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महाभारत काल का है पृथ्वीनाथ मंदिर, भीम ने की थी शिवलिंग की स्थापना; जानिए गोंडा के प्राचीन मंदिरों की कहानी

गोंडा के प्राचीन मंदिरों की कहानी और इतिहास बेहद रोचक है। पृथ्वीनाथ मंदिर की स्थापना पांडवों ने की थी और शिवलिंग की स्थापना भीम ने की थी। दुखहरणनाथ मंदिर का अतीत त्रेतायुग से जुड़ा है और मान्यता है कि भगवान शिव यहां दर्शन करने आए थे। बरखंडीनाथ महादेव मंदिर करौहानाथ मंदिर और बालेश्वरगंज मंदिर भी श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्र हैं।

By Jagran News Edited By: Riya Pandey Updated: Wed, 04 Sep 2024 06:55 PM (IST)
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अज्ञातवास के दौरान भीम ने की थी पृथ्वीनाथ मंदिर में शिवलिंग की स्थापना

संवाद सूत्र, गोंडा। खरगूपुर स्थित पृथ्वीनाथ मंदिर की स्थापना पांडवों ने की थी। महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने यहां पर प्रवास किया था। उस वक्त भीम ने शिवलिंग की स्थापना की थी। यह साढ़े पांच फीट ऊंचा है। काले कसौटी के पत्थरों से यह शिवलिंग निर्मित है। पुरातत्व विभाग की जांच में पता चला कि यह शिवलिंग पांच हजार वर्ष पूर्व महाभारत काल का है।

त्रेतायुग से जुड़ा है दुखहरणनाथ मंदिर का अतीत

किवंदतियों के अनुसार गोंडा नगर के मध्य स्थित दुखहरण नाथ मंदिर का अतीत त्रेतायुग से जुड़ा है। मान्यता है कि अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जन्म पर भगवान भोलेनाथ दर्शन करने गए हुए थे। वहां से वापस हाेते समय वह काफी खुश थे। ऐसे में वह जिस स्थल पर ठहरे थे, उसे वर्तमान में दुखहरण नाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है।

कहा जाता है कि यहां पर पूजन करने से भोलेनाथ सबके दुखों का हरण कर लेते हैं। इसके प्रति लोगों की आस्था सर्वाधिक है। मंदिर की मुख्य प्राचीर के अगल-बगल दो अन्य छोटी-छोटी प्राचीर हैं, जिससे मंदिर आकर्षक व भव्य लगता है।

हाथी भी नहीं हिला सके थे पत्थर

कर्नलगंज में हुजूरपुर रोड पर प्राचीन बरखंडीनाथ महादेव मंदिर है। किंवदंतियों के अनुसार कई दशक पूर्व कर्नलगंज में यह क्षेत्र एक जंगल था। जंगल में लोग अपने पशुओं को चराने के लिए आते थे। पशु जब चरने लगते थे तो लोग जंगल से मूंज एकत्र करके उसकी कुटाई करते थे। इसके बाद मूंज की रस्सी बनाई जाती थी। एक दिन जिस पत्थर पर मूंज हथौड़े से कूट रहे थे, अचानक उससे खून निकलने लगा और हथौड़ा मारने वाले उस चरवाहे की मृत्यु हो गई। इसकी सूचना क्षेत्र में फैलने पर लोगों का जमावड़ा लग गया।

पयागपुर के राजा को इसकी सूचना मिली तो वह हाथी व घोड़ों के साथ वहां पहुंचे और जंजीर में बांध कर पत्थर को हाथी से खिंचवाने लगे लेकिन, पत्थर को नहीं निकाल सके। इसके बाद खोदाई करके पत्थर निकालने की कोशिश की, फिर भी पत्थर से खून की धार बहने से रोक नहीं सके और खुद बीमार पड़ गए, इसके बाद में उन्होंने सपना देखा कि यहां शिव मंदिर बनवाने से वह ठीक हो सकते हैं।

राजा ने मन्दिर का निर्माण करवाकर कोट बाजार निवासी हरिलालपुरी व हनुमानपुरी को वहां से यहां भेजकर शिव भक्ति में लगा दिया। इसके साथ ही अविवाहित हनुमान पुरी को महंत बना दिया। जबकि हरिलाल पुरी का विवाह हुआ व वंश बढ़ी। इन्ही वंशजों में से एक संतान मंदिर का महंत बनता गया।

करोहानाथ व बालेश्वरगंज मंदिर में श्रद्धालु करते हैं जलाभिषेक

वजीरगंज के बालेश्वरगंज व मनकापुर के करौंहानाथ मंदिर से भी श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है। यहां भी जलाभिषेक के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। सावन, कजरीतीज व महाशिवरात्रि पर पूजन व जलाभिषेक का विशेष महत्व है।

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