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Ghaziabad Dudheshwar Nath Temple: सावन को सर्वोत्तम मास कहने की क्या है वजह, जानें शिव महिमा के पांच रहस्य

Ghaziabad Dudheshwar Nath Temple भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का अन्य कारण यह भी है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था।

By Pradeep ChauhanEdited By: Updated: Sat, 16 Jul 2022 07:47 PM (IST)
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Ghaziabad Dudheshwar Nath Temple: श्रीमहंत नारायण गिरि जी महाराज ने बताया कि सावन मास को सर्वोत्तम मास कहा जाता है।

नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। Ghaziabad Dudheshwar Nath Temple: गाजियाबाद सिद्ध पीठ श्री दूधेश्वर नाथ मंदिर में सावन मास के चलते रोजाना मंदिर में श्रद्वालुओं की भीड़ उमड़ रही है। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रोजाना मंदिर परिसर में कोई न कोई धार्मिक कार्यक्रम होता है। दुधेश्वर नाथ मंदिर में प्रातः काल भगवान भोलेनाथ का भव्य श्रृंगार एवं आरती पूजन होता है। मंदिर के पीठाधीश्वर श्रीमहंत नारायण गिरी जी महाराज वैद विद्यापीठ के आचार्य एवं छात्रों द्वारा मन्त्रोउच्चारण के साथ भगवान शिव का पंचामृत द्वारा अभिषेक करते हैं।

सावन मास को कहते हैं सर्वोत्तम मास

श्रीमहंत नारायण गिरि जी महाराज ने बताया कि आज सावन मास को सर्वोत्तम मास कहा जाता है। पांच पौराणिक तथ्य बताते हैं कि क्यों सावन आरंभ हो गया है तो सबसे खास पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो हलाहल विष निकला, उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की, लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया।

इसी से उनका नाम 'नीलकंठ महादेव' पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे।

भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का अन्य कारण यह भी है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।

इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का ख़ास महत्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। 'शिवपुराण' में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इसलिए जल से उनकी अभिषेक के रूप में अराधना का उत्तमोत्तम फल है, जिसमें कोई संशय नहीं है।

शास्त्रों में वर्णित है कि सावन महीने में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसलिए ये समय भक्तों, साधुसंतों सभी के लिए अमूल्य होता है। यह चार महीनों होने वाला एक वैदिक यज्ञ है, जो एक प्रकार का पौराणिक व्रत है, जिसे 'चौमासा' भी कहा जाता है। तत्पश्चात सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं। इसलिए सावन के प्रधान देवता भगवान शिव बन जाते हैं। 

रूदाभिषेक और भंडारे का आयोजन

वहीं, मंदिर प्रांगण में रूदाभिषेक और भंडारे का आयोजन हुआ। समाजसेवी डॉ धीरज कुमार भार्गव की माता स्वर्गीय श्रीमति इंदिरा भार्गव की 13 वीं पुण्यतिथि पर यह आयोजन किया गया। इसमें मंदिर के महंत नारायण गिरी जी महाराज ने रुद्राभिषेक कर विधिवत मंत्रोच्चारण के साथ भंडारे की शुरुआत की।

इस मौके पर मनीषा भार्गव, प्रतीक भार्गव, कुनिका भार्गव, नीरज भार्गव, निशा माहेश्वरी, रितु रोहेला, अनिता बंसल, रितु पसारी, विजय भार्गव, सुनील गौतम, दयानंद शर्मा आदि मौजूद रहे।

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