उपेक्षा से जूझ रही राजा देवी बख्श सिंह की निशानी
आज भी लोगों की जुबां पर है राजा की शौर्य गाथा, विकास की आस संजो रहे स्थल
सुशील श्रीवास्तव, धानेपुर (गोंडा): राजा बखानौं मैं गोंडा कै देवीबख्श महाराज रहे, असी चार चौरासी कोस मां जेहकै डंका बाजि रहे... की लाइनें गोंडा नरेश राजा देवी बख्श सिंह की शौर्यगाथा का बखान करने के लिए काफी है। उन्होंने अंग्रेजों से सीधी लड़ाई लड़ी। ब्रिटिश हुकूमत के आगे न तो उन्होंने समर्पण किया न ही हार मानी। राजा से जुड़े स्थल आज भी उपेक्षा का शिकार है।
1857 वीं की क्रांति के महानायक महाराजा देवी बख्श सिंह की कोट बनकसिया, राजगढ़ व जिगना में थी। उनका पूरा परिवार जिगना कोट में ही रहता था। राजा को मल्लयुद्ध, घुड़सवारी, तैराकी में दक्षता हासिल थी। लखनऊ में नवाब वाजिद अली शाह के सामने राजा ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया था। ब्रिटिश हुकूमत ने राजा को कई प्रस्ताव भेजे लेकिन, उन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया।
नवाबगंज के पास लगती लोलपुर का ऐतिहासिक मैदान महाराजा देवी बख्श सिंह के आन-बान व शान का जीता जागता सबूत है। जब उन्होंने अंग्रेजों की गुलामी नही स्वीकारी तो अंग्रेज हुकूमत ने उन्हें कमजोर करने के लिए पड़ोसी राजाओं को बढ़ावा देना शुरू कर दिया। उन्हीं के उकसाने पर राजा देवी बख्श सिंह के राज्य पर हमला भी किया गया। कानपुर से लेकर नेपाल सीमा तक कड़ी टक्कर देने वाली राजा की सेना ने इस बार भी उतनी ही वीरता से मुकाबला किया। बहादुर सेना को सात दिनों तक भूखे रहकर युद्ध करना पड़ा।
गोंडा नरेश ने अंग्रेजों के सामने घुटने नही टेके और अपने वफादार सैनिकों को लेकर नेपाल चले गए। अवध का सबसे अंतिम जिला गोंड़ा ही है, जिस पर सबसे अंत में अंग्रेजों ने कब्जा पाया।
धानेपुर से 20 किलोमीटर दूर मुजेहना ब्लाक में स्थित जिगना बाजार में उनका पैतृक महल खंडहर के रूप में आज भी है। बुजुर्ग बताते हैं कि महल में एक लाख ताख बने थे,जिस पर दीपावली के दिन दिये जलाये जाते थे। आज यह उपेक्षा का शिकार है। भवन जर्जर हो चुका है। दीवारों पर जंगली घासें उगी हैं। जिगना बाजार में मंदिर व महल अपनी पहचान खोते जा रहे हैं लेकिन, प्रशासन इस ओर ध्यान नही दे रहा है। राजा देवी बख्श से जुड़ी स्मृतियों को संजोने का प्रयास कर रहे धर्मवीर आर्य का कहना है कि कई बार अधिकारियों को पत्र लिखा गया लेकिन, हालात जस के तस बने हुए हैं।