Firaq Gorakhpuri : अलमस्त अंदाज का बेलौस शायर, उर्दू अदब की दुनिया में गोरखपुर को दी नई ऊंचाई
Firaq Gorakhpuri biography फिराक गोरखपुरी तबीयत से भले ही हर किसी को बागी नजर आए लेकिन उनकी शायरी सहज थी। उनके शेरों में नेकदिली और जिंदादिली का अहसास कोई भी कर सकता है। पढ़ें फिराक गोरखपुर के बारे में-
गोरखपुर। गोरखपुर को जिन वजहों से दुनिया भर में पहचान मिली, फिराक गोरखपुरी को हमें उनमें आगे की पंक्ति में रखना ही होगा। नाम के आगे गोरखपुरी लगाकर उन्होंने उर्दू अदब की दुनिया में गोरखपुर को जो ऊंचाई दी, गोरखपुर ही नहीं बल्कि समूचे पूर्वांचल के लोग इसके लिए उनके ऋणी हैं। शायरी कहने के अपने अलमस्त और बेलौस अंदाज को लेकर वह शायरों ही नहीं आमजन के बीच भी हमेशा चर्चा का विषय रहे। किसी को उनका व्यक्तित्व भाया तो किसी को वह बिल्कुल पसंद नहीं आए लेकिन उनके शेरों की कद्र हर किसी ने पूरी तबीयत से की। उनका लोहा सभी ने माना। जयंती वह अवसर है जब हम उनकी शख्सियत को याद करें और नामचीन शायरों और कवियों के जरिये बतौर शायर उनकी अद्भुत प्रतिभा लोगों को बताएं। डा. राकेश राय की रिपोर्ट।
सहज थी फिराक की शायरी
फिराक तबीयत से भले ही हर किसी को बागी नजर आए लेकिन उनकी शायरी सहज थी। उनके शेरों में नेकदिली और जिंदादिली का अहसास कोई भी कर सकता है। उर्दू गजल के पारंपरिक अंदाज में बिना किसी छेड़छाड़ के नए लहजे की शायरी की जो अद्भुत मिसाल उन्होंने पेश की, उससे शायरी कद्रदानों के अलावा मशहूर शायर भी उनके कायल हो गए। निदा फाजली जैसे शायर ने तो शायरी की दुनिया में गालिब और मीर के बाद फिराक का तीसरे पायदान पर रखा। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और महादेवी वर्मा जैसे साहित्यकारों के सानिध्य में उन्होंने अपनी शायरी को ऊंचाई दी। पद्मश्री अली सरदार जाफरी ने फिराक को उर्दू शायरी की नई आवाज करार दिया। जोश मलीहाबादी ने कहा कि फिराक उर्दू के उस्ताद शायरों में एक बड़े नामवर गोशे के मालिक हैं। साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विश्वनाथ तिवारी ने फक्कड़, मूडी, गुस्सैल आदि अनेक परिचय के धनी फिराक को शायरी के दुनिया का बेताज बादशाह कहा है।
मुंशी प्रेमचंद से फिराक का था खास रिश्ता
फिराक के पिता गोरखपुर प्रसाद इबरत भी अच्छे शायर थे, इसलिए उनके आवास लक्ष्मी निवास पर साहित्यकारों की खूब महफिल सजती थी। महफिल सजाने वालों में कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द भी शामिल थे। कई बार प्रेमचंद वहां रुक भी जाते थे, जब फिराक की पत्नी को उनके लिए परहेजी खाना बनाना पड़ता था। इस दौरान फिराक का प्रेमचंद से एक खास रिश्ता बन गया था। फिराक की बेटी प्रेमा देवी ने अपने एक संस्मरण में लिखवाया था कि लक्ष्मी निवास पर पंडित नेहरू भी कई बार आए थे क्योंकि नेहरू के वह काफी नजदीक थे।
बन चुकी हैं कई फिल्में, लिखी गई हैं किताबें
मिर्जा गालिब और अमीर खुसरो की तरह ही फिराक गोरखपुरी के जीवन पर भी कई फिल्में बन चुकी हैं। एक फिर फिल्म गवर्नमेंट आफ इंडिया के फिल्म डिविजन ने भी बनाई है। फिल्म में उनका विद्यार्थी जीवन भी दिखाया गया है। यह फिल्म गोरखपुर के कई सिनेमा हालों में प्रदर्शित हो चुकी है। फिराक के जीवन पर कई किताबें भी लिखी गईं, जिनमें रमेश चंद्र द्विवेदी की पुस्तक 'मैंने फिराक को देखा है' और 'फिराक साहब' शामिल है। 'फिराक सदी की आवाज' नाम की पुस्तक सूचना व जनसंपर्क विभाग उत्तर प्रदेश की ओर से प्रकाशित हो चुकी है।
