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Balkrishna Saraf: 'राम का काम करके माफी मांगने से अच्छा था गिरफ्तार होना', कहानी बालकृष्ण की; तब सरकार के निशाने पर थे कई लोग

श्रीराम के झंडाबरदारों में प्रतिष्ठित व्यवसायी बालकृष्ण सर्राफ भी हैं जिन्हें पूर्वांचल में श्रीराममंदिर आंदोलन का कर्णधार कहना गलत नहीं होगा। उन्होंने आंदोलन के दौरान कारसेवकों का सहयोग करने के लिए पुलिस से माफी नहीं मांगी थी बल्कि गिरफ्तारी की स्वीकार कर लिया था। वहीं बालकृष्ण सर्राफ बताते हैं कि धर्मपत्नी प्रकाशी देवी सर्राफ के आगे मेरा योगदान बहुत कम है।

By Rajnish Kumar Tripathi Edited By: Aysha SheikhUpdated: Tue, 09 Jan 2024 02:05 PM (IST)
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Balkrishna Saraf: 'राम का काम करके माफी मांगने से अच्छा था गिरफ्तार होना', कहानी बालकृष्ण की
रजनीश त्रिपाठी, गोरखपुर। श्रीराममंदिर आंदोलन के उन ख्यातिलब्ध नायकों से तो सभी परिचित हैं, जो अग्रिम मोर्चे पर थे। इनके बीच कुछ पुरुषार्थी ऐसे भी थे, जो नेपथ्य में रहकर कारसेवकों को न केवल बल दे रहे थे बल्कि राम के काम को सुफल बनाने में तन-मन-धन से लगे थे।

श्रीराम के ऐसे झंडाबरदारों में प्रतिष्ठित व्यवसायी बालकृष्ण सर्राफ भी हैं, जिन्हें पूर्वांचल में श्रीराममंदिर आंदोलन का कर्णधार कहना गलत नहीं होगा। 95 वर्ष की अवस्था में भी श्रीरामलला का नाम सुनकर जिनका उत्साह उफान पर पहुंच जा रहा, उन बालकृष्ण सर्राफ ने गिरफ्तारी दे दी, लेकिन कारसेवकों का सहयोग करने के लिए पुलिस से माफी नहीं मांगी।

बात 1990 से 1992 के दौर की

यह बात 1990 से लेकर 1992 तक के उस दौर की है जब श्रीराममंदिर आंदोलन से जुड़े लोग सरकार के निशाने पर हुआ करते थे। पुलिस की नजर उस हर शख्स पर होती थी, जिसकी गतिविधियां प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मंदिर आंदोलन से जुड़ी होती थीं। ऐसे लोगों पर तरह-तरह से शिकंजा कसा जा रहा था। उस दौर में शहर के प्रतिष्ठित व्यवसायी व पूंजीपति होने के बावजूद बालकृष्ण सर्राफ कारसेवकों के साथ कंधा मिलाकर आंदोलन को धार देने में लगे थे।

यही वजह थी कि चाहे आचार्य गिरिराज किशोर हों या अशोक सिंघल, विष्णुहरि डालमिया, साध्वी ऋतंभरा से लेकर विनय कटियार, प्रवीण तोगड़िया, राजेन्द्र सिंह पंकज जैसे आंदोलन के सभी अग्रणी पंक्ति के नायकों ने इनका आतिथ्य स्वीकार किया। विश्व हिंदू परिषद गोरक्षप्रांत (तत्कालीन काशी प्रांत) के गोरखपुर विभाग के अध्यक्ष की जिम्मेदारी उन्होंने न केवल सहर्ष स्वीकार की बल्कि उसका निर्वहन भी पूरी आस्था के साथ किया।

पूर्वांचल में श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन के लिए होने वाली गोपनीय बैठकों का प्रबंध अपने घर और कार्यालय में करने के साथ भोजन, वस्त्र, परिवहन जैसी हर तरह की व्यवस्था बालकृष्ण सर्राफ ने की। 1992 में कारसेवकों की मदद करने के आरोप में पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने पहुंच गई।

तत्कालीन अधिकारियों ने उनके सामने शर्त रखी कि माफीनामे पर हस्ताक्षर कर दें तो उन्हें छोड़ दिया जाएगा, लेकिन बालकृष्ण सर्राफ ने यह कहते हुए माफी नहीं मांगी कि श्रीराम का काम करके माफी मांगने से अच्छा गिरफ्तार होना है। हम अपने श्रीरामलला के लिए लड़ रहे हैं, कोई अपराध नहीं कर रहे। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार तो किया, लेकिन साक्ष्य के अभाव में उन्हें छोड़ना पड़ा।

नहीं भूल सकते धर्मपत्नी का योगदान

अयोध्या में श्रीराममंदिर निर्माण का मनोरथ सुफल होता देख पुलकित महसूस कर रहे बालकृष्ण सर्राफ बताते हैं कि धर्मपत्नी प्रकाशी देवी सर्राफ के आगे मेरा योगदान बहुत कम है। इस धार्मिक कार्य में कई बार वह मुझसे बहुत आगे नजर आती थीं। जब भी कारसेवकों के खानपान और रहने के इंतजाम की बात आती, मुझसे पहले वह इसकी जिम्मेदारी संभाल लेती थीं। अफसोस है कि इस पावन घड़ी को देखने से पहले वर्ष 2005 में वह साथ छोड़कर चली गईं।

चंपत राय ने स्वयं दिया न्योता

श्रीराममंदिर आंदोलन में बालकृष्ण सर्राफ के योगदान को देखते हुए श्रीराममंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बीते दिनों स्वयं बालकृष्ण सर्राफ को न्योता दिया। उन्होंने अयोध्या आने का आग्रह किया, जिस पर बालकृष्ण ने भीड़ की वजह से 22 जनवरी के बाद आने की बात कही। उन्होंने कहा कि श्रीरामलला तो अब प्रतिष्ठित होने जा रहे हैं। अब संसार की कोई भी शक्ति उन्हें हटा नहीं सकती। बहुत जल्द अयोध्या आकर भगवान श्रीराम का दर्शन करेंगे।

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