेना में जाने पर सुरेंद्र के मन में देशप्रेम की भावना जागी तो वह भी अगस्त 1997 में सेना में भर्ती हो गए। मई 1999 में कारगिल युद्ध शुरू हो गया था जिसमें बहादुरी के साथ दुश्मनों का सामना करते हुए बलिदान हो गए।