चौरी चौरा: मुकाम पा रहा हाशिये पर पड़ा इतिहास, सौ साल से विस्मृत शहीदों का हो रहा शौर्यगान
चौरी चौरा की घटना संदर्भ के रूप में इतिहास के पन्नों पर स्थान पाती रही। उसके माथे पर कलंक लगता रहा असहयोग आंदोलन को रोकने का कारण बनने का। वह आंदोलन जिसे रोकने पर महात्मा गांधी का विरोध नेहरू तक ने किया था। क्या यह घटना गोरखपुर का अपराध थी।
By TaniskEdited By: Updated: Fri, 05 Feb 2021 10:59 AM (IST)
[बृजेश दुबे]। ढेर सारी गाड़ियां, चाक-चौबंद व्यवस्था, लकदक करते टेंट और सामने सजा हुआ उन्नत मस्तक, गर्वित स्मारक स्तंभ, जो आज अपने होने पर इतरा रहा है। दंभ भर रहा है। करे भी क्यों न। कुछ ही वर्ष तो हुए हैं, जब पूरी साज-सज्जा के बाद भी वह उपेक्षित था। यह सवाल शहीद स्मारक का था तो वहां रहने वाले लोगों का भी। लेकिन जवाब देने के लिए कोई नहीं। अरे हां, जरा रुकिये.. रुकने के लिए इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि मूल बात हाशिये पर जा रही है। सवाल है किस स्मारक की बात हो रही। जवाब है चौरी चौरा में थाना फूंकने के आरोप में फांसी की सजा पाने वाले 19 शहीदों की स्मृति में बने शहीद स्तंभ की।
दरअसल चौरी चौरा की घटना संदर्भ के रूप में इतिहास के पन्नों पर स्थान पाती रही। उसके माथे पर कलंक लगता रहा असहयोग आंदोलन को रोकने का कारण बनने का। वह आंदोलन, जिसे अंग्रेजों के लिए सबसे बड़ा हथियार माना गया। वह आंदोलन जिसे रोकने पर महात्मा गांधी का विरोध नेहरू तक ने किया था। क्या यह घटना गोरखपुर का अपराध थी, जिसे इसी शीर्षक के साथ उस दौर में एक लेख के रूप में उतारा गया था।
जवाब तलाशने उसी दौर में चलते हैं
सवाल वाजिब भी है। जवाब तलाशने उसी दौर में चलते हैं। एक ऐसा दौर, जहां अंग्रेजों के खिलाफ ‘शठे शाठ्यम् समाचरेत्’ सोच का पौधा रोपित तो हो चुका था, लेकिन सिंचित नहीं हो पा रहा था। दबाई-कुचली जा रही रियाया आत्मसम्मान तलाश रही थी, जिसे आठ फरवरी 1921 को गोरखपुर में बाले मियां के मैदान में महात्मा गांधी सिर उठाने के लिए कहकर गए थे। खिलाफत और कांग्रेस कमेटियां एक होकर काम कर रही थीं। वालंटियर बनना सम्मान की बात थी। सरकार डरी थी और उसके अधिकारी जमींदारों और व्यापारियों को आंदोलन से न जुड़ने की हिदायत दे रहे थे। ऐसे दौर में वालंटियर को कवायद (परेड) कराने वाले पूर्व सैनिक भगवान अहीर को एक फरवरी 1922 को सब इंस्पेक्टर गुप्तेश्वर सिंह ने मुंडेरा बाजार में सरे राह पीट दिया, तो किसानों ने पुलिस से इसका जवाब मांगने की हिम्मत कर ली।
किसानों ने जो प्रत्युत्तर दिया, वह इतिहास हो गया
मुंडेरा बाजार तब तीन हजार रुपये राजस्व देता था और आंदोलन उसकी कमाई पर असर डाल रहा था। चार फरवरी को वह शांति जुलूस की शक्ल में थाने पहुंचे। गुप्तेश्वर सिंह ने हाथ उठाया, किसानों ने माफी समझी। ताली बजाते हुए लौटे तो जमींदारों के कारिंदों ने अपमान बताकर उकसाया। अचानक लाठी चलने लगी। सत्याग्रहियों के हाथों में भी पत्थर आ गए। पुलिस पर हमला क्रूर शासक की मनोवृत्ति कैसे सहन करती। गोलियां चलीं और तीन सत्याग्रही शहीद हो गए। फिर किसानों ने जो प्रत्युत्तर दिया, वह इतिहास हो गया। थाना फूंक दिया। 23 पुलिसकर्मी मारे गए। अंग्रेजों ने दमन चक्र चलाया। घर तोड़ दिए गए। जमीनें जब्त कर ली गईं। सेशन कोर्ट के जज एचई होम्स ने 172 सेनानियों को फांसी की सजा सुना दी। क्रांतिकारी बाबा राघवदास के कहने पर पंडित मदन मोहन मालवीय मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट ले गए। 30 अप्रैल 1923 को मुख्य न्यायाधीश एडवर्ड ग्रीमवुड मीयर्स व सर थियोडोर पिगाट ने 19 सेनानियों को फांसी और शेष को कारावास की सजा सुनाई।
शौर्य का चौरी चौरा आजादी के बाद भी हाशिये पर रहामहात्मा गांधी इसे गोरखपुर का अपराध घोषित कर बारदोली कार्यसमिति में असहयोग आंदोलन वापस लेने की घोषणा कर चुके थे। वह घटना को जो क्रूर शासक की हिंसा का प्रत्युत्तर थी, हिंसक बताकर अपराध घोषित हो गई। शहीद, सेनानियों के घरवालों की सुधि नहीं ली गई। शौर्य का चौरी चौरा आजादी के बाद भी हाशिये पर रहा। छह फरवरी 1982 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्मारक का शिलान्यास किया तो उसके 11 साल बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव ने 19 जुलाई 1993 को लोकार्पण। इसके बाद सरकारें स्मारक को भूल गईं। वर्ष 1996 में सेनानी आश्रितों को राज्य पेंशन मिलनी शुरू हुई जो उन्हीं तक सीमित रही।
हाशिये का इतिहास असली मायने पा रहा हैफिर वर्तमान में आते हैं। तीन साल पहले योगी आदित्यनाथ की सरकार ने 2.70 करोड़ रुपये इस मद में जारी किए। काम शुरू हुआ और स्मारक मौजूदा स्वरूप में आया। सौ साल से जो शहीद विस्मृत थे, उनका शौर्यगान हो रहा है। दस्तावेज में दबे तथ्य बाहर निकाले जा रहे हैं। हाशिये का इतिहास असली मायने पा रहा है। शौर्य के सम्मान में मेला सज रहा है। वह भी पूरे साल चलने वाला। शहीदों के स्वजन सम्मानित हो रहे हैं। यह काफी है यह बताने के लिए कि चौरी चौरा का शहीद स्तंभ आज इतना क्यों इतरा रहा है।
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