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दहकती पराली 'बांझ' बना रही खेत, भ्रम में डूबे किसान कर रहे बड़ी गलती, पोषक तत्व को हो रहा बड़ा नुकसान

पर्यावरणविद डा. सिराज वजीह कहते हैं कि कुछ लोगों में भ्रम है कि खेतों में आग लगाना लाभकारी है जबकि हकीकत इससे उलट है। खेतों में आग लगाना कभी भी लाभकारी नहीं हो सकता। इससे मिट्टी में मौजूद ह्यूमस नष्ट हो जाता है। ह्यूमस का प्रमुख जीवांश का काम करके मिट्टी को उर्वर बनाता है। जमीन में अकार्बनिक तत्वों से मिलकर उसे उपजाऊ बनाता है।

By Ashutosh Kumar Mishra Edited By: Vivek Shukla Updated: Mon, 06 May 2024 09:59 AM (IST)
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पराली की आग से खेती के मित्र कीट और जीव मर रहे हैं।
आशुतोष मिश्र, जागरण, गोरखपुर। देवरिया में 6422 हेक्टेयर गेहूं की फसल आग की भेंट चढ़ी, जिसमें से 228 हेक्टेयर के फुंकने का कारण पराली जलाने से लगी आग है। पराली से धधकी लपटों ने चार लोगों की जान ले ली। इसी तरह हुई अगलगी में सिद्धार्थनगर में तीन लोग और बस्ती में एक व्यक्ति की जलकर मृत्यु हो गई। दरअसल, आग का रूप ही कुछ ऐसा है कि जो चपेट में आया, राख हो गया। फिर चाहे वो किसान के बदन को घेरे या गेहूं की फसल चाहे पराली को।

हम स्वयं के या गेहूं के जलने का नुकसान जानते हैं, मगर पराली जलाने से लग रही चपत का अंदाजा भी नहीं लगा पा रहे। कंबाइन मशीन से कटे खेतों में बची पराली फूंककर खेत खाली करने की जल्दी सिर्फ जन-धन हानि का कारण ही नहीं बन रही, बल्कि यह माटी को भी बंजर कर रही है। कृषि और पर्यावरण के जानकार मानते हैं कि अगर इसे लेकर हम चेते नहीं तो बाद में बस पछताना ही हाथ आएगा।

हाल के वर्षों में कंबाइन कल्चर के विस्तार के साथ खेतों में गेहूं के डंठल यानी पराली जलाने की प्रवृत्ति तेजी से पनपी है। लोग कटाई और दंवाई की टेंशन से बचते हुए कंबाइन मशीनों से गेहूं कटवा लेते हैं। इससे खेतों में पराली खड़ी रह जाती है। आमतौर पर किसान खेतों में आग लगाकर इससे छुटकारा पा लेते हैं। थोड़े से आराम के लिए किसानों में बढ़ती यही प्रवृत्ति खेतों को बांझ कर रही है।

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मिट्टी में मौजूद पोषक तत्व पराली के साथ राख में बदल जा रहे हैं। उपजाऊ ह्यूमस नष्ट हो जा रहा है। जीवांश कार्बन खोकर खेत क्षारीय होकर बंजर हो जा रहे हैं। सिकरीगंज के प्रगतिशील किसान हरगोविंद सिंह और सहजनवां के विश्वनाथ यादव का कहना है कि इस बारे में जिला प्रशासन किसानों को जागरूक करने के लिए कुछ नहीं कर रहा, वरना कोई भी किसान जानबूझकर कभी अपने खेतों को बंजर नहीं कर सकता।

भ्रम में डूबे किसान

पर्यावरणविद डा. सिराज वजीह कहते हैं कि कुछ लोगों में भ्रम है कि खेतों में आग लगाना लाभकारी है जबकि हकीकत इससे उलट है। खेतों में आग लगाना कभी भी लाभकारी नहीं हो सकता। इससे मिट्टी में मौजूद ह्यूमस नष्ट हो जाता है। ह्यूमस का प्रमुख जीवांश का काम करके मिट्टी को उर्वर बनाता है। जमीन में अकार्बनिक तत्वों से मिलकर उसे उपजाऊ बनाता है।

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इससे उसकी जलधारण और वायुधारण क्षमता बढ़ती है। इतना ही नहीं। इससे कई मित्र कौट और जंतु नष्ट होकर खेतों की उत्पादकता पर बुरा असर डाल रहे हैं। साथ ही इससे उठते धुएं के गुबार से वायु प्रदूषण अलग से हो रहा है। प्रशासन और कृषि विभाग इसे लेकर लोगों को जागरूक करने की बात तो कहता है, लेकिन वास्तव में इसे लेकर अपेक्षित गंभीरता से प्रयास होता नहीं दिखता है।

मृदा की क्षारीयता में हो रहा इजाफा

उप्र गन्ना किसान संस्थान प्रशिक्षण केन्द्र पिपराईच गोरखपुर के सहायक निदेशक ओम प्रकाश गुप्ता बताते हैं कि खेतों में गेहूं की डंठल फूंकने से भूमि में मौजूद 16 पोषक तत्वों में से कार्बन, नाइट्रोजन, सल्फर, क्लोरीन, हाइड्रोजन और आक्सीजन जैसे तत्व आक्साइड के रूप में धुएं के साथ उड़ जाते हैं। इससे फसलों के विकास और उत्पादकता पर बुरा असर पड़ता है।

पराली की आग से खेती के मित्र कीट और जीव मर रहे हैं। खेतों में रहने वाले सांप वहां मौजूद चूहों को खाकर फसल को बचाते हैं, लेकिन आग से वह भी जल मरते हैं। पराली की राख खेतों की मिट्टी की पीएच वैल्यू पर असर डालकर उसे क्षारीय कर देती है। इससे वह बंजर हो जाते हैं।

उप कृषि निदेशक अरविंद सिंह ने कहा कि जीवांश कार्बन 0.2 से 0.3 हो गया है, जबकि इसे 0.8 से नीचे नहीं जाना चाहिए। पूरे गोरखपुर में एनपीके की स्थिति लगभग हर ब्लाक में चिंताजनक हो गई है। कृषि विभाग इसे लेकर गंभीरता से काम कर रहा है।

इस बार आचार संहिता के कारण बड़ी गोष्ठियां नहीं हो सकीं तो विभाग द्वारा छोटी गोष्ठियों के माध्यम से किसानों को जागरूक करने का प्रयास किया गया। उन्हें खेतों में आग लगाने से होने वाले नुकसान बताकर ऐसा न करने के लिए प्रेरित किया गया, जिससे ऐसी घटनाओं में कुछ कमी आई है।

नंबर गेम

- 1.86 लाख हेक्टेयर में सिद्धार्थनगर में गेहूं की खेती हुई, कंबाइन से 1.50 लाख हेक्टेयर कटाई हुई।

- 1.50 लाख हेक्टेयर भूमि पर महराजगंज में गेहूं की खेती हुई थी, जिसमें 70 प्रतिशत कटाई कंबाइन से हुई

- 118996 हेक्टेयर क्षेत्रफल में कुशीनगर में गेहूं की खेती हुई, लेकिन एक चौथाई की कटाई कंबाइन से हुई

- 96,890 हेक्टेयर पर संतकबीर नगर में गेहूं की खेती हुई, जिसमें से कंबाइन से 86,960 हेक्टेयर की कटाई हुई

- 141155 हेक्टेयर भूमि पर बस्ती में गेहूं की खेती की गई, लगभग 90 प्रतिशत क्षेत्रफल में कटाई कंबाइन से हुई

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