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Lok Sabha Chunav: चुनाव में बनते-बिगड़ते समीकरण के बीच हर बार बदलते हैं नारों के तेवर, खूब जमाते हैं रंग

चुनाव में दो बातें बेहद अहम हैं जिनमें पहली चुनावी चुनावी घोषणाएं और दूसरे चुनावी नारे। ये दोनों बातें चुनाव में रंग जमाते हैं। चुनाव प्रचार में नारों के तेवर जनता की जुबान पर ऐसे चढ़ जाते हैं कि इससे प्रत्याशी की हार-जीत का मार्ग प्रशस्त होता है। वर्ष 1952 से 2024 तक नारों से पार्टियों की विचारधारा की तस्वीर बनी है।

By Shahnawaz Ali Edited By: Abhishek Tiwari Updated: Tue, 16 Apr 2024 10:27 AM (IST)
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चुनाव में बनते-बिगड़ते समीकरण के बीच हर बार बदलते हैं नारों के तेवर
शाहनवाज अली, गाजियाबाद। चुनाव में दो बातें बेहद अहम हैं, जिनमें पहली चुनावी घोषणाएं और दूसरे नारे। आक्रामक प्रचार शैली, स्टार प्रचारक और चमक-दमक के साथ नारे चुनाव में जीत-हार को तय करने में खास रोल निभाते हैं। चुनाव के बनते-बिगड़ते समीकरणों के बीच चुनावी नारे खूब रंग जमाते रहे हैं।

शुरुआती चुनाव से मौजूदा दौर तक चुनावी नारे ही सियासी दलों की विचारधारा की तस्वीर को जनता के बीच साफ करती हैं। इन्हीं नारों की पतवार के सहारे कई पार्टियों की नैया भी पार लगी है।

लोकसभा चुनाव के लिए नारों का शोर गली-मोहल्लों में भले ही न सुनाई दे रहा हो, लेकिन सोशल मीडिया के माध्यम से जन-जन तक पहुंच बना रहे हैं। इनका असर पहले से अधिक प्रभावी है। आजादी के बाद हुए आम चुनाव से अभी तक नारों के तेवर ने बनते बिगड़ते समीकरणों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।

कब जुबान पर चढ़ा कौन सा नारा?

वर्ष 1952 में

  • खरा रुपैया चांदी कौ, राज महात्मा गांधी कौ।
  • देश की जनता भूखी है, यह आजादी झूठी है

वर्ष 1957 में

  • जली झोपड़ी भागे बैल, यह देखा दीपक का खेल, जिस दीपक में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं।
  • वर्ष 1962 में, lजाटव-मुस्लिम भाई-भाई, बाकी कौम कहां से आई।
  • सिंहासन खाली करो जनता आती है।

वर्ष 1967 में

  • जय जवान जय किसान।

वर्ष 1977 में

  • बेटा कार बनाएगा, मां सरकार बनाएगी।
  • जमीन गर्क चकबंदी में, मकान ढह गया हटबंदी में।
  • दरवाजे पर खड़ी औरतें चिल्लाएं, मेरा मर्द गया नसबंदी में।

वर्ष 1980 में

  • इंदिरा जी की बात पर मुहर लगेगी हाथ पर, का नारा लगा।

वर्ष 1984 में

  • जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिरा तेरा नाम रहेगा।
  • उठे करोड़ों हाथ हैं, राजीव जी के साथ हैं।

वर्ष 1996 में

  • ‘सबको देखा बारी-बारी, अबकी बारी अटल बिहारी।’
  • महंगाई जो रोक न पाई वो सरकार निकम्मी है जो सरकार निकम्मी है वो सरकार बदलनी है।

वर्ष 2004 में

  • शाइनिंग इंडिया, कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ।

वर्ष 2014 में

  • ‘अबकी बार मोदी सरकार, अच्छे दिन आने वाले हैं और हर हर मोदी, घर घर मोदी।

वर्ष 2019 में

  • ‘सबका साथ सबका विकास’, ‘मोदी है तो मुमकिन है।
  • मोदी हटाओ, देश बचाओ, अब होगा न्याय।

वर्ष 2024 में

  • मोदी की गांरटी, अबकी पार 400 पार।
  • कांग्रेस का हाथ बदलेगा हालात
  • सपा का ‘घर घर बेरोजगार मांगे रोजगार”
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