अखाड़े की मिट्टी बनाना मेहनत भरा काम है। दूध मट्ठा तेल और हल्दी मिलाकर जो मिट्टी तैयार होती है उसका मोल पहलवान ही जानते हैं। यहां इसकी चर्चा इसलिए क्योंकि दंगल और पहलवानी से निकट संबंध रखने वाले कैसरगंज के चुनावी अखाड़े की मिट्टी में प्रचार प्रबंध और परिश्रम की जगह अब तक प्यार इन्कार और इंतजार का मिश्रण दिख रहा है। अम्बिका वाजपेयी की रिपोर्ट...
अम्बिका वाजपेयी, गोंडा। (Brij Bhushan Sharan Singh) महिला पहलवानों के आरोपों से घिरने और टिकट कटने की चर्चा के बीच कैसरगंज सांसद बृजभूषण शरण सिंह कह तो रहे हैं कि पार्टी उनसे बहुत प्यार करती है, लेकिन फिलहाल इंतजार करवाकर उनके विरोधियों को उसमें इनकार तलाशने का मौका दे रही है। हालांकि बृजभूषण भी मैदान में जोरशोर से लगे हैं। वह रोड शो करके कयासों का जवाब देने में व्यस्त हैं।
चर्चा में रहना किस राजनेता को पसंद नहीं? और बिना चर्चा के राजनीति में मजा नहीं।
कैसरगंज लोकसभा सीट (Lok Sabha Election 2024) की स्थिति भी कुछ ऐसी है। यहां जीत-हार से ज्यादा चर्चा टिकट कटने और मिलने को लेकर है। पिछले दो साल में सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने पहलवानों के आरोप, विरोध-प्रदर्शन और बयानबाजी के इतने धोबीपाट झेले हैं कि उनको अखाड़े की पहलवानी आसान लग रही होगी।
तुलसीदास की जन्मस्थली है गोंडा?
राजनीतिक चर्चा के बीच कर्नलगंज से परसपुर जाने वाले मार्ग पर कमल किशोर सिंह एक गेट दिखाते हैं, जिस पर लिखा है तुलसी जन्म भूमि प्रवेश द्वार। मैंने पूछा, ‘तुलसी की जन्मस्थली होने का दावा तो बांदा के लोग करते हैं? कमल किशोर तुरंत कहते हैं, तुलसी बाबा ने विनय पत्रिका में लिखा है कि ‘आलसी अभागे मोसे तें कृपालु पाले पोसे, राजा मोरे राजा राम, अवध सहरु’ चूंकि जिस वक्त उन्होंने यह पंक्तियां लिखी थीं, उस वक्त गोंडा का कोई अस्तित्व नहीं था।
खैर तुलसी बाबा पर गोंडा और बांदा के अपने दावे होंगे, लेकिन कैसरगंज में भी बृजभूषण को लेकर सबके अपने दावे हैं।
सहयोगी रमन मिश्र बताते हैं कि टिकट घोषित होना अपनी जगह है, लेकिन हर समारोह और निमंत्रण में बृजभूषण की मौजूदगी अंदर ही अंदर चल रही उनकी तैयारी के संकेत देती है। उनका वैसे भी एक पैर दिल्ली तो दूसरा संसदीय क्षेत्र में रहता है। यह सच है कि पहलवानी अक्खड़पन कहें या अपने जुदा अंदाज के कारण बृजभूषण अपनी पार्टी के ही कई लोगों को रास नहीं आते। इसके पीछे उनकी महत्वाकांक्षा भी है, लेकिन यह भी सच है कि राजनेता को महत्वाकांक्षी होना भी चाहिए।
अयोध्या से चुनाव लड़ने की थी चर्चाएं
यह भी चर्चा है कि एक दबी महत्वाकांक्षा ने कुछ समय पहले अंगड़ाई ली थी कि उस रामनगरी से राजनीति की जाए, जहां से उन्होंने छात्र राजनीति की और पहलवानी के गुर सीखे। रामनगरी में जनसभा की तारीख घोषित करना और फिर रद कर देना, इसको लेकर भी काफी अटकलें लगाई गईं, लेकिन इसका संदर्भ इतना ही है कि लल्लू सिंह को फैजाबाद से टिकट मिल चुका है।पिछले महीने मुख्यमंत्री के आगमन पर सरकारी विज्ञापन तथा मंच के बैनर से उनका नाम-फोटो गायब होना समर्थकों को अखरा तो विपक्ष ने चुटकी ली।
कर्नलगंज के पंकज मिश्र बताते हैं कि टिकट को लेकर जितने मुंह, उतनी बातें हैं। कोई कहता है कि करीबी, पुत्र या पत्नी को टिकट देने का प्रस्ताव पार्टी दे चुकी है जो बृजभूषण को मंजूर नहीं। वह खुद लड़ना चाहते हैं। बृजभूषण कहते हैं, ‘पार्टी मुझसे बहुत प्यार करती है’।भाजपा जिलाध्यक्ष अमर किशोर कश्यप कहते हैं कि पार्टी का फैसला सर्वोपरि होगा। खैर, बृजभूषण के समर्थक आश्वस्त हैं और दूसरे दल पत्ते खुलने का इंतजार कर रहे हैं। अब पार्टी इनसे जब तक प्यार का इजहार नहीं करती तब तक विरोधी इसे इन्कार मानेंगे, जनता अटकलें लगाएगी और सपा तो इंतजार कर ही रही है।
बेनी चार, बृजभूषण तीन बार जीते
कैसरगंज लोकसभा सीट गोंडा और बहराइच जिले में पड़ती है। इसमें पयागपुर, कैसरगंज, कटरा बाजार, कर्नलगंज और तरबगंज पांच विधानसभा सीटें हैं। गोंडा में कर्नलगंज, कटरा बाजार तथा तरबगंज विधानसभा सीट आती हैं तो बहराइच में पयागपुर और कैसरगंज हैं।बृजभूषण सिंह लगातार तीन बार से सांसद हैं तो कांग्रेस को भी अब तक तीन बार जीत मिली है। मुलायम सिंह यादव के करीबी स्व. बेनी प्रसाद वर्मा ने लगातार चार बार जीत दर्ज की। 2008 में परिसीमन किया गया तो कैसरगंज से बाराबंकी वाले हिस्से को अलग कर दिया गया और गोंडा के कुछ इलाके शामिल कर लिए गए।
भाजपा छोड़कर सपा में पहुंचे बृजभूषण शरण सिंह 2009 में यहां से जीते, लेकिन 2014 में चुनाव से पहले वह सपा छोड़कर एक बार फिर बीजेपी में शामिल हो गए। बृजभूषण ने सपा के विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह को 78,218 मतों से हरा दिया। 2019 में बृजभूषण ने जीत का अंतर बढ़ाया।जातीय समीकरण देखें तो कैसरगंज एक क्षत्रिय बहुल इलाका है तो गोंडा के कुछ इलाकों में ब्राह्मण मतदाताओं का दबदबा है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, कैसरगंज में दलित मतदाताओं की संख्या 14 फीसद थी, जबकि तब यहां पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 25.27 फीसद थी। 2009 से पहले यहां कुर्मी मतदाताओं की स्थिति अच्छी थी।
कुर्मी नेता बेनी प्रसाद वर्मा लगातार चुनाव जीतने में सफल रहे, हालांकि परिसीमन के बाद यहां पर स्थिति थोड़ी बदल गई है। इस बार यहां पर चुनावी मुकाबला कड़ा हो सकता है।
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