Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

गाजियाबाद के इस गांव में भाई-बहन के प्यार नहीं, सदियों पुराने नरसंहार का प्रतीक है रक्षाबंधन

दिल्ली मेरठ मार्ग से 14 किलोमीटर दूर हरनंदी नदी के किनारे स्थित सुराना गांव में सैंकड़ों वर्ष से रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाया जाता है बल्कि यहां के लोग रक्षाबंधन मनाने के स्थान पर इस दिन गांव के लोग सदियों पहले हुए एक नरसंहार का शोक मनाते हैं जिसकी कड़वी यादें और उनसे जुड़ी कहानियां लोगों के मानस आज भी जिंदा है।

By Vikas Verma Edited By: Abhishek Tiwari Updated: Mon, 19 Aug 2024 09:20 AM (IST)
Hero Image
सुराना गांव में रक्षाबंधन मनाने का रिवाज नहीं है। फोटो- जागरण

विजयभूषण त्यागी, मुरादनगर। आज जबकि करोड़ों लोग अपने रक्त और धर्म संबंधी भाई- बहनों के साथ इस रक्षाबंधन का स्नेहपर्व मना रहे हैं, तो मुरादनगर क्षेत्र में एक गांव ऐसा भी है जहां रक्षाबंधन मनाने के स्थान पर इस दिन को अपशकुन के तौर पर देखा जाता है।

गांव के लोगों का कहना है कि सुराना गांव में रक्षाबंधन मनाने का रिवाज नहीं रहा है। पूर्व में कई कुछ लोगों ने रक्षाबंधन मनाने का प्रयास भी किया तो गांव में अशुभ घटनाएं शुरू हो गई।

तराईन के युद्ध से जुड़ा है नरसंहार का इतिहास

सुराना गांव मूलरूप से छबड़िया गोत्र यदुवशी अहीरों द्वारा बसाया हुआ बताया जाता है। जो कि सन 1106 के आसपास राजस्थान के अलवर से हरनंदी के तट पर आ बसे थे। युद्धप्रिय जाति होने के चलते सौ व रण शब्द हो जोड़कर गांव नाम सौराणा रखा गया जो कालांतर में सुराना हो गया।

1192 में तराईन के द्वितीय युद्ध में मोहम्मद के हाथों पृथ्वीराज चौहान की पराजय के बाद उनकी सेना बचे हुई अहीर यादव सिपाहियों की टुकड़ी ने सुराना गांव में शरण ली थी। उक्त टुकड़ी की पीछा करते हुए गौरी ने अपनी पचास हजार की सेना सुराना गांव पहुंची और पूरे गांव को घेर लिया और सिपाहियों को हवाले करने या युद्ध करने की धमकी दी थी।

आन पर जान लुटाने वाले यदुवशियों ने शरणागत सिपाहियों को हवाले करने से इंकार कर दिया। जिसके परिणामस्वरूप रक्षाबंधन के दिन अपनी बहनों से राखी बंधवाकर केसरी बाना पहनकर यदुवशी यौद्धा गौरी की विशाल सेना के सामने जा डटे।

हजारों की सेना के सामने सैकड़ों यदुवंशियों ने लड़ते हुए अपनी कुर्बानी दी। बाद में गौरी के आदेश पर गांव के बचे हुए वृद्धों महिलाओं व बच्चों का नृशंस नरसंहार कर दिया था। सैकड़ों वर्ष पहले आए उस खूनी रक्षाबंधन की याद आज लोगों जहन में हैं और यहां के लोग अपने पूर्वजों के साथ नरसंहार के शोकस्वरूप गांव में रक्षाबंधन का त्यौहार नहीं मनाते हैं और सुराना गांव में रक्षाबंधन को शोक दिवस के तौर पर मनाया जाता है।

चाहकर भी नहीं मना सकते हैं त्यौहार

सुराना सुठारी गांव निवासी पूर्व जिला पंचायत सदस्य विकास यादव का कहना है कि रक्षाबंधन के दिन गांव के सभी भाई व उनकी बहनें पूरी तरह से उदासी के हवाले होते हैं। जब पूरी देश में लोगों की कलाईयों पर रंगबिरंगी राखियां सजी रहती है जब हमारी गांव में भाई खाली हाथ लेकर घूमते हैं।

ग्राम प्रधान जंगली फौजी ने बताया कि गांव में रक्षाबंधन के स्थान पर भैयादूज का पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। रक्षाबंधन की कमी गांव के लोग भाईदूज पर पूरी कर लेते हैं।

आपके शहर की तथ्यपूर्ण खबरें अब आपके मोबाइल पर