उपेक्षा का शिकार है फिराक का गांव
जिस फिराक ने गोरखपुर को दुनिया भर में पहचान दिलाई, वह आज अपने गांव गोला तहसील के बनवारपार में ही उपेक्षित हैं। जयंती हो या पुण्यतिथि किसी भी अवसर पर उनके गांव की याद शासन या सरकार को नहीं आती। फिराक की आखिरी निशानी उनका पैतृक आवास जर्जर होकर इतिहास बनने की राह में आगे बढ़ चला है। पर्यटन विभाग द्वारा फिराक के पैतृक भवन को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का आश्वासन तो दिया गया लेकिन वह आश्वासन जुबां तक ही सिमट कर रह गया।
गांव के फिराक की प्रतिमा के अलावा पहचान के नाम पर कुछ भी नहीं है। 18 अक्टूबर 2012 को तत्कालीन मुख्यमंत्री ने लोक निर्माण विभाग को कम्युनिटी सेंटर के निर्माण कराने का आदेश दिया था। आदेश मिलने के बाद विभाग की ओर से गांव का एक सर्वे किया, जिसके बाद एक बड़े हाल, मंच, आर्ट गैलरी, वाचनालय, पुस्तकालय, गेस्ट रूम, व शौचालय आदि निर्माण के लिए 61 लाख रुपये का प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजा गया लेकिन कम्युनिटी सेंटर तो बनना तो दूर एक ईंट भी नहीं रखी जा सकी। गांव में फिराक सेवा संस्थान के अध्यक्ष डा. छोटे लाल यादव द्वारा एक पुस्तकालय संचालित किया जाता है लेकिन किताबों के पर्याप्त न होने की वजह से यह पुस्तकालय लोगों को आकर्षित नहीं कर पाता।
फिराक की कृतियां
गुल-ए-नगमा, बज्म-ए-जिंदगी, रंगे शायरी, मशअल, रूह-ए-कायनात, नग्मा-ए-साज, गजलिस्तान, शेरिस्तान, शबनमिस्तान, रूप, धरती की करवट, गुलबाग, रम्ज व कायनात, चिरागा, शोअला व साज, हजार दास्तान, हिंडोला, जुगनू, नकूश, आधी रात, परछाइया और ताराना-ए-इश्क, सत्यम शिवम सुंदरम। इसके अलावा फिराक ने एक उपन्यास 'साधु और कुटिया' तथा कई कहानियां भी लिखीं हैं।
इन सम्मान से नवाजे गए फिराक
1960 में साहित्य अकादमी अवार्ड
1968 में साहित्य व शिक्षा के क्षेत्र में पद्मभूषण सम्मान
1969 में गुल-ए-नगमा के लिए ज्ञानपीठ अवार्ड
1969 में सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार
1970 में साहित्य अकादमी के सदस्य भी नामित हुए।
फिराक : एक परिचय
मूल नाम : रघुपति सहाय
पिता : गोरख प्रसाद 'इबरत'
जन्म : 28 अगस्त 1896
निधन : 03 मार्च 1982
ग्राम : बनवारपार गोला, गोरखपुर
कार्यक्षेत्र : इलाहाबाद
भाषा : हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू
फिराक के कुछ महत्वपूर्ण शेर
एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं।
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं,
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं।
कोई समझे तो एक बात कहूँ,
इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं।
हम से क्या हो सका मोहब्बत में,
ख़ैर तुम ने तो बेवफ़ाई की।
मैं हूं, दिल है, तन्हाई है,
तुम भी होते अच्छा होता।
न कोई वादा, न कोई यकीं, न कोई उम्मीद,
मगर हमें तो तेरा इंतजार करना था।
गरज की, काट दिए जिंदगी के दिन ऐ दोस्त,
वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में।
शाम भी थी धुआं-धुआं, हुस्न भी था उदास-उदास
दिल को कई कहानियां याद सी आ के रह गईं।