नीरज का साक्षात्कारः सत्ता के साये में घुटता साहित्य
कवि गोपाल दास नीरज का कहना था कि जब भी साहित्य, सत्ता के साये में पलता है तो वह पहले घुटता है और फिर मरने लगता है।
By Nawal MishraEdited By: Updated: Fri, 20 Jul 2018 08:20 AM (IST)
गोरखपुर (जेएनएन)। मशहूर कवि पद्मविभूषण गोपाल दास 'नीरज' साहित्य और सत्ता के रिश्ते को स्वीकार नहीं करते। उनका कहना था कि जब भी साहित्य, सत्ता के साये में पलता है तो वह पहले घुटता है और फिर मरने लगता है। एक कवि सम्मेलन में शिरकत करने के लिए नीरज 19 नवंबर 2017 को शहर में थे। दैनिक जागरण में 20 नवंबर के अंक में उनका यह साक्षात्कार प्रकाशित हुआ था। जागरण से संवाद के दौरान उन्होंने सत्ता और साहित्य के संबंधों समेत कई साहित्यिक चिंताओं पर विस्तार से चर्चा की। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश। -
- साहित्य को सत्ता के संरक्षण की जरूरत आप किस हद तक महसूस करते हैं?
नीरज : साहित्य को सत्ता की कोई जरूरत नहीं है। सत्ता को साहित्य की जरूरत है। साहित्य, सत्ता का मार्गदर्शन करता है, सत्ता, साहित्य की नहीं। साहित्य, सत्ता को सही रास्ते पर लाने का कार्य करता है।
- जब सत्ता, साहित्य को गाइड करने की स्थिति में आ जाए तो ऐसे साहित्य को आप क्या कहेंगे?
- पिछले दिनों यश भारती के बारे में आरटीआइ से पता चला कि उसके लिए कोई पात्रता मेरिट नहीं है? ऐसे पुरस्कार को आप कितनी अहमियत देते हैं?
नीरज : उसकी कोई नियमावली ही नहीं है। मैंने नियमावली बनाकर भेजी थी। यह सुझाव दिया था कि 60 वर्ष से ऊपर के ऐसे लोगों को पेंशन दी जाए जिन्होंने प्रांत व देश में नाम कमाया हो। जो सरकारी नौकरी में रहा हो, उसे यह पेंशन नहीं देना चाहिए, ताकि जरूरत के समय में जरूरतमंद को पेंशन मिल सके।
- आपके लिखे कई फिल्मी गीत मील का पत्थर बन गए। आज के फिल्मी गीतों के बारे में क्या कहना चाहेंगे?
साहित्य के क्षेत्र में कोई ऐसी तमन्ना जो अभी भी अधूरी है?नीरज : मैं आध्यात्मिक विषय पर एक महाकाव्य लिखना चाहता था, लेकिन भाग-दौड़ की जिंदगी में यह संभव नहीं हो पाया। यह तमन्ना मेरी अधूरी रह गई।
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