Gonda Train Accident: हादसे के बाद दिखा खौफनाक मंजर, घायलों की चीत्कार याद कर हो रही सिहरन
उत्तर प्रदेश के गोंडा में गत गुरुवार को चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद सुरक्षा व खुफिया एजेंसियों पर सवाल उठने लगे हैं। ट्रेन की बोगियां जिस प्रकार पलटी हैं वह संदेह पैदा करती हैं। रेलवे अधिकारी जलजमाव के कारण पटरी धंसने की बात पहले ही खारिज कर चुके हैं और लोको पायलट द्वारा इमरजेंसी ब्रेक लगाने की बात जांच का केंद्रबिंदु है।
रमन मिश्र, जागरण गोंडा। समय दोपहर दो बजे। मनकापुर के पिकौरा गांव में हर ओर गुरुवार को हुए रेल हादसे की चर्चा थी। खौफनाक मंजर, बिखरी पड़ी लाशें और घायलों की चीत्कार याद कर ग्रामीण सिहर जाते हैं। किशोर व युवाओं ने ऐसा मंजर पहली बार देखा था, जहां सिर्फ मदद की पुकार थी।
शुक्रवार को सभी घटना को लेकर गमगीन दिखे। गांव छावनी में तब्दील दिखा। रेल अधिकारी व पुलिस के जवान लोगों से पूछताछ करते दिखाई पड़े। उमस भरी गर्मी में पूर्वोत्तर रेलवे की महाप्रबंधक सौम्या माथुर सहित दूसरे रेल अधिकारी छाता के सहारे धूप के प्रभाव से बचने का जतन करते दिखे। श्रमिक रेल लाइन चालू करने के लिए धूप व उमस के बीच काम में तल्लीन थे तो निगरानी भी तेज थी।
सीताराम के दरवाजे पर तख्त पर लोग चर्चा कर रहे थे। पुलिस अधीक्षक विनीत जायसवाल उनके दरवाजे पर पहुंच गए। पानी पीने के साथ ही वहां उपस्थित लोगों से घटना की जानकारी प्राप्त की।इसे भी पढ़ें-गोंडा ट्रेन हादसे से सवालों के घेरे में सुरक्षा व खुफिया एजेंसियां, मरने वालों की संख्या हुई चार
सीताराम में बताया कि वर्ष 1980 में बड़ी लाइन का संचालन शुरू हुआ था। 44 वर्षों में तीसरी घटना है, लेकिन यह पिछले दोनों घटनाओं से अधिक पीड़ादायक थी। सिर्फ बचाओ-बचाओ की आवाज सुनाई पड़ रही थी।कुलदीप पांडेय ने कहा कि उन्होंने पहली बार इस तरह का हादसा देखा है। रात में उनके कानों में वही चीत्कार गूंज रही थी। आंखों में वही मंजर दिखाई दे रहा था। आनंद मिश्र ने कहा कि जो भी आ रहा था वह एक दूसरे की मदद करते दिख रहा था। घटना स्थल पर अपनों की खोज के लिए पहुंचे।
ज्योति व उसके साथ आए भाई, पिता व माता उसको दिलासा दे रहे थे। पुलिस कर्मी उसे समझा रहे थे कि उसके पति का नाम घायलों की सूची में नहीं है। नंबर सर्विलांस पर लगा रहे हैं। ज्योति का कहना था कि पति राजेश राव से कल दोपहर एक बजे तक फोन पर बात हुई थी। इसके बाद से उनका नंबर बंद बता रहा है।
ऐसे ही करीब 100 से अधिक लोग घटना स्थल पर पहुंचकर अपनों की तलाश कर रहे हैं, लेकिन वह कहां है, इसकी जानकारी की जा रही है। पुलिस अधिकारियों का कह रहे थे कि घटना के बाद कुछ लोग पैदल अपने घरों के लिए निकले थे। देरसबेर पहुंच जाएंगे। पुलिस अधिकारी सबसे ज्यादा एसी कोच में यात्रा कर रहे यात्रियों के प्रभावित होने की बात कह रहे थे।
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छांव ढूंढ़ते दिखे अफसरउमस भरी गर्मी में रेलवे के अधिकारी छांव ढूंढ़ते दिखाई पड़े। कर्मचारी छाता लेकर अफसरों को धूप से बचाते दिखाई पड़े। हर कोई पानी की तलाश करते दिखा। भोजन दोपहर तीन बजे मिलने पर कर्मियों व श्रमिकों में आक्रोश दिखा। उधर बाबू ईश्वर शरण चिकित्सालय में ट्रेन हादसे के घायलों के लिए स्वयंसेवकों ने रक्तदान किया। स्वयंसेवियों संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने पानी व भोजन वितरित किया।
44 वर्षों में हुए तीन हादसेगोंडा-गोरखपुर रेल मार्ग को वर्ष 1980 में बड़ी लाइन संचालित की गई। पिकौरा गांव के बद्री ने बताया कि लाइन बनने के 44 वर्षों में तीन हादसे हो चुके हैं। पहली बार वर्ष 1990 में झिलाही के कटका के पास साबरमती एक्सप्रेस की बोगियां उतर गई थी।
इसके बाद वर्ष 2000 के आसपास गुनौरा के पास अवध-आसाम एक्सप्रेस ट्रेन कोच ट्रैक से उतर कर खेत में चले गए थे। बताया कि तब 40 से अधिक यात्री घायल हो गए थे। दो किलोमीटर के भीतर यह तीसरी घटना है।
ट्रैक से नीचे गिरा दी बोगियाशुक्रवार को लाइन चालू करने के लिए चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस की बोगियों को ट्रैक से नीचे गिरा दिया गया। उसे पर्दा से ढक दिया गया। इसके बाद लाइन मरम्मत का कार्य शुरू किया गया। ट्रेन में 24 बोगी लगी थी। जिसका इंजन वहां से झिलाही में खड़ा कराया गया है।
एक ट्रैक को बहाल कर दिया गया है। जबकि दूसरे ट्रैक की मरम्मत जोर शोर से की जा रही है। ट्रैक के 100 मीटर इधर व 100 मीटर उधर पानी भरा है इससे हादसे को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।
डटे रहे अधिकारीशुक्रवार को पूर्वोत्तर रेलवे की महाप्रबंधक सौम्या माथुर, प्रधान मुख्य इंजीनियर रंजन यादव, पीसीएमई मनोज कुमार अग्रवाल, पीसीईई संजय सिंघल, एमटीआरएस रेलवे बोर्ड सतीश कुमार व डीआरएम आदित्य कुमार डटे रहे। रेलवे बोर्ड की अध्यक्ष जया वर्मा सिन्हा ने भी गुरुवार की रात में घटना स्थल का निरीक्षण किया था।
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