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लेखपाल अनजान तो नहीं बनेगा जाति प्रमाणपत्र, गोरखपुर में बसे बाल्मिकी परिवार का हर बार निरस्त हो जाता है आवेदन

फर्रुखाबाद से आकर 35 साल पहले गोरखपुर में बसे परिवार का हर बार आवेदन निरस्त हो जाता है। पीड़ित परिवार ने मुख्यमंत्री के यहां न्याय की गुहार लगाई है। मामले की जानकारी होने के बाद जिलाधिकारी की ओर से एसडीएम को मामले की जांच सौंपी गई है। पीड़ित का कहना है कि फोन करने पर लेखपान ने कहा इस जाति को नहीं जानते।

By Jagran NewsEdited By: Pragati ChandUpdated: Sun, 09 Jul 2023 01:57 PM (IST)
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लेखपाल नहीं जानते इसलिए नहीं बनेगा ''बाल्मिकी'' का जाति प्रमाणपत्र। (प्रतीकात्मक तस्वीर)
गोरखपुर, उमेश पाठक। गोरखपुर में एक ही प्रदेश में पश्चिम से पूरब आकर बसे एक परिवार के लोगों का जाति प्रमाणपत्र नहीं बन रहा है। नाम के आगे बाल्मिकी उपनाम लिखने वाला यह परिवार 35 साल से यहीं रह रहा है। इस परिवार के किशोर ने जाति प्रमाणपत्र बनवाने के लिए दो बार तहसील में आवेदन किया है, लेकिन हर बार आवेदन निरस्त कर दिया जाता है। जब लेखपाल को फोन किया जाता है तो वह बताते हैं कि इस जाति को नहीं जानते। लेखपाल के न जानने के कारण इस उपनाम वाले लोगों का जाति प्रमाणपत्र नहीं बनता। इस मामले में जिलाधिकारी की ओर से एसडीएम को जांच के लिए लिखा गया है।

यह है मामला

दरगहिया नंदानगर निवासी आकाश बाल्मिकी को आगे की पढ़ाई के लिए प्रवेश चाहिए। स्वयं को अनुसूचित जाति का होने का दावा करने वाले आकाश की ओर से जाति प्रमाणपत्र के लिए आनलाइन आवेदन किया गया, लेकिन आवेदन निरस्त कर दिया गया। जब दो बार आवेदन निरस्त हो गया तो आकाश ने गोरखनाथ मंदिर पहुंचकर मुख्यमंत्री के शिविर कार्यालय में आवेदन दिया। वहां से आवेदन पत्र जिलाधिकारी के यहां आया और इसे एसडीएम को जांच के लिए भेजा गया है।

आकाश बताते हैं कि फोन पर उन्होंने लेखपाल से जब भी बात की तो लेखपाल ने बताया कि वह यह नहीं जानते कि आकाश की जाति क्या है इसलिए सत्यापित नहीं किया जा सकता। आकाश के बाबा एयरफोर्स में कार्यरत थे और 35 साल पहले यहां आकर बस गए थे। आकाश व उनके भाई-बहनों का जन्म गोरखपुर में हुआ है। उनकी बहन को भी गोरखपुर विश्वविद्यालय में प्रवेश लेना है, लेकिन जाति प्रमाणपत्र नहीं बन पा रहा। उनसे मूल स्थान के किसी व्यक्ति का जाति प्रमाणपत्र मांगा जाता है लेकिन साढ़े तीन दशक बीत जाने के बाद अब वहां के लोगों से संपर्क न के बराबर है।

होती है यह दिक्कत

जाति प्रमाण पत्र के लिए जांच आने पर लेखपाल को सत्यापन करना होता है। जो यहां का मूल निवासी होता है या उसके परिवार में किसी का जाति प्रमाण पत्र बना है तो लेखपाल सत्यापन का रिपोर्ट लगा देते हैं, लेकिन यदि किसी और जिले से आया है तो उसका सत्यापन नहीं करते।

तहसील प्रशासन निकाल सकता है यह रास्ता

यदि कोई प्रदेश के किसी अन्य जिले का है तो तहसील प्रशासन अपने स्तर पर उसके दावे का सत्यापन करा सकता है। दावा करते हुए मूल निवास वाले तहसील को लिखकर यह सत्यापित कराया जा सकता है कि जिस जाति का होने का दावा किया जा रहा है, उसका जाति प्रमाणपत्र मूल स्थान पर जारी होता है या नहीं। लेकिन, इस प्रक्रिया को संभवत: आज तक अपनाया नहीं गया। एक लाइन में यह कह दिया जाता है कि यहां न रहने के कारण जाति प्रमाणपत्र बन पाना संभव नहीं है।

क्या कहते हैं अधिकारी

जिलाधिकारी कृष्णा करुणेश ने कहा कि जाति प्रमाणपत्र क्यों नहीं बन पा रहा है, इसकी जांच कराई जाएगी। तहसील प्रशासन से इसकी रिपोर्ट ली जाएगी। किस कारण से प्रमाणपत्र नहीं बन पा रहा है, इसके बारे में भी जानकारी ली जाएगी।

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