'युवाओं को शांति व ऊर्जा देता है शास्त्रीय संगीत...', IIT मद्रास में स्पिक मैके का नौवां इंटरनेशनल कन्वेंशन हुआ संपन्न
रविवार यानी 26 मई को चेन्नई स्थित आइआइटी मद्रास परिसर में स्पिक मैके का नौवां इंटरनेशनल कन्वेंशन 2024 संपन्न हुआ है जिसमें युवाओं की पसंद बता रही है कि जो धारणाएं उनके बारे में बनाई गई हैं वे कितनी गलत हैं। तकनीक के जो छात्र अपने विषयों के नोट्स बना रहे थे उन्होंने संगीत के नोट्स का भी आनंद उठाया।
जागरण संवाददाता, गाजियाबाद। आइआइटी मद्रास परिसर में 20 से 26 मई तक आयोजित हुआ स्पिक मैके का शास्त्रीय संगीत पर आधारित कार्यक्रम इस धारणा को तोड़ता है कि आज की पीढ़ी के युवाओं की भारतीय संस्कृति और शास्त्रीय संगीत में कोई रुचि नहीं है...
गाजियाबाद के संगातायन विवेक भटनागर ने कहा कि शास्त्रीय संगीत को लेकर कई मिथक बन गए हैं। जैसे कि आज के युवाओं को शास्त्रीय संगीत पसंद नहीं..., जिसे शास्त्रीय संगीत का ज्ञान नहीं है, वह उसमें आनंद नहीं उठा सकता... तकनीक-विज्ञान और कला- संगीत का आपस में कोई मेल नहीं है। इस तरह की मिथ्या धारणाओं को तोड़ा है स्पिक मैके ने।
छात्रों ने बनाए संगीत के नोट्स
रविवार 26 मई को चेन्नई स्थित आइआइटी मद्रास परिसर में स्पिक मैके का नौवां इंटरनेशनल कन्वेंशन 2024 संपन्न हुआ है, जिसमें युवाओं की पसंद बता रही है कि जो धारणाएं उनके बारे में बनाई गई हैं, वे कितनी गलत हैं। तकनीक के जो छात्र अपने विषयों के नोट्स बना रहे थे, उन्होंने संगीत के नोट्स का भी आनंद उठाया।20 से 26 मई तक आइआइटी मद्रास का परिसर संगीत के स्वर, लय, ताल, आलाप, तान से गूंजता रहा। भारतीय संगीत की धरोहर को आत्मसात कर तकनीक के छात्रों ने अपने भीतर असीम शांति का अनुभव किया। स्पिक मैके का गठन ही युवाओं में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए हुआ, लेकिन इस सांस्कृतिक आंदोलन के संस्थापक किरण सेठ के लिए यह आसान नहीं था।
1977 में आइआइटी दिल्ली में एसोसिएट प्रोफेसर रहते हुए किरण यह मिथक तोड़ना चाहते थे कि शास्त्रीय संगीत और भारतीय पुरातन संस्कृति से युवा तालमेल नहीं बैठा सकते। उन्होंने डागर बंधु की प्रस्तुति के साथ शुरुआत की। इस प्रयास को 47 साल हो चुके हैं और देश के बड़े-बड़े गायक, संगीतकार, कलाकार युवाओं को लुभा रहे हैं।
लोकप्रिय कार्यक्रम बन चुका है सांस्कृतिक आंदोलन
किरण सेठ कहते हैं, शुरुआत में लोग कहते थे कि मैं गाने-बजाने में समय क्यों बर्बाद कर रहा हूं। हालांकि पांच छात्रों के साथ डागर बंधु की प्रस्तुति से शुरू हुआ यह सांस्कृतिक आंदोलन अब लोकप्रिय कार्यक्रम बन चुका है। इन दिनों किरण युवाओं को संगीत और संस्कृति से जोड़ने के आंदोलन के तहत साइकिल यात्रा पर हैं। वरिष्ठ वायलिन वादक जीजेआर कृष्णन, किरण सेठ को ‘योगी’ कहकर उनकी प्रशंसा करते हैं।
आइआइटी मद्रास के कार्यक्रम में प्रस्तुति देने वाले कृष्णन कहते हैं, ‘मेरे पिता लालगुडी जयरामन को भी युवाओं तथा छात्रों के लिए प्रस्तुति देना अच्छा लगता था। छात्रों को आकर्षित करने के लिए वे राग में उतरने से पहले कुछ रोचक धुनें बजाया करते थे।’इस कार्यक्रम में प्रस्तुति देने वाली भरतनाट्यम नृत्यांगना पद्मा सुब्रह्मण्यम कहती हैं, ‘युवाओं के लिए प्रस्तुति का अवसर मिलता है, तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। इस कार्यक्रम में वार्तालाप सत्र बड़े मजेदार होते हैं, क्योंकि युवा बहुत उत्सुक और जागरूक होते हैं। वे बड़ी मासूमियत से प्रश्न पूछते हैं। हो सकता है वे छात्र कला या संगीत को न चुनें, लेकिन जब वे भारतीय संस्कृति के ज्ञान से ओतप्रोत होकर जीवन में प्रवेश करेंगे, तो बेहतर पथ पर आगे बढ़ सकेंगे।’
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