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हिंदू-मुस्लिम एकता की पहचान थीं किन्नर संतोषी देवी, लोग आज भी देते हैं उनकी नेकी की दुहाई

60 साल की उम्र में अक्टूबर 2016 में किन्नर संतोषी देवी की मौत हो गई थी। वह मजहब की दीवार तोड़कर 20 साल तक मुस्लिम परिवार के साथ रह रही।

By Prateek KumarEdited By: Updated: Thu, 27 Aug 2020 08:55 PM (IST)
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हिंदू-मुस्लिम एकता की पहचान थीं किन्नर संतोषी देवी, लोग आज भी देते हैं उनकी नेकी की दुहाई

गाजियाबाद [हसीन शाह]। गाजियाबाद के मुरादनगर में हर साल मुस्लिम समुदाय के लोग हिंदू किन्नर की पुण्य तिथि पर उसे श्रद्धांजलि देते हैं। 60 साल की उम्र में अक्टूबर 2016 में किन्नर संतोषी देवी की मौत हो गई थी। वह मजहब की दीवार तोड़कर 20 साल तक मुस्लिम परिवार के साथ रह रही। उनकी मौत के बाद मुस्लिम समुदाय के लोगों ने ना केवल किन्नर का अंतिम संस्कार किया, बल्कि हरिद्वार जाकर गंगा में अस्थितयों को विसर्जित किया था। मुस्लिमों ने उनकी आत्म शांति के लिए गायत्री पाठ भी कराया था।

पति ने मारपीट कर घर से निकाल दिया था

अलीगढ़ निवासी संतोषी देवी को 20 वर्ष पूर्व पति ने मारपीट कर घर से निकाल दिया था। जिसके बाद वह अलीगढ़ से गाजियाबाद आने वाली ट्रेन बैठ गईं। संतोषी देवी ट्रेन में बैठकर रो रही थीं। इस दौरान संतोष की मुलाकात नूरगंज कालोनी निवासी मुन्नी (मुस्लिम किन्नर) से हुई। उसने उनसे रोने कारण पूछा। जिसके बाद संतोषी ने उन्हें अपनी आपबीती सुनाई। महिला की आपबीती सुनने के बाद मुन्नी का दिल भर आया और उसे अपने साथ घर ले आई। संतोषी तब से मुन्नी के साथ ही रह रही थीं। लगभग छह वर्ष पूर्व काॅलोनी के ही अब्दुल वाहिद और उसकी पत्नी मौसीना ने संतोषी देवी और मुन्नी की सेवा करनी शुरू कर थी।

एक घर में होती थी पूजा व नमाज

संतोषी देवी के कहने पर अब्दुल वाहिद ने उनके लिए अपने घर में एक मंदिर का भी प्रबंध कर दिया था। एक कमरे में संतोषी पूजा अर्चना करती थीं, वहीं दूसरे कमरे में अब्दुल वाहिद की पत्नी मौसीना नमाज अदा करती थीं। एक तरफ मस्जिद से अजान होती थी, वहीं दूसरी संतोषी सुबह उठकर आरती करती थी। संतोषी घर के बारह प्रतिदिन चौपाल लगाती थी और स्थानीय निवासियों को हिंदू-मुस्लिम एकता का पैगाम देती थी।

हिंदू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार की जताई थी इच्छा

अक्टूबर 2016 में संतोषी की तबीयत खराब हो गई थी। डाक्टरों को दिखाने के बावजूद उसकी तबीयत में कोई सुधार नहीं हुआ। समय निकट आते देख उन्होंने अब्दुल से हिंंदू-रीति रिवाज के अनुसार ही अपने शव का अंतिम संस्कार करने की इच्छा जाहिर की थी। 16 अक्टूबर 2016 की रात को संतोषी को तेज बुखार आया था। जिसके बाद अब्दुल वाहिद और उनकी पत्नी ने रात भर संतोषी की देखभाल की। उन्हें डाक्टर को भी दिखाया गया लेकिन, सुबह चार बजे संतोषी ने दम तोड़ दिया। उनकी मौत की खबर सुनकर काॅलोनी में मातम पसर गया। मुस्लिम समुदाय के सैकड़ों लोग उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए। संतोषी की इच्छानुसार हिंदू-रीति रिवाज से उनका अंतिम संस्कार मुरादनगर के गांव सहबिस्वा स्थित शमशान घाट में किया गया। सिराज खान ने संतोषी की चिता को मुखाग्नि देकर उन्हें अंतिम विदाई दी।

बीस साल का रहा साथ

संतोषी देवी हमारे साथ बीस साल रही हैं। वह आज हमारे साथ नहीं है, लेकिन उनकी याद आज भी हमारे दिलों में जिंदा है। मोहल्ले के सभी लोग हर साल उनकी पुण्यतिथि 17 अक्टूबर को उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं।

शाहिद खान, स्थानीय निवासी

मुस्लिम समुदाय ने बिना भेदभाव के हिंदू धर्म के अनुसार उसका अंतिम संस्कार किया था। उन्होंने मोहल्ले में हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल कायम की है। यह हमारे लिए गर्व की बात है।

सिराज खान

